महाभारत शल्य पर्व अध्याय 58 श्लोक 17-35
अष्टपन्चाशत्तम (58) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
इस दुर्योधन की सेना मारी गयी थी। यह परास्त हो गया था और अब राज्य पाने से निराश हो वन में चला जाना चाहता था। इसीलिये भागकर पोखरे में छिपा था, ऐसे हताश शत्रु को कौन बुद्धिमान पुरुष समरांगण में द्वन्द्व युद्ध के लिये आमन्त्रित करेगा ? कहीं ऐसा न हो कि हमारे जीते हुए राज्य को दुर्योधन फिर हड़प ले। उसने तेरह वर्षो तक गदा द्वारा युद्ध करने का निरन्तर श्रम एवं अभ्यास किया है। देखो, यह भीमसेन के वध की इच्छा से इधर-उधर और ऊपर की ओर विचर रहा है । यदि महाबाहु भीमसेन इसे अन्यायपूर्वक नहीं मारेंगे तो यह धृतराष्ट्र का पुत्र दुर्योधन ही आपका तथा समस्त कुरुकुल का राजा होगा । महात्मा भगवान केशव का यह वचन सुनकर अर्जुन ने भीमसेन के देखते हुए अपनी बायीं जांघ को ठोंका । इससे संकेत पाकर भीमसेन रणभूमि में गदा द्वारा यमक तथा अन्य प्रकार के विचित्र मण्डल दिखाते हुए विचरने लगे । राजन् ! पाण्डुपुत्र भीमसेन आपके शत्रु को मोहित करते हुए से दक्षिण, वाम और गोमूत्रक मण्डल से विचरने लगे । इसी प्रकार गदायुद्ध की प्रणाली का विशेषज्ञ आपका पुत्र भी भीमसेन के वध की इच्छा से शीघ्रतापूर्वक विचित्र पैंतरे देता हुआ विचरने लगा । वैर का अन्त करने की इच्छा वाले वे दोनों वीर रणभूमि में चन्दन और अगुरु से चर्चित भयंकर गदाएं घुमाते हुए कुपित काल के समान प्रतीत होते थे । जैसे दो गरुड़ किसी सर्प के मांस को पाने की इच्छा से परस्पर लड़ रहे हों, उसी प्रकार एक दूसरे के वध की इच्छा वाले वे दोनों पुरुषप्रवर प्रमुख वीर भीमसेन और दुर्योधन आपस में जूझ रहे थे । विचित्र मण्डलों ( पैंतरों ) से विचरते हुए राजा दुर्योधन और भीमसेन की गदाओं के टकराने से वहां आग की लपटे प्रकट होने लगी । राजन् ! जैसे वायु से विक्षुब्ध हुए दो समुद्र एक दूसरे से टकरा रहे हों अथवा दो मतवाले हाथी परस्पर चोट कर रहे हों, उसी प्रकार वहां एक दूसरे पर समान रूप से प्रहार करने वाले दोनों बलवान् वीरों के परस्पर चोट करने पर गदाओं के टकराने की आवाज वज्र की कड़क के समान प्रकट होती थी । उस समय उस अत्यन्त भयंकर घमासान युद्ध में शत्रुओं का दमन करने वाले वे दोनों वीर परस्पर युद्ध करते हुए बहुत थक गये । शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश ! तब दोनों दो घड़ी तक विश्राम करके पुनः विशाल गदाएं हाथ में लेकर क्रोधपूर्वक एक दूसरे पर प्रहार करने लगे । राजेन्द्र ! गदा की चोट से एक दूसरे को घायल करते हुए उन दोनों में खुले तौर पर घोर युद्ध हो रहा था । बैल के समान विशाल नेत्रों वाले वे दोनों वेगशाली वीर समरांगण में परस्पर धावा करके कीचड़ में खड़े हुए दो भैंसों के समान एक दूसरे पर चोट करते थे । उन दोनों के सारे अंग गदा के प्रहार से जर्जर हो गये थे और दोनों ही खून से लथपथ हो गये थे। उस दशा में वे हिमालय पर खिले हुए दो पलाश वृक्षों के समान दिखायी देते थे । जब अर्जुन ने छिद्र की ओर संकेत किया, तब कनखियों से उसे देखकर दुर्योधन सहसा भीमसेन की ओर बढ़ा ।
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