महाभारत वन पर्व अध्याय 230 श्लोक 15-30

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

त्रिंशदधिकद्विशततम (230) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमास्‍या पर्व )

महाभारत: वन पर्व: त्रिंशदधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 15-30 का हिन्दी अनुवाद
कृतिकाओं को नक्षत्र मण्‍डल में स्‍थान की प्राप्ति तथा मनुष्‍यों को कष्‍ट देने वाले विविध ग्रहों का वर्णन

स्‍कन्‍द ने कहा- आप मेरी माताएं हैं। मैं आप लोगों का पुत्र हूं। मुझ से सिद्ध होने योग्‍य जो आपका अभीष्‍ट कार्य हो, उसे बताइये । माताओं ने कहा ( ब्राह्म, माहेश्वरी आदि ) सुप्र सिद्ध लोकमाताएं जो पहले से इस सम्‍पूर्ण जगत् की माताओं के स्‍थान पर प्रतिष्‍ठत हों, ( वे अपना पद छोड़ दें ) उनके उस स्‍थान पर अब हमारा अधिकार हो जाय । उनका उस पर कोई अधिकार न रहे । सुर श्रेष्‍ठ । हम सम्‍पूर्ण जगत् की पूजनीया हों । जो पहले मातृकाएं थी, उनकी अब पूजा न हो। उन्‍होंने तुम्‍हारे लिये हम पर मिथ्‍या अपवाद लगाकर हमारे पितयों को कुपित करके हमारे संतान सुख को छीन लिया है। अत: तुम हमें संतान प्रदान करो ( हमारे पतियों को अनुकूल करके हमें संतान-सुख की प्राप्ति कराओ । स्‍कन्‍द बोले- माताओं । जिस प्रजाओं की उत्‍पत्ति का अवसर बीत गया, उन्‍हें आप लोग अब नहीं पा सकतीं । यदि दूसरी कोई प्रजा पाने की आपके मन में इच्‍छा हो, तो कहिये, मैं उसे प्रदान करुंगा । माताओं ने कहा – यदि ऐसी बात है, तो हमें इन लोकमाताओं की संतानें सौंप दो। हम उन्‍हें खाना चाहती हैं। तम से पृथक जो उन संतानों के पिता आदि अभिभावक हैं, उन्‍हें भी हम खाना चाहती हैं । स्‍कन्‍द बोले देवियो । आप लोगों ने यह दु:ख की बात कही है, तो भी मैं आपको पहले की मातृकाओं की संतानों को अर्पित कर देता हूं; परंतु आप लोग उन सब की रक्षा करें; इसी से आप का भला होगा । मैं आपको सादर नमस्‍कार करता हूं । माताओं ने कहा –स्‍कन्‍द । जैसी तुम्‍हारी इच्‍छा है, उसके अनुसार हम उन संतानों की रक्षा अवश्‍य करेंगी। शक्तिशाली कुमार । हमें दीर्घ काल तक तुम्‍हारे साथ रहने की इच्‍छा है । स्‍कन्‍द बोले – संसार के मनुष्‍य जब तक सोलह वर्ष के तरुण न हो जायं, तब तक आप मानव प्रजा को पृथक-पृथक उतने ही रुप धारण करके संताप दे सकती हैं । मैं आप लोगों को एक भयंकर एवं अविनाशी पुरुष प्रदान करुंगा, जो मेरा अभिन्न स्‍वरुप होगा। उसके साथ सम्‍मान पूर्वक रहकर आप लोग परम सुख की भागिनी होंगी । मार्कण्‍डेयजी कहते हैं – राजन् । तदनन्‍तर स्‍कन्‍द के शरीर से अग्रि के समान तेजस्‍वी तथा परम कान्तिमान् एक पुरुष प्रकट हुआ, जो समस्‍त मानव प्रजा को खा जाने की इच्‍छा रखता था । वह पैदा होते ही भूख से पीडित हो सहसा अचेत होकर पृथ्‍वी पर गिर पड़ा । फिर स्‍कन्‍द की आज्ञा से वह भयंकर रुपधारी ग्रह हो गया । श्रेष्‍ठ द्विज । इस ग्रह को ‘स्‍कन्‍दापस्‍मार’ कहते हैं। इसी प्रकार अत्‍यन्‍त रौद्र रुप धारण करने वाली विनता को ‘शकुनि ग्रह’ बताया जाता है । पूतना को राक्षसी बताया गया है, उसे ‘पूतनाग्रह’ समझना चाहिये। वह भयंकर रुप धारण करने वाली निशाचारी बड़ी क्रूरता के साथ बालकों को कष्‍ट पहुचाती है । इसके सिवा भयानक आकार वाली एक पिशाची है, जिसे ‘शीतपूतना’ कहते है, वह देखने में बड़ी डरावनी है। वह मानवी स्त्रियों का गर्भ हर ले जाती है । लोग अदिति देवी को रेवती कहते हैं। रेवती के ग्रह का नाम रैवत है। वह महाभयंकर महान् ग्रह भी बालकों को बड़ा कष्‍ट देता है । दैत्‍यों की माता जो दिति है, उसे ‘मुखमणिडका’ कहते हैं। वह छोटे बच्‍चों के मांस से अधिक प्रसन्न होती है। उसे पराजित करना अत्‍यन्‍त कठिन है ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।