महाभारत वन पर्व अध्याय 230 श्लोक 31-49

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त्रिंशदधिकद्विशततम (230) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमास्‍या पर्व )

महाभारत: वन पर्व: त्रिंशदधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 31-49 का हिन्दी अनुवाद
कृतिकाओं को नक्षत्र मण्‍डल में स्‍थान की प्राप्ति तथा मनुष्‍यों को कष्‍ट देने वाले विविध ग्रहों का वर्णन

कुरुनन्‍दन । स्‍कन्‍द के शरीर से उत्‍पन्न हुए जिन कुमार एवं कुमारियों का वर्णन किया गया है, वे सभी गर्भस्‍थ बालकों का भक्षण करने वाले महान् ग्रह हैं । वे कुमार उन्‍हीं पत्‍नी स्‍वरुपा कुमारियों के पति कहे गये हैं। उनके कर्म बड़े भयंकर हैं। वे जन्‍म लेने के पहले ही बच्‍चों को पकड़ ले जाते हैं । राजन् । विद्वान् पुरुष जिसे गोमाता सुरभि कहते हैं, उसी पर आरुढ़ होकर शकुनिग्रह-विनता अन्‍य ग्रहों के साथ भूमण्‍डल के बालकों का भक्षण करती है । नरेश्‍वर । कुत्तों की माता जो देवजातीय सरमा है, वह भी सदैव मानवीय स्त्रियों के गर्भस्‍थ बालकों का अपहरण करती रहती है । जो वृक्षों की माता है, वह करज वृक्ष पर रहने वाली उस देवी को नमस्‍कार करते हैं । ये तथा दूसरे अठारह ग्रह मांस और मधु के प्रेमी हैं। कद्रू सूक्ष्‍म शरीर धारण करके गर्भिणी स्‍त्री के शरीर के भीतर प्रवेश कर जाती है और वहां उस गर्भ को खा जाती है। इससे गर्भिणी स्‍त्री सर्प पैदा करती है । जो गन्‍धर्वो की माता है, वह गर्भिणी स्‍त्री के गर्भ को लेकर चल देती है, जिससे उस मानवी स्‍त्री का गर्भ विलीन हुआ देखा जाता है । जो अप्‍सराओं की माता है, वह भी गर्भ को पकड़ लेती है, जिससे बुद्धिमान मनुष्‍य कहते हैं कि अमुक स्‍त्री का गर्भ नष्‍ट हो गया । लाल सागर की कन्‍या का नाम लोहितायनि है, जिसे स्‍कन्‍द की धाय बताया गया है। उसकी कदम्‍ब वृक्षों में पूजा की जाती है । जैसे पुरुषों में भगवान रुद्र श्रेष्‍ठ हैं, उसी प्रकार स्त्रियों में आर्या उत्तम मानी गयी हैं। आर्या कुमार कार्तिकेय की जननी हैं। लोग अपने अभीष्‍ट की सिद्धि के लिये उनका उपर्युक्‍त ग्रहों से पृथक पूजन करते हैं। इस प्रकार मैंने ये कुमार सम्‍बन्‍धी महान् ग्रह बताये हैं। जब तक सोलह वर्ष की अवस्‍था न हो जाय, तब तक ये बालकों का अमग्ड़ल करने वाले होते हैं । जो मातृगण और पुरुष गह बताये गये हैं, इन सबको समस्‍त देहधारी मनुष्‍य सदा ‘स्‍कन्‍दग्रह’ के नाम से जाने । स्‍नान, धूप, अज्जन, बलि कर्म, उपहार अर्पण तथा स्‍कन्‍द देव की विशेष पूजा करके इन स्‍कन्‍दग्रहों की शान्ति करनी चाहिये । राजेन्‍द्र । इस प्रकार पूजित तथा विधिवत् पूजन द्वारा अभिवन्दित होने पर वे सभी ग्रह मनुष्‍यों का मग्ड़ल करते हैं और उन्‍हें आयु तथा बल देते हैं । अब मैं भगवान महेश्‍वर को नमस्‍कार करके उन ग्रहों का परिचय दूंगा, जो सोलह वर्ष की अवस्‍था के बाद मनुष्‍यों के लिये अनिष्‍ट कारक होते हैं । जो मनुष्‍य जागते या सोते में देवताओं को देखता और तुरंत पागल हो जाता है, उस कष्‍ट देने वाले ग्रह को ‘देवग्रह’ कहते हैं । जो मनुष्‍य बैठे-बैठे या सोते समय पितरों को देखता और शीघ्र पागल हो जाता है, उस बाधा देने वाले ग्रह को ‘पितृग्रह’ जानना चाहिये । जो सिद्ध पुरुषों का अनादर करता है और क्रोध में आकर वे सिद्ध पुरुष जिसे शाप दे देते हैं, जिसके कारण वह तुरंत पागल हो जाता है, उसे ‘सिद्धग्रह’ की बाधा प्राप्‍त हुई है, ऐसा समझना चाहिये ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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