महाभारत वन पर्व अध्याय 228 श्लोक 1-15
अष्टाविंशत्यधिकद्विशततम (228) अध्याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व )
मार्कण्डेयजी कहते हैं- राजन् । अब तुम स्कन्द के भयंकर पार्षदों का वर्णन सुनो, जो देखने में बड़े अभ्दुत हैं। वज्र का प्रहार होने पर स्कन्द शरीर में वहां बहुत से कुमार ग्रह उत्पन्न हुए । वे क्रूर स्वभाव वाले कुमारग्रह नवजात तथा गर्भस्थ शिशुओं को भी हर ले जाते हैं। इन्द्र के वज्र-प्रहार से स्कन्द के शरीर से वहां अत्यन्त बलशालिनी कन्याएं भी उत्पन्न हुई थीं । पूर्वोक्त कुमार-ग्रहों ने विशाख ( स्कन्द ) को अपना पिता माना । भगवान स्कन्द बकरे के समान मुख धारण करके समस्त कन्यागणों और अपने पुत्रों से घिरकर मातृकाओं के देखते-देखते युद्ध में अपने पक्ष की रक्षा करते हैं। वे ही ‘भद्रशाख’ तथा ‘कौसल’ नाम से प्रसिद्ध हुए हैं । इसीलिये भूतल के मनुष्य स्कन्द को कुमार – ग्रहों का पिता कहते हैं। भिन्न-भिन्न स्थानों में पुत्रवान् तथा पुत्र की इच्छा रखने वाल मनुष्य अग्रिस्वरुप रुद्र और स्वाहास्वरुपा महाबलवती उमा की सदा आराधना करते हैं । तप नामक अग्रि ने जिन कन्याओं को जन्म दिया, वे सब स्कन्द के पास आयीं और पूछने लगीं ‘हम क्या करें । कुमारियां बोलीं-हम सब लोग सम्पूर्ण जगत् की श्रेष्ठ माताएं हों और आपकी कृपा से हम सदा पूजनीय मानी जायं, यही हमारा प्रिय मनोरथ है, आप इसे पूर्ण कीजिये । तब उदारबुद्धि स्कन्द ने बार-बार कहा ‘बहुत अच्छा’ तुम सब लोग पृथक-पृथक पूजनीया माता मानी जाओगी। तुम्हारे दो भेद होंग-शिवा और अशिवा। तदनन्तर स्कन्द को अपना पुत्र मानकर मातृकाएं वहां से विदा हो गयीं । काकी, हलिमा, मालिनी, बृंहता, आर्या, पलाला और बैमित्रा-ये सातों शिशु की माताएं हैं । भगवान स्कन्द कृपा से इन्हें शिशु नामक एक अत्यन्त पराक्रमी पुत्र प्राप्त हुआ, जो अत्यन्त दारुण और भयंकर था। उसकी आंखें रक्त वर्ण की थीं । शिशु और मातृगणों को लेकर जो आठ व्यक्ति होते हैं, उन्हें ‘वीराष्टक’ कहा गया है। बकरे के से मुख से युक्त स्कन्द को सम्मिलित करने से यह समुदाय वीर-नवक कहा जाता है । युधिष्ठिर । स्कन्द का ही छठा मुख छागमय है, यह जान लो। राजन् । वह छ: सिरों के बीच में स्थित है और मातृकाएं सदा उसकी पूजा करती हैं । स्कन्द के छहों मस्तकों वही सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है। उन्होंने दिव्य शक्ति का प्रयोग किया था; इसलिये उनका नाम भद्रशाख हुआ । नरेश्वर । इस प्रकार शुक्कलपक्ष की पच्चमी तिथि को विविध आकारवाले पार्षदों की सृष्टि हुई और षष्ठी वहां अत्यन्त भयंकर युद्ध हुआ ।
इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्तर्गत मार्कण्डेय समस्या पर्व में आग्डि़सोपाख्यान के प्रसंग में कुमारोत्पति विषयक दो सौ अट्ठाईसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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