महाभारत वन पर्व अध्याय 64 श्लोक 126-132
चतुःषष्टितम (64) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)
‘यदि आपलोग शत्रुसमूह का संहार करनेवाले मेरे प्रियतम पुरूषसिंह महाराज नल के विषय में कुछ जानते हो तो शीघ्र बतावें’। उस महान् समूह का मालिक और समस्त यात्रीदल का संचालन (वणिक्) शुचिनाम से प्रसिद्ध था। उसने उस सुन्दरी से कहा-‘कल्याणि ! मेरी बात सुनो। ‘शुचिस्मिते ! मैं इस दल का नेता और संचालन हूं। यशस्विनी ! मैंने नल नामधारी किसी मनुष्य को इस वन में नहीं देखा है। ‘शुचिस्मिते ! मैं इस दल का नेता और संचालन हूं। यशस्विनि ! मैंने नल नामधारी किसी मनुष्य को इस वन में नहीं देखा है। ‘यह सम्पूर्ण वन मनुष्येतर प्राणियों से भरा है। इसके भीतर हाथियों, चीतों, भैंसों, सिंहों, रीछों और मृगों को ही मैं देखता आ रहा हूं। ‘तुम-जैसी मानव-कन्या के सिवा और किसी मनुष्य को मैं इस विशाल वन में नहीं देख रहा हूं। इसलिये यक्षराज मणिभद्र आज हमपर प्रसन्न हों’। सार्थवाहने कहा-राजकुमारी ! हमारा यह दल शीघ्र ही सत्यदर्शी चेदिराज सुबाहु के जनपद (नगर) में विशेष लाभ के उद्देश्य से जायगा।
« पीछे | आगे » |