महाभारत वन पर्व अध्याय 91 श्लोक 20-25
एकनवतितम (91) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
‘भरतश्रेष्ठ ! मैं कर्ण को अच्छी तरह जानता हूं। वह सत्यप्रतिज्ञ, अत्यन्त उत्साही, महापराक्रमी और महाबली है।। ‘‘बड़े-बड़े संग्राम में उसकी समानता करने वाला कोई नहीं है। वह महान् युद्धविशारद, महाधनुर्धर, अस्त्र-शस्त्रों का महान् ज्ञाता, श्रेष्ठ, सुन्दर महेश्वरपुत्र कार्तिकेय के समान पराक्रमी, सूर्यदेवता का पुत्र और शक्तिशाली वीर है। इसी प्रकार मैं अर्जुन को भी जानता हूं। वह कार्तिकेय से भी बढ़कर है, उसमें स्वभाव से ही दुःसह पुरूषार्थ भरा हुआ है। युद्ध में कर्ण अर्जुन की सेालहवी कला के बराबर भी नहीं है। शत्रुदमन ! तुम्हारे मन में जिस बात को लेकर कर्ण से भय बना रहता है, मैं अर्जुन के लौटने पर तुम्हारे उस भय को भी दूर कर दूंगा। वीरवर ! तीर्थयात्रा के विषय में जो तुम्हारा मानसिक संकल्प है, उसके विषय में महर्षि लोमश निश्चय ही तुमसे सब कुछ बतावेंगे। ‘‘भरतनन्दन ! तीर्थों में जो कुछ तपस्यायुक्त फल प्राप्त होता है, वह सब ये ब्रह्मर्षि लोमश तुम्हें बतायेंगे, तुम्हें इस पर विश्वास करना चाहिये। उसमें अन्यथाबुद्धि नहीं करनी चाहिये’’।
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