महाभारत वन पर्व अध्याय 252 श्लोक 1-19

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द्विपच्‍चाशदधिकद्विशततम (252) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: द्विपच्‍चाशदधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
दानवोंका दुर्योधनको समझाना और कर्णके अनुरोध करनेपर दुर्योधनका अनशन त्‍याग करके हस्तिनापुरको प्रस्‍थान


दानव बोले-भरतवंशका भार वहन करनेवाले महाराज सुयोधन ! आप सदा शूरवीरों तथा महामना पुरूषोंसे घिरे रहते हैं, फिर आपने यह आमरण उपवास करनेका साहस क्‍यों किया है ? आत्‍महत्‍या करनेवाला पुरूष तो अधोगतिको प्राप्‍त होता है और लोकमें उसकी निंन्‍दा होती है, जो अयश फैलानेवाली है । जो अभीष्‍ट कार्योके विरूद्ध पड़ते हों, जिनमें बहुत पाप भरे हों तथा जो जड़मूलसहित अपना विनाश करने-वाले हों, ऐसे आत्‍महत्‍या आदि अशुभ कर्मोमें आप-जैसे बुद्धिमान पुरूष नहीं प्रवृत्‍त होते हैं । राजन् ! आपका यह आत्‍महत्‍यासम्‍बन्‍धी विचार धर्म, अर्थ तथा सुख, यश, प्रताप और पराक्रमका नाश करनेवाला तथा शत्रुओंका हर्ष बढानेवाला है, अत: इसे रोकिये । प्रभो ! एक रहस्‍यकी बात सुनिये । नरेश्‍वर आपका स्‍वरूप दिव्‍य है तथा आपके शरीरका निर्माण भी अद्भुत प्रकारसे हुआ है । यह हमलोगोंसे सुनकर धैर्य धारण कीजिये । राजन् ! पूर्वकालमें हम लोगोंने तपस्‍याद्वारा भगवान् शंकरकी आराधना करके आपको प्राप्‍त किया था । आपके शरीरका पर्वभाग-जो नाभिसे ऊपर है, वज्रसमूहसे बना हुआ है । वह किसी भी अस्‍त्र-शस्‍त्रसे विदीर्ण नहीं हो सकता । अनघ ! उसी प्रकार आपका नाभि से नीचे का शरीर पार्वती देवीने पुष्‍पमय बनाया है, जो अपने रूप सौन्‍दर्यसे सित्रयोंके मनको मोहने वाला है । नृपश्रेष्‍ठ ! इस प्रकार आपका शरीर देवी पार्वतीके साथ साक्षात् भगवान् महेश्‍वरने संघटित किया है । अत: राजसिंह ! आप मनुष्‍य नहीं, दिव्‍य पुरूष हैं । भगदत्‍त आदि महापराक्रमी क्षत्रिय दिव्‍यास्‍त्रों के ज्ञाता तथा शौर्यसम्‍पन्‍त्र हैं । वे आपके शत्रुओंका संहार करेंगे । अत: आपको शोक करनेकी आवशयता नहीं है । आपको कोई भय नहीं है । आपकी सहायताके लिये बहुत-से वीर दानव भूतलपर प्रकट हो चुके हैं । दूसरे भी अनेक असुर भीष्‍म, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य आदिके शरीरोंमें प्रवेश करेंगें जिनसे अविष्‍ट होकर वे लोग दयाको त्‍यागकर आपके शत्रुओंके साथ युद्ध करेंगें । कुरूश्रेष्‍ठ ! दानवोंका आवेश होनेपर भीष्‍म, द्रोण आदिकी अन्‍तरात्‍मापर भी उन दानवोंका अधिकार हो जायगा । उस दशामें युद्धमें स्‍नेह रहित हो प्रहार करते हुए वे लोग पुत्रों, भइयों, पितृजनों, बान्‍धवों, शिष्‍यों, कुटुम्‍बीजनों, बालकों तथा बूढोंको भी नहीं छोडेंगे। वे पुरूषसिहं भीष्‍म आदि वीर (दानवोंके आवेशके कारण ) विवश होकर अज्ञानसे मोहित हो जायँगे । उनके मनमें मलिनता आ जायेगी और वे स्‍नेहको दूर छोड़कर प्रसन्‍नतापूर्वक अस्‍त्र-शस्‍त्रोंद्वारा प्रहार करेंगे । इसमें विधिनिर्मित होनहार ही कारण है । एक दूसरेके विरूद्ध भाषण करते हुए वे सब योद्धा कहेंगे –‘आज तू मेरे हाथोंसे जीवित नहीं बच सकता ।’ कुरूश्रेष्‍ठ ! इस प्रकार सभी अस्‍त्र –शस्‍त्रोंकी वर्षा करते हुए पराक्रमपर डटे रहेगें और परस्‍पर होड़ लगाकर जनसंहार करेगें । वे दैवप्रेरित महाबली महात्‍मा पांचों पाण्‍डव भी इन भीष्‍म आदिका सामना करते हुए इनका वध करेंगे । राजन् ! दैत्‍यों तथा राक्षसोंके समुदाय क्षत्रिय योनिमें उत्‍पन्‍त्र हुए हैं, जो आपके शत्रुओंके साथ पराक्रम पूर्वक युद्ध करेगें । वे महाबली वीर दैत्‍य आपके शत्रुओंपर गदा, मुसल, शूल तथा अन्‍य छोटे-बडे़ अस्‍त्र शस्‍त्रोंद्वारा प्रहार करेंगे ।। वीर ! आपके भीतर जो अर्जुनका भय समाया हुआ है, वह भी निकाल देना चाहिये; क्‍योंकि हमलोगोंने अर्जुनके वधका उपाय भी कर लिया है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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