महाभारत शल्य पर्व अध्याय 12 श्लोक 26-44
द्वादश (12) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
इधर गदाधारी भीमसेन पलक मारते-मारते पुनः होश में आकर उठ खडे़ हुए विहलता के कारण मतवाले पुरूष- के समान मद्रराज को युद्ध के लिये ललकारने लगे । तब आपके सैनिक नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लेकर भाँति-भाँति के रणवाद्यों की गम्भीर ध्वनि के साथ पाण्डवसेना से युद्ध करने लगे । महाराज ! दुर्योधन आदि कौरववीर दोनों हाथ और शस्त्र उठाकर महान कोलाहल एवं सिंहनाद करते हुए शत्रुओं पर टूट पडे़ । उस कौरवदल को धावा करते देख पाण्डव-वीर सिंह समान गर्जना करके दुर्योधन आदि की ओर बढ़ चले। भरतश्रेष्ठ ! आपके पुत्रने तुरन्त ही एक प्रास का प्रहार करके उन आक्रमणकारी पाण्डव योद्धाओं में से चेकितान की छातीपर गहरी चोट पहुँचायी । आपके पुत्र द्वारा ताडि़त होकर चेकितान अत्यन्त मूर्छित हो रथ की बैठक में गिर पड़ा। उस समय उसका सारा शरीर खून से लथपथ हो गया था । चेकितान को मारा गया देख पाण्डव महारथी पृथक्-पृथक् बाणों की लगातार वर्षा करने लगे । महाराज ! विजय से उल्लसित होनेवाले पाण्डव सेनाओं में सब ओर निर्भय विचरते थे। उस समय वे देखने ही योग्य थे । तत्पश्चात् कृपाचार्य, कृतवर्मा और महारथी शकुनि मद्रराज शल्य को आगे करके धर्मराज युधिष्ठिर से युद्ध करने लगे।। राजाधिराज ! आपका पुत्र दुर्योधन अत्यन्त बल-पराक्रम से सम्पन्न द्रोणहन्ता धृष्टधुम्न के साथ जूझने लगा।। राजन् ! आपके पुत्र से प्रेरित हो तीन हजार योद्धा अश्वत्थामा को अगुआ बनाकर अर्जुन के साथ युद्ध करने लगे।। नरेश्वर ! जैसे हंस महान सरोवर में प्रवेश करते हैं, उसी प्रकार आपके सैनिक समरांगण में विजय का दृढ़ संकल्प ले प्राणों का मोह छोड़कर शत्रुओं की सेना में जा घुसे । फिर तो एक दूसरे के वध की इच्छावाले उभयपक्ष के सैनिकों में घारे युद्ध होने लगा। सभी एक दूसरे के संहार के लिये सचेष्ट थे और वह युद्ध उनकी पारस्परिक प्रसन्नता को बढ़ा रहा था । राजन् ! बडे़-बडे़ वीरों का विनाश करनेवाले उस घोर संग्राम के आरम्भ होते ही वायु की प्रेरणा से धरती की भयंकर धूल ऊपर उठने लगी । उस समय उस धूल के अन्धकार में समस्त योद्धा निर्भय-से होकर युद्ध कर रहे थे। पाण्डव तथा कौरव योद्धा जो अपना नाम लेकर परिचय देते थे, उसे ही सुनकर हमलोग एक दूसरे को पहचान पाते थे । पुरूषसिंह ! उस समय इतना खून बहा कि उससे वहाँ छायी हुई धूल बैठ गयी। उस धूलजनित अन्धकार का नाश होने पर सम्पूर्ण दिशाएँ स्वच्छ हो गयीं । इस प्रकार घोर भयानक संग्राम चलने लगा। उस समय आपके और शत्रुपक्ष के योद्धाओं में से कोई भी युद्ध से विमुख नहीं हुआ। सबका लक्ष्य था ब्रह्यलोक की प्राप्ति। वे सभी सैनिक युद्ध में विजय चाहते और उत्तम युद्ध के द्वारा पराक्रम दिखाते हुए स्वर्गलोक पाने की अभिलाषा रखते थे । सभी योद्धा स्वामी के दिये हुए अन्न के ऋण के उऋण होने के लिये उनके कार्य को सिद्ध करने का दृढ़ निश्चय किये मन में स्वर्ग की अभिलाषा रखकर उस समय उत्साहपूर्वक युद्ध कर रहे थे ।
« पीछे | आगे » |