महाभारत वन पर्व अध्याय 241 श्लोक 1-24
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एकचत्वारिंशदधिकद्विशततम (241) अध्याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )
वैश्म्पायनजी कहते हैं-महाराज ! तदनन्तर वे सब लोग एक साथ कुरूराज दुर्योधनके पास गये और गन्धवोंने राजासे कहनेके लिये जो-जो बातें कहीं थीं, उन्हें कह सुनाया । भारत ! गन्धर्वोद्वारा अपनी सेनाको रोक दिये जानेपर प्रतापी राजा दुर्योधनने अमर्षमें भरकर समस्त सैनिकोंसे कहा- ‘अरे ! यदि समस्त देवताओेंके साथ इन्द्र भी यहां आकर क्रीडा करते हो, तो वे भी मेरा अप्रिय करनेवाले हैं । तुमलोग इन सब पापात्माओं को दण्ड दो’ । दुर्योधनकी यह बात सुनकर महाबली कौरव और उनके सहस्त्रों योद्धा सबके सब युद्धके लिये कमर कसकर तैयार हो गये । तदनन्तर वे अपने महान् सिंहनादसे दसों दिशाओं को गुंजाते हुए उन समस्त गन्धर्वोको रौंदकर बलपूर्वक द्वैतवनमें घुस गये । राजन् उस समय दूसरे– दूसरे गन्धर्वोने शान्तिपूर्ण वचनोंद्वारा ही कौरव सैनिकोंको रोका । राकेनेपर भी उन गन्धर्वोकी अवहेलना करके वे समस्त सैनिक उस महान् वनके भीतर प्रविष्ट हो गये । जब राजा दुर्योधनसहित समस्त कौरव वाणीद्वारा मना करने पर न रूके, तब आकाशमें विचरनेवाले उन सभी गन्धर्वोने राजा चित्रसेनसे यह सारा समाचार निवेदन किया । यह सुनकर गन्धर्वराज चित्रसेनको बड़ा अमर्ष हुआ । उन्होंने कौरवों को लक्ष्य करके समस्त गन्धर्वोको आज्ञा दी, ‘अरे ! इन दुष्टोंका दमन करो’ । भारत ! चित्रसेनकी आज्ञा पाते ही सब गन्धर्व अस्त्र-शस्त्र लेकर कौरवोंकी ओर दौडे़ । गन्धर्वोको अस्त्र शस्त्र लिये तीव्र वेगसे अपनी ओर आते देख वे सभी कौरव सैनिक दुर्योधनके देखते-देखते चारो ओर भागने लगे । धृतराष्ट्रके सब पुत्रोंको युद्धसे विमुख हो भागते देखकर भी राधानन्दन वीर कर्णने वहां पीठ नहीं दिखायी । गन्धर्वोकी उस विशाल सेनाको अपनी ओर आती देख कर्णने भारी बाणवर्षा करके उसे आगे बढ़नेसे रोक दिया। सूतपुत्र कर्णने अपने हाथों की फुर्ताके कारण लोहेके क्षुरप्र, विशिख, भल्ल और वत्सदन्त नामक बाणोंकी वर्षा करके सैकड़ो गन्धर्वोको घायल कर दिया । गन्धर्वोके मस्तक काटकर गिराते हुए महारथी कर्णने चित्रसेनकी सारी सेनाको क्षणभरमें छिन्त्र-भिन्त्र कर डाला । परम बुद्धिमान् सूतपुत्र कर्णके द्वारा ज्यों-ज्यों गन्धर्वोपर मार पड़ने लगी, त्यों-ही-त्यों वे सैकड़ो और हजारोंकी संख्यामें वहां आ-आकर एकत्र होने लगे । इस प्रकार चित्रसेनके अत्यन्त वेगशाली सैनिकोंके आनेसे क्षणभरमें वहांकी सारी पृथ्वी गन्धर्वमयी हो गयी । तदनन्तर राजा दुर्योधन, सुबलपुत्र शकुनि, दु:शासन, विकर्ण तथा अन्य जो धृतराष्ट्र पुत्र वहां आये थे, उन सबने गरूड़के समान भयंकर शब्द करनेवाले रथोंपर आरूढ़ हो गन्धर्वोकी उस सेनाका संहार आरम्भ किया । उन्होंने कर्णको आगे करके पुन: बड़े वेगसे गन्धर्वोका सामना किया । उनके साथ रथोंका विशाल समूह था । वे रथोंको विचित्र गतियोंसे चलाते हुए कर्णकी रक्षा करने और गन्धर्वोपर बाण बरसाने लगे । तत्पश्चात् सारे गन्धर्व संगठित हो कौरवोंके साथ भिड़ गये । उस समय उनमें घमासान युद्ध होने लगा, जो रोंगटे खड़े कर देनेवाला था । तदनन्तर कौरवोंके बाणोंसे पीडि़त हो गन्धर्व कुछ ड़ीले पड़ने लगे और उन्हें कष्ट पाते देख कौरव योद्धा जोर-जोरसे गरजने लगे । वे युद्धकी विचित्र पद्वतियोंके ज्ञाता थे । उन्होंने माया- मय अस्त्रका आश्रय लेकर युद्ध आरम्भ किया । चित्रसेनकी उस मायासे समस्त कौरवोंपर मोह छा गया । [१] भारत ! उस समय दुर्योधनका एक-एक सैनिक दस-दस गन्धर्वोके साथ लोहा ले रहा था ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ [33] म०भा० (द्वितीय खण्ड) ५८
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