महाभारत वन पर्व अध्याय 289 श्लोक 19-33
एकोननवत्यधिकद्विशततम (289) अध्याय: वन पर्व (रामोख्यानपर्व)
इन्द्रजित् ने तीखे तथा मर्मीोदी बाणों द्वारा सुमित्राकुमार को बींध डाला। इसी प्रकार लक्ष्मण ने भी अग्नि के समान दाहक स्पर्श वाले तीखे सायकों द्वारा रावणकुमार इन्द्रजित् को घायल कर दिया । लक्ष्मण के बाणों की चोट खाकर रावणकुमार क्रोध से मूच्र्छित हो उठा। उसने उनके ऊपर विषधर साँपों के समान विषैले आइ बाण छोड़े । वीर सुमित्राकुमार ने अग्नि के समान दाहक तीन बाधों द्वारा जिस प्रकार इन्द्रजित् के प्राण लिये, वह बताता हूँ; सुनो । एक बाण द्वारा उन्होंने इन्द्रजित् की धनुष धारण करने वाली भुजा को काटकर शरीर से अलग कर दिया। दूसरे बाण द्वारा नाराच लिये हुए शत्रु की दूसरी भुजा को धराशायी कर दिया । ततपश्चात् मोटी धार वाले चमकीले तीसरे बाण से उन्होंने सुन्दर नासिका और शोभाशाली कुण्डलों से विभूषित श.त्रु के मस्तक को ीाी धड़ से अलग कर दिया । भुजाओं और कंधों के कट जाने से उसका धड़ बड़ा भयंकर दिखायी देता था। इन्द्रजित् को मारकर बलवानों में श्रेष्ठ लक्ष्मण अपने अष्त्रों द्वारा उसके सारथि को भी मार गिराया । उस समय घोड़ों ने उस ही खाली रथ को लंकापुरी में पहुँचाया। रावण ने देखा, मेरे पुत्र का रथ उसके बिना ही लौट आया है। तब पुत्र को मारा गया जान भय के मारे रावण का मन उद्भ्रान्त हो उठा। वह शोक और मोह से आतुर होकर विदेहनन्दिनी सीता को मार डालने के लिये उद्यत हो गया । दुष्टात्मा दशानन हाथ में लतवार लेकर अशोकवाअिका में श्रीरामचन्द्रजी के दर्शन की लालसा से बैठी हुई सीता के पास बड़े वेग से दौड़ा गया । दूषित बुद्धि वाले उस निशाचर के दस पापपूर्ण निश्चय को जानकर मन्त्री अविन्ध्य ने समझा-बुझाकर उसका क्रोघ शान् किया। किस युक्ति से उसने रावण को शान्त किया, यह बताता हूँ, सुनो- ‘राक्षसराज ! आप लंका के समुज्जवल सम्राट पद पर विराजमान होकर एक अबला को न मारें। यह स्त्री होकर आपके वश में पड़ी है, आके घर में कैद है; ऐसी दशा में यह ता मरी हुई है ।‘इसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देने से ही इसका वध नहीं होगा, ऐसा मेरा विचार है। इसके पति को ही मार डालिये। उसके मारे जाने पर यह स्वतः मर जायगी ।‘साक्षात् इन्द्र भी पराक्रम में आपकी समानता नहीं कर सकते। आपने अनेक आर युद्ध में इन्द्र सहित संपूर्ण देवताओं को भयभीत (एवं पराजित) किया है।’। इस तरह अनेक प्रकार के वचनों द्वारा अविन्ध्य ने रावण का क्रोध शान्त किया और रावण ने भी उसकी बात मान ली । फिर उस निशाचर ने युद्ध के लिये प्रस्थान करने का निश्चय करके तलवार रख दी और आज्ञा दी- ‘मेरा रथ तैयार किया जाय’।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत रामोख्यान पर्व में इन्द्रजित्-वध विषयक दो सौ नवासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।।289।।
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