महाभारत वन पर्व अध्याय 251 श्लोक 19-30

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एकपच्‍चाशदधिकद्विशततम (251) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: एकपच्‍चाशदधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 19-30 का हिन्दी अनुवाद
शकुनिके समझानेपर भी दुर्योधनको प्रायोपवेशनसे विचलित होते न देखकर दैत्‍योंका कृत्‍याद्वारा उसे रसातलमें बुलाना

धृतराष्‍ट्र पुत्र नृपश्रेष्‍ठ दुर्योधन अपने निश्‍चयपर अटल रहकर आचमन करके पवित्र हो पृथ्‍वीपर कुश का आसन बिछा कुश और वल्‍कलके वस्‍त्र धारण करके बैठा और स्‍वर्ग प्राप्तिकी इच्‍छासे वाणीका संयम करके उपवासके उत्‍तम नियमोंका पालन करने लगा । उस समय उसने मनके द्वारा मरनेका ही निश्‍चय करके स्‍न्‍त्रान-भोजन आदि बाहृा क्रियाओं को सर्वथा त्‍याग दिया था । दुर्योधनके इस निश्‍चयको जानकर पातालवासी भयंकर दैत्‍यों और दानवोंने, जो पूर्वकालमें देवताओंसे पराजित हो चुके थे, मन-ही-मन विचार किया कि इस प्रकार दुर्योधनका प्रणान्‍त होनेसे तो हमारा पक्ष ही नष्‍ट हो जायगा; अत: उसे अपने पास बुलानेके लिये मन्‍त्रविद्यामें निपुण दैत्‍योंने उस समय बृहस्‍पति और शुक्राचार्यके द्वारा वर्णित तथा अथर्ववेद में प्रतिपादित मन्‍त्रोंद्वारा अग्रिविस्‍तारसाध्‍य यज्ञ- कर्मका अनुष्‍ठान आरम्‍भ किया और उपनिषद् ( आरण्‍यंक) में जो मन्‍त्रजपसे युक्‍त हवनादि क्रियाएं बतायी गयी हैं, उनका भी सम्‍पादन किया । तब दृढ़तापूर्वक व्रतका पालन करनेवाले, वेद-वेदागोंके पारंगत विद्वान् ब्राह्मण एकाग्रचित्‍त हो मन्‍त्रोच्‍चारणपूर्वक प्रज्‍वलित अग्रिमें घृत और खीरकी आहुति देने लगे । राजन् ! कर्मकी सिद्धि होनेपर वहां यज्ञकुण्‍डसे उस समय एक अत्‍यन्‍त अद्भुत कृत्‍या जंभाई लेती हुई प्रकट हुई और बोली-‘मैं क्‍या करूं ?’। तब दैत्‍योंने प्रसन्‍त्रचित्‍त होकर उससे कहा-‘तू प्रायोप वेशन करते हुए धृतराष्‍ट्र पुत्र राजा दुर्योधनको यहां ले आ’ । ‘जो आज्ञा कहकर वह कृत्‍या तत्‍काल वहांसे प्रस्थित हुई और पलक मारते-मारते जहां राजा दुर्योधन था, वहां पहुंच गयी । फिर राजाको साथ ले दो ही घडीमें रसातल आ पहुंची और दानवोंको उसके लाये जानेकी सूचना दे दी । राजा दुर्योधनको लाया देख सब दानव रातमें एकत्र हुए उनके मनमें प्रसन्‍त्रता भरी थी और नेत्र हर्षतिरेकसे कुछ खिल उठे थे । उन्‍होंने दुर्योधनसे अभिमानपूर्वक यह बात कही ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्‍तर्गत घोषयात्रापर्वमें दुर्योधनप्रायोपवेशनविषयक दो सौ इक्‍यावनवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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