महाभारत वन पर्व अध्याय 309 श्लोक 19-25
नवाधिकत्रिशततम (309) अध्याय: वन पर्व (कुण्डलाहरणपर्व)
धृतराष्ट्रपुत्र दुर्योधन से मिलकर वह कुन्तीपुत्रों का अनिष्ट करने में लगा रहता और सदा महामना अर्जुन से युद्ध करने की इच्छा व्यक्त किया करता था। रालन् ! अर्जुन और कर्ण ने जब से एक दूसरे को देखा था, तभी से कर्ण अर्जुन के साथ स्पर्धा रखता था और अर्जुन भी कर्ण के साथ बड़ी स्पर्धा रखते थे। महाराज ! निःसंदेह सूर्य का यही वह गुपत रहस्य है कि कुन्ती के गर्भ से सूर्य द्वारा उत्पन्न कर्ण सूतकुल में पला था।
1817
उसे दिव्य कुण्डल और कवच से संयुक्त देख युद्ध में अवध्य जानकर राजा युधिष्ठिर सदा संतप्त होते रहते थे। राजेन्द्र ! जब कर्ण दोपहर के समय जल में खड़ा हो हाथ जोड़कर हाथ जोड़कर अंशुमाली भगवान दिवाकर की स्तुति करता था, उस समय बहुत से ब्राह्मण धन के लिये उसके पास आते थे। उस अवसर पर उसके पास कोई ऐसी वस्तु नहीं थी, जो ब्राह्मणों के लिये अदेय हो। इन्द्र भी उसी समय ब्राह्मण बनकर वहाँ उपस्थित हुए और बोले- ‘मुझे भिक्षा दो।’ यह सुनकर राधानन्दन कर्ण ने उत्तर दिया- ‘विप्रवर ! आपका स्वागत है’।
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