महाभारत वन पर्व अध्याय 241 श्लोक 25-32
एकचत्वारिंशदधिकद्विशततम (241) अध्याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )
राजन् ! तदनन्तर गन्धर्वोकी विशाल सेनासे पीडित हो वे सभी योद्धा, जो पहले जीतनेका हौसला रखते थे, भयभीत हो युद्धसे भाग चले । जनमेजय ! जब कौरवोंके सभी सैनिक युद्ध छोडकर भागने लगे उस समय भी सूर्यपुत्र कर्ण पर्वतकी भॉंति अविचलभावसे उस युद्धभूमिमें डटा रहा । दुर्योधन, कर्ण और सुबलपुत्र शकुनि-ये उस समरागंणमें यद्यपि बहुत घायल हो गये थे, तथापि गन्धर्वोसे युद्ध करते रहे । इसपर सभी गन्धर्व एक साथ संगठित हो कर्णको मार डालनेकी इच्छासे सौ-सौ तथा हजार-हजारका दल बांधकर रणभूमिमें कर्णके ऊपर टूट पड़े । उन महाबली वीरोंने सूतपुत्र कर्णके बधकी इच्छा रखकर उसके ऊपर चारों ओरसे तलवार, पट्टिश, शूल और गदाओंद्वारा प्रहार आरम्भ किया । किन्हींने उसके रथका जुआ काट दिया, दूसरोंने ध्वजा काटकर गिरा दी । कुछ लोगोनें ईषादण्डके टुकडे-टुकडे कर दिये । कुछ गन्धर्वोने कर्णके घोडोंको यमलोक पहुंचा दिया तथा दूसरोंने सारथिको मार गिराया । किसी एकने छत्र, दूसरोंने वरूथ और अन्य सैनिकोंने रथके बन्धन काट डाले । गन्धर्वो की संख्या कई हजार थी । 1.लोहेकी चद्दर या सीकड़ोंका बना हुआ आवरण बरूथ कहलाता है । पहले यह शत्रुके आघातसे रथको रक्षित रखनेके लिये उसके ऊपर डाला जाता था । उन्होंने कर्णके रथको तिल-तिल करके काट दिया । तब सूतपुत्र कर्ण हाथमें तलवार और ढाल लिये अपने रथसे कूद पड़ा और विकर्णके रथपर बैठकर अपने प्राण बचानेके लिये उसके घोड़ोंको जोर-जोरसे हांकने लगा ।
इस प्रकार श्री महाभारत वनपर्वके अन्तर्गत घोषयात्रापर्वमें कर्णपराजविषयक दो सौ इकतालीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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