महाभारत वन पर्व अध्याय 226 श्लोक 17-29
षडविंशत्यधिकद्विशततम (226) अध्याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व )
मार्कण्डेयजी कहते हैं-राजन् । उस समय स्कन्द के जन्म और बल पराक्रम का समाचार सुनकर सब देवताओं ने एकत्र हो इन्द्र कहा-‘देवेश्वर । स्कन्द का बल असह्म है। शीघ्र उन्हें मार डालिये; विल्म्ब न कीजिये। महाबली इन्द्र । यदि आप इन्हें अभी नहीं मारते है, तो ये त्रिलोकी को, हम सबको तथा आपको भी अपने वश में करके ‘देवेन्द्र‘ बन बैठेंगे’ । तब इन्द्र ने व्यथित होकर उन देवताओं से कहा-‘देवताओ । यह बालक बड़ा बलवान् है। यह लोकस्त्रष्टा ब्रह्म को भी युद्ध में पराक्रम करके मार सकता है। अत: मुझ में इस बालक को मारने का साहस नहीं है। इन्द्र बार-बार यही बात दुहराने लगे । यह सुनकर देवता बोले-‘आप में अब बल और पराक्रम नहीं रह गया है, इसीलिये ऐसी बातें कहते हैं। हमारी राय है कि सम्पूर्ण लोकमातृकाएं स्कन्द के पास जायं। ये इच्छानुसार पराक्रम प्रकट कर सकती हैं; अत: स्कन्द को मार डालें। ‘बहुत अच्छा ‘ कहकर वे मातृकाएं वहां से चल दीं । परंतु स्कन्द का अप्रतिम बल देखकर उनके मुख पर उदासी छा गयी। वे सोचने लगीं – ‘इस वीर को पराजित करना असम्भव है । ऐसा निश्चय होने पर वे उन्हीं की शरण में गयीं और बोलीं- ‘महाबली कुमार । तुम हमारे पुत्र हो जाओ, हमें माता मान लो । ‘देखो’ हम पुत्र स्नेह से विकल हो रही है, हमारे स्तनों से दूध झर रहा है, इसे पीकर हम सबको सम्मानित और आनन्दित करो । मातृकाओं की यह बात सुनकर समर्थ स्कन्द के मन में उनके स्तनपान की इच्छा जाग्रत् हो गयी । फिर महासेन ने उन सबका समादर करके उनकी मनोवाच्छा पूर्ण की । तदनन्तर बलवानों में बलिष्ठ वीर स्कन्द ने अपने पिता अग्नि देव को आते देखा । कुमार महासेन के द्वारा पूजित हो मग्ड़लकारी अग्नि देव मातृकागणों के साथ उन्हें घेरकर खड़े हो गये और उनकी रक्षा करने लगे । उस समय सम्पूर्ण मातृकाओं के क्रोध से जो एक नारी मुर्ति प्रकट हुई थी, वह हाथ में त्रिशुल ले धाय की भांति अपने पुत्र के समान प्रिय स्कन्द की सब ओर से रक्षा करने लगी । लाल सागर की एक क्रूर स्वभाव वाली कन्या थी, जिसका रक्त ही भोजन था । वह महा सेन को पुत्र की भांति हदय से लगाकर र्स्वतो भावेन उनकी रक्षा करने लगी । वेदप्रतिपादित अग्नि बकरेका-सा मुख बनाकर अनेक संतानों के साथ उपस्थित हो पर्वत शिखर पर निवास करने वाले बालक स्कन्द इस प्रकार मन बहलाने लगे, मानो उन्हें खिलौनों से खेला रहे हों ।
इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्तर्गत मार्कण्डेय समस्या पर्व में आग्डिरसोपाख्यान के प्रसंग में स्कन्द की उत्पति विषयक दो सौ छब्बीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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