महाभारत शल्य पर्व अध्याय 12 श्लोक 1-25
द्वादश (12) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
भीमसेन और शल्य का भयानक गदायुद्ध तथा युधिष्ठिर के साथ शल्य का युद्ध, दुर्योधन द्वारा चेकितान का और युधिष्ठिर द्वारा चन्द्रसेन एवं दु्रमसेन का वध, पुनः युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध
संजय कहते हैं- राजन् ! अपने सारथि को गिरा हुआ देख मद्रराज शल्य वेगपूर्वक लोहे की गदा हाथ में लेकर पर्वत के समान अविचल भाव से खडे़ हो गये । वे प्रलयकाल की प्रज्वलित अग्नि, पाशधारी यमराज, शिखरयुक्त कैलास, वज्रधारी इन्द्र, त्रिशूलधारी रूद्र तथा जंगल के मतवाले हाथी के समान भयंकर जान पड़ते थे। भीमसेन बहुत बड़ी गदा हाथ में लेकर वेगपूर्वक उनके ऊपर टूट पडे़। फिर तो शंखनाद, सहस्त्रों वाद्यों का गम्भीर घोष तथा शूरवीरों का हर्ष बढ़ानेवाला सिंहनाद सब ओर होने लगा। योद्धाओं में महान गजराज के समान पराक्रमी उन दोनों वीरों को देखकर आपके और शत्रुपक्ष के योद्धा सब ओर से वाह-वाह कहकर उनके प्रति सम्मान प्रकट करने लगे। संसार में मद्रराज शल्य अथवा यदुनन्दन बलरामजी के सिवा दूसरा कोई ऐसा योद्धा नहीं है, जो युद्ध में भीमसेन का वेग सह सके । इसी प्रकार महामना मद्रराज शल्य की गदा का वेग भी रणभूमि में भीमसेन के सिवा दूसरा कोई योद्धा नहीं सह सकता। शल्य और भीमसेन दोनों वीर हाथ में गदा लिये साँड़ों की तरह गर्जते हुए चक्कर लगाने और पैंतरे देने लगे। मण्डलाकार गति से घूमने में, भाँति-भाँति के पैंतरे दिखाने की कला में तथा गदा का प्रहार करने में उन दोनों पुरूषसिंह में कोई भी अंतर नहीं दिखायी देता था, दोनों एक-से जान पड़ते थे । तपाये हुए उज्जवल सुवर्णमय पत्रों से जड़ी हुई शल्य की वह भयंकर गदा आग की ज्वालाओं से लिपटी हुई-सी प्रतीत होती थी । इसी प्रकार मण्डलाकार गति से विचित्र पैंतरों के साथ विचरते हुए महामनस्वी भीमसेन की गदा बिजलीसहित मेघ के समान सुशोभित होती थी । राजन् ! मद्रराज ने अपनी गदा से जब भीमसेन की गदा पर चोट की, तब वह प्रज्वलित-सी हो उठी और उससे आग की लपटें निकलने लगीं । इसी प्रकार भीमसेन की गदा से ताडि़त होकर शल्य की गदा भी अंगारे बरसाने लगी। वह अद्भुत-सा दृश्य हुआ । जैसे दो विशाल हाथी दाँतो से और दो बडे़-बडे़ साँड़ सींगों से एक दूसरे पर चोट करते हैं, उसी प्रकार अंकुशों जैसी उन श्रेष्ठ गदाओं द्वारा वे दोनों वीर एक दूसरे पर आघात करने लगे । उन दोनों के अंगों में गदा की गहरी चोटों से घाव हो गये थे। अतः दोनों ही क्षणभर में खून से नहा गये। उस समय खिले हुए दो पलाशवृक्षों के समान वे दोनों वीर देखने ही योग्य जान पड़ते थे ।मद्रराज गदा से दायें-बायें अच्छी तरह चोट खाकर भी महाबाहु भीमसेन विचलित नहीं हुए। वे पर्वत के समान अविचल भाव से खडे़ रहे। इसी प्रकार भीमसेन की गदा के वेग से बारंबार आहत होने पर भी शल्य को उसी प्रकार व्यर्था नहीं हुई, जैसे दन्तार हाथी के आघात से महान पर्वत पीड़ित नहीं होता । उस समय उन दोनों पुरूषसिंहों की गदाओं के टकराने की आवाज सम्पूर्ण दिशाओं में जो वज्रों के आघात के समान सुनायी देती थी । महापराक्रमी भीमसेन और शल्य दोनों वीर अपनी विशाल गदाओं को ऊपर उठाये कभी पीछे लौट पड़ते, कभी मध्यम मार्ग में स्थित होते और कभी मण्डलाकार घूमने लगते थे । वे युद्ध करते-करते आठ कदम आगे बढ़ आये और लोहे के डंडे उठाकर एक दूसरे को मारने लगे। उनका पराक्रम अलौकिक था। उन दोनों में उस समय भयानक संघर्ष होने लगा । वे दोनों युद्धकला के विद्वान्, एक दूसरे को कुचलते हुए मण्डलाकार विचरते और अपना-अपना विशेष कार्य कौशल प्रदर्शित करते थे । तदनन्तर वे पुनः अपनी भयंकर गदाएँ उठाकर शिखरयुक्त दो पर्वतों के समान परस्पर आघात करने और मण्डलाकार गति से विचरने लगे । युद्धविषयक का विशेष के ज्ञात वे दोनों वीर अविचलभाव से रणभूमि में डटे हुए थे। वे एक दूसरे पर क्रोधपूर्वक गदाओं का प्रहार करके अत्यन्त घायल हो गये और दो इन्द्र-ध्वजों के समान एक ही साथ पृथ्वीपर गिर पडे़। उस समय दोनों सेनाओं के वीर हाहाकार करने लगे ।
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