महाभारत शल्य पर्व अध्याय 58 श्लोक 36-56

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अष्टपन्चाशत्तम (58) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 36-56 का हिन्दी अनुवाद

रणभूमि में उसे निकट आया देख बुद्धिमान एवं बलवान् भीम ने उस पर बड़े वेग से गदा चलायी । प्रजानाथ ! उन्हें गदा चलाते देख आपका पुत्र सहसा उस स्थान से हट गया और वह गदा व्यर्थ होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी । कुरुश्रेष्ठ ! उस प्रहार से अपने को बचाकर आपके पुत्र ने भीमसेन पर बड़े वेग से गदा द्वारा आघात किया । उसकी चोट से अमित तेजस्वी भीम के शरीर से रक्त की धारा बह चली साथ ही उस प्रहार के गहरे आघात से अन्हें मूर्छा-सी आ गयी । उस समय दुर्योधन यह न जान सका कि रणभूमि में पाण्डु पुत्र भीमसेन अधिक पीडि़त हो गये हैं। यद्यपि उनके शरीर में अत्यन्त वेदना हो रही थी तो भी भीमसेन उसे संभाले रहे । उसने यही समझा कि रणक्षेत्र में भीमसेन अब मुझ पर प्रहार करने के लिये खड़े है; अतः बचने की ही चेष्टा में संलग्न होकर आपके पुत्र ने पुनः उन पर प्रहार नहीं किया । राजन् ! तदनन्तर दो घड़ी सुस्ता कर प्रतापी भीमसेन ने निकट आये हुए दुर्योधन पर बड़े वेग से आक्रमण किया । भरतश्रेष्ठ ! अमित तेजस्वी भीम को रोषपूर्वक धावा करते देख आपके पुत्र ने उनके उस प्रहार को व्यर्थ कर देने की इच्छा की । राजन् ! भीमसेन को छलने के लिये आपके महामनस्वी पुत्र ने पहले वहां स्थिरतापूर्वक खड़े रहने का विचार करके फिर उछल कर दूर हट जाने की इच्छा की । भीमसेन समझ गये कि राजा दुर्योधन क्या करना चाहता है। अतः पैंतरे से छलने और ऊपर उछलने की इच्छा वाले दुर्योधन के ऊपर आक्रमण करके भीमसेन ने सिंह के समान गर्जन की और उसकी जांघों पर बड़े वेग से गदा चलायी ।। भयंकर कर्म करने वाले भीमसेन के द्वारा चलायी हुई वह गदा वज्रपात के समान गिरी और दुर्योधन की सुन्दर दिखायी देने वाली जांघों को उसने तोड़ दिया । पृथ्वीनाथ ! इस प्रकार जब भीमसेन ने उसकी जांघें तोड़ डालीं, तब आपका पुत्र पुरुषसिंह दुर्योधन पृथ्वी को प्रतिध्वनित करता हुआ गिर पड़ा । फिर तो समस्त भूपालों के स्वामी वीर राजा दुर्योधन के धराशायी होने पर वहां बिजली की गड़गड़ाहट के साथ प्रचण्ड हवा चलने लगी, धूलि की वर्षा होने लगी और वृक्षों, वनों एवं पर्वतों सहित सारी पृथ्वी कांपने लगी । पृथ्वीपति दुर्योधन के गिर जाने पर आकाश से पुनः महान् शब्द और बिजली की कड़क के साथ प्रज्वलित, भयंकर एवं विशाल उल्का भूमि पर गिरी । भरतनन्दन ! आपके पुत्र के धराशायी हो जाने पर इन्द्र ने वहां रक्त और धूलि की वर्षा की । भरतश्रेष्ठ ! उस समय आकाश में यक्षों, राक्षसों तथा पिशाचों का महान् कोलाहल सुनायी देने लगा । उस घोर शब्द के साथ बहुत से पशुओं और पक्षियों की भयानक आवाज भी सम्पूर्ण दिशाओं में गूंज उठी । वहां जो घोड़े, हाथी और मनुष्य शेष रह गये थे, वे सभी आपके पुत्र के मारे जाने पर महान् कोलाहल करने लगे । राजन् ! जब आपका पुत्र मार गिराया गया, उस समय इस भूतल पर भेरी, शंखों और मृदंगों का गम्भीर घोष होने लगा । नरेश्वर ! वहां सम्पूर्ण दिशाओं में नाचते हुए अनेक पेर और अनेक बांह वाले घोर एवं भयंकर कबन्ध व्याप्त हो रहे थे ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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