महाभारत विराट पर्व अध्याय 31 श्लोक 28-31
एकत्रिंश (31) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
शत्रुसमूह को रौंद डालने वाले वे नरश्रेष्ठ कुन्तीपुत्र घोड़े ुते हुए रथों पर बैइकर बड़ी प्रसन्नता के साथ राजभवन से बाहर निकले। वे बड़े वेग से चले। उन्होंने अपने यथार्थ स्वरूप को अीाी तक छिपा रक्खा था। वे सबके सब युद्ध की कला में अत्यन्त निपुण थे। कुरुवंशशिरोमणि वे चारों महारथी कुन्तीपुत्र सुवर्णमण्डित रथों पर आरूढ़ हो एक ही साथ विराट के पीछे-पीछे चले। चारों भाई पाण्डव शूरवीर और सत्यपराक्रमी थे। उन वीरों ने अपने विशाल और सुदृढ़ धनुषों की डोरियों करे यथाशक्ति ऊपर खींचकर धनुष के दूसरे सिरे पर चढ़ाया। फिर सुन्दर वरूत्र धारण करके चन्दन से चर्चित हो उन समसत वीर पाण्डवों ने नरदेव विराट के आज्ञा से शीघ्रतापूर्वक अपने घोड़े हांक दिये। अच्छी तरह रथ का भार वहन करने वाले वे स्वर्णभूषित विशाल अश्व हाँके जाने पर श्रेणीबद्ध होकर उड़ते हुए पचियों के समान दिखायी देने लगे।। जिनके गण्डस्थल से मद की धारा बहती थी, ऐसे भयंकर मतवाले हाथी तथा सुन्दर दाँतों वाले साठ वर्ष के मदवर्षी गजराज, जिन्हें युद्धकुशल महावतों ने शिक्षा दी थी, सवारों को अपनी पीठ पर वढ़ाये राजा विराट के पीछे-पीछे इस प्रकार जा रहे थे, मानो चलते-फिरते पर्वत हों। युद्ध की कला में कुशल, प्रसन्न रहने वाले तथा उत्तम जीविका वाले मत्स्यदेश के प्रधान-प्रधान वीरों की उस सेना में आठ हजार रथी, एक हजार हाथी सवार तथा साठ हजार घुड़सवार थे, जो युद्ध के लिये तैयार होकर निकले थे। भरतर्षभ ! उनसे विराट की यह विशाल वाहिनी अत्यन्त सुशोभित हो रही थी। राजन् ! उस समय गौओं के पदचिन्ह देखती युद्ध के लिये प्रस्थित हुई विराट की वह श्रेष्ठ सेना अपूर्व शोभा पा रही थी। उसमें ऐसे पैदल सैनिक भरे थे, जिनके हाथों में मजबूत हथियार थे। साथ ही हाथी, घोड़े तथा रथ के सवारों से भी वह सेना परिपूर्ण थी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत गोहरणपर्व में दक्षिण दिशा की गौओं के अपहरण के प्रसंग में मत्स्यराज के युद्धोद्योग से सम्बन्ध रखने वाला इकतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ। (दक्षिणात्य अधिक पाठ के 13 श्लोक मिलाकर कुल 48 श्लोक हैं)
« पीछे | आगे » |