महाभारत वन पर्व अध्याय 290 श्लोक 22-33
नवत्यधिकद्विशततम (290) अध्याय: वन पर्व (रामोख्यानपर्व)
उनका यह दुष्कर कर्म देखकर दशानन रावण के मन में भय समा गया। फिर कुपित होकर उसने तुरंत ही तीखे सायकों की वर्षा आरम्भ की । उस समय श्रीरामचन्द्रजी के ऊपर भाँति-भाँति के हजारों शस्त्र गिरने लगे तथा भुशुण्डी, शूल, मुसल, फरसे, नाना प्रकार की शक्तियाँ, शतघ्नी और तीखी धारवाले बाणों की वृष्टि होने लगी । राचस दशानन की उस विकराल माया को देखकर सब वानर भय के मारे चारों दिशाओं में भाग चले । तब श्रीरामचन्द्रजी ने सोने के सुन्दर पंख तथा उत्तम अग्रभाग वाले एक श्रेष्ठ बाण को तरकस से निकालकर उसे ब्रह्मास्त्र द्वारा अभितन्त्रित किया। श्रीराम द्वारा ब्रह्मास्त्र से अभिमन्त्रित किये हुए उस उत्तम बाण को देखकर इन्द्र आदि देवता तथा गन्धर्वों के हर्ष की सीमा न रही। शत्रु के प्रति श्रीराम के मुख से ब्रह्मास्त्र का प्रयोग होता देख देवता, दावन और किन्नर यह समझ गये कि अब इस राक्षस की आयु बहुत थोड़ी रह गयी है । तदनन्तर श्रीरामचन्द्रजी ने उठे हुए ब्रह्मदण्ड के समान भयंकर तथा अप्रतिम तेजस्वी उस रावणविनाशक बाण को छोडत्र दिया । युधिष्ठिर ! श्रीराम द्वारा धनुष को दूर तक खींचकर छोड़े हुए उस बाण के लगते ही राक्षसराज रावण रथ, घोड़े और सारथि सहित इस प्रकार जलने लगा मानो भयंकर लपटों वाली आग के लपेट में आ गया हो।
इस प्रकार अनायास ही महान् कर्म करने वाले श्रीरामचन्द्रजी के हाथों से रावण को मारा गया देख देवता, गन्धर्व तथा चारण बहुत प्रसन्न हुए । तदनन्तर पाँचों भूतों ने उस महान् भाग्यशाली रावण को त्याग दिया। ब्रह्मास्त्र के तेज से दग्ध होकर वह सम्पूर्ण लोकों से भ्रष्ट हो गया । उसके शरीर के धातु, मांस तथा रक्त भी ब्रह्मास्त्र से दग्ध होकर नष्ट हो गये। उसकी राख तक नहीं दिखाई दी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत रामोख्यान पर्व में रावण-वध विषयक दो सौ नब्बेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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