महाभारत वन पर्व अध्याय 242 श्लोक 1-22
द्विचत्वारिंशदधिकद्विशततम (242) अध्याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )
वैशम्पायनजी कहते हैं-महाराज ! गन्धर्वोने जब महारथी कर्णको भगा दिया, तब दुर्योधनके देखते देखते उसकी सारी सेना भी भाग चली । धृतराष्ट्रके सभी पुत्रोंको युद्धसे पीठ दिखाकर भागते देखकर भी राजा दुर्योधन स्वयं वहीं डटा रहा । उसने पीठ नहीं दिखायी । गन्धर्वोकी उस विशाल सेनाको अपनी ओर आती देख शत्रुओंका दमन करनेवाले वीर दुर्योधनने उसपर बाणोंकी बडी भारी वर्षा प्रारम्भ कर दी । परंतु गन्धर्वोने उस बाणवर्षाकी कुछ भी परवाह नहीं की । उन्होंने दुर्योधनको मार डालनेकी इच्छासे उसके रथको चारों ओरसे घेर लिया । और उसके युग, ईषादण्ड, वरूथ, ध्वजा, सारथि, घोड़ों, तीन वेणुदण्डवाले छत्र और तल्प ( बैठने के स्थान ) को बाणोंद्वारा तिल-तिल करके काट डाला । उस समय दुर्योधन रथहीन होकर धरतीपर गिर पड़ा । यह देख महाबाहु चित्रसेनने झटपट जाकर उसे जीते-जी ही बंदी बना लिया । राजेन्द्र ! दुर्योधनके कैद हो जानेपर गन्धर्वोनें रथपर बैठे हुए दु:शासनको भी सब ओरसे घेरकर पकड़ लिया । अन्य कितने ही गन्धर्व धृतराष्ट्रके पुत्र चित्रसेन और विविशतिको बंदी बनाकर ले चले । कुछ अन्य गन्धर्वोने बिन्द और अनुविन्दकी तथा राजकुलकी समस्त महिलाओंको भी अपने अधिकारमें ले लिया । गन्धर्वोने दुर्योधनकी सारी सेनाको मार भगाया था । वह सेना तथा उसके वे सैनिक, जो पहलेसे ही मैदान छोड़कर भाग गये थे, सब एक साथ पाण्डवोंकी शरण में गये । गन्धर्व जब राजा दुर्योधनको बंदी बनाकर ले जाने लगे, उस समय छकड़े, रसदकी दूकान, वेष-भूषा, सवारी ढोने तथा कंधोपर जुआ रखकर चलनेमें समर्थ बैल आदि सब उपकरणोंको साथ ले कौरव सैनिक पाण्डवोंकी शरणमें गये । सैनिक बोले – कुन्तीकुमारो ! हमारे प्रियदर्शी महाबाहु महाबली धृतराष्ट्रकुमार राजा दुर्योधनको गन्धर्व ( बांधकर ) लिये जाते हैं । आपलोग उनकी रक्षाके लिये दौडिये । वे दु:शासन, दुर्विषह, दुर्मुख, दुर्जय तथा कुरूकुलकी सब स्त्रियोंको भी कैद करके लिये जा रहे हैं । राजाको हृदयसे चाहनेवाले दुर्योधनके सब मन्त्री आर्त एवं दीन होकर उपर्यक्त बातें जोर-जोरसे कहते हुए युधिष्ठिरके समीप गये । दुर्योधनके उन बूढे मन्त्रियोंको इस प्रकार दीन एवं दुखी होकर युधिष्ठिरसे सहायताकी भीख मागते देख भीमसेनने कहा - ‘हमें हाथी घोड़ों आदिके द्वारा बहुत प्रयन्त्र करके कमर कसकर जो काम करना चाहिये था, उसे गन्धर्वोनें ही पूरा कर दिया । ‘ये कौरव कुछ और ही करना चाहते थे; परन्तु इन्हें उल्टा परिणाम देखने पड़ा । कपटद्यूत खेलनेवाले राजा दुर्योधनका यह दुर्मन्त्रणापूर्ण षड् यन्त्र था, जो सफल न हो सका । ‘हमने सुना है, जो लोग असमर्थ पुरूषोंसे द्वेष करते हैं, उन्हें दूसरे ही लोग नीचा दिखा देते हैं । गन्धर्वोने आज अलौकिक पराक्रम करके हमारी इस सुनी हुई बातको प्रत्यक्ष कर दिखाया । ‘सौभाग्य की बात है कि संसारमें कोई ऐसा भी पुरूष है, जो हमलोगोंके प्रिय एवं हितसाधनमें लगा हुआ है । उसने हम लोगोंका भार उतार दिया और हमें बैठे-ही-बैठे सुख पहुंचाया है । ‘हम सर्दी, गर्मी और हवाका कष्ट सहते है, तपस्यासे दुर्बल हो गये हैं और विषम परिस्थितिमें पड़े हैं, तो भी वह दुर्बुद्धि दुर्योधन, जो इस समय राजगद्दीपर बैठकर मौज उड़ा रहा है, हमें इस दुर्दशामें देखनेकी इच्छा रखता है । ‘उस पापाचारी दुरात्मा कौरवके स्वभावका जो लोग अनुसरण करते हैं, वे भी अपनी पराजय देखते हैं । ‘जिसनें दुर्योधनको यह सलाह दी है कि वह वनमें पाण्डवोंसे मिलकर उनकी हंसी उड़ावे, उसने बड़ा भारी पाप किया है । कुन्तीके पुत्र कभी क्रूरतापूर्ण बर्ताव नहीं करते, मैं यह बात आपलोगोंके सामने कह रहा हूँ’ । कुन्तीनन्दन भीमसेनको इस प्रकार विकृत स्वरमें बात करते देख राजा युधिष्ठिरनें कहा-‘भैया ! यह कड़वी बातें कहनेंका समय नहीं है’ ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत घोषयात्रापर्वमें दुर्योधन आदिका अपहरणविषयक दो सौ बयालीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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