महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 153 श्लोक 86-102

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त्रिपञ्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 86-102 का हिन्दी अनुवाद

अहो! धिक्‍कार है। तुम लोग गीध की बातों में आकर मुर्खों के समान पुत्रस्नेह से रहित हुए प्रेमशून्य होकर कैसे घर को लौट जा रहे हो? मनुष्‍यों! यह गीध तो बड़ा पापी और अपवित्र हृदय वाला है। इसकी बात सुनकर तुम लोग पुत्र शोक से जलते हुए भी क्यों लौटे जा रहे हो? सुख के बाद दु:ख और दु:ख के बाद सुख आता है। सुख और दु:ख से घिरे हुए इस जगत् में निरन्तर (सुख या दु:ख) अकेला नहीं बना रहता है। यह सुन्‍दर बालक तुम्हारें कुल की शोभा बढा़ने वाला है। यह रूप और यौवन से सम्‍पन्न है तथा अपनी कान्ति से प्रकाशित हो रहा है। मूर्खो! इस पुत्र को पृथ्‍वी पर ड़ालकर तुम कहां जाओगे? मनुष्‍यों! मैं तो अपने मन से इस बालक को जीवित ही देख रहा हूं , इसमें संशय नहीं है। इसका नाश नहीं होगा, तुम्‍हें अवश्‍य ही सुख मिलेगा। पुत्र शोक से संतप्त होकर तुम लोग स्वयं ही मृतक–तुल्‍य हो रहे हो; अत: तुम्‍हारे लिये इस तरह लौट जाना उचित नहीं है। इस बालक से सुख की सम्‍भावना करके सुख पाने की सुदृढ़ आशा धारण कर तुम सब लोग अल्‍पबुद्धि मनुष्‍य के समान स्‍वयं ही इसे त्यागकर अब कहां जाओगे? भीष्‍म जी ने कहा- राजन्! वह सियार सदा श्‍मशान भूमि में ही निवास करता था और अपना काम बनाने के लिये रात्रिकाल की प्रतीक्षा कर रहा था; अत: उसने धर्मविरोधी, मिथ्‍या तथा अमृततुल्‍य वचन कहकर उस बालक के बन्‍धु–बान्‍धवों को बीच में ही अटका दिया। वे न जा पाते थे और न रह पाते थे, अन्‍त में उन्‍हें ठहर जाना पड़ा। तब गीध ने कहा- मनुष्‍यों! यह वन्‍य प्रदेश प्रेतों से भरा है। इसमें बहुत–से यक्ष और राक्षस निवास करते हैं तथा कितने ही उल्‍लू हू-हू की आवाज कर रहे हैं; अत: यह स्‍थान बड़ा भयंकर है। यह अत्यन्त घोर, भयानक तथा नील मेघ के समान काला अन्‍धकारपूर्ण है। इस मुर्दो को यहीं छोड़कर तुम लोग प्रेतकर्म करो। जब तक सूर्य डूब नहीं जाते हैं और जब तक दिशाएं निर्मल हैं, तभी तक इसे यहां छोड़कर तुम लोग इसके प्रेत कार्य में लग जाओ। इस वन में बाज अपनी कठोर बोली बोलते हैं, सियार भंयकर आवाज में हआं–हुआं कर रहे हैं, सिंह दहाड़ रहे हैं और सूर्य अस्‍ताचल को जा रहे हैं। चिता के काले धुएं से यहां के सारे वृक्ष उसी रंग में रंग गये हैं। श्‍मशानभूमि में यहां के निराहार प्राणी (प्रेत-पिशाच आदि) गरज रहे हैं। इस भंयकर प्रदेश में रहने वाले सभी प्राणी विकराल शरीर के हैं। ये सब के सब मांस खाने वाले और विकृत अंग वाले हैं। वे तुम लोगों को धर दबायेंगे। जंगल का यह भाग क्रूर प्राणियों से भरा हुआ है। अब तुम्‍हें यहां बहुत बडे़ भय का सामना करना पडे़गा। यह बालक तो अब काठ के समान निष्‍प्राण हो गया है। इसे छोडो़ और सियार की बातों के लाभों में न पडो़। यदि तुम लोग विवेकभ्रष्‍ट होकर सियार की झूठी और निष्‍फल बातें सुनते रहोगे तो सबके सब नष्‍ट हो जाओगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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