महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 187 श्लोक 27-31
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सप्ताशीत्यधिकशततम (187) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
देह का नाश होने पर भी जीव का नाश नहीं होता। जो जीव की मृत्यु बताते हैं, वे अज्ञानी हैं और उनका वह कथन मिथ्या है। जीव तो इस मृत देह का त्याग करके दूसरे शरीर में चला जाता है। शरीर के पांच तत्त्वों का अलग–अलग हो जाना ही शरीर का नाश है। इस प्रकार आत्मा सम्पूर्ण प्राणियों के भीतर उनकी हृदयगुफा में गूढ़भाव से छिपा रहता है। वह तत्त्वदर्शी पुरूषों द्वारा तीक्ष्ण एवं सूक्ष्म बुद्धि से साक्षात् किया जाता है। जो विद्वान् परिमित आहार करके रात के पहले और पिछले पहर में सदा ध्यानयोग का अभ्यास करता है, वह अन्त:करण शुद्ध होने पर अपने हृदय में ही उस आत्मा का साक्षात्कार कर लेता है। चित्त शुद्ध होने पर वह शुभाशुभ कर्मों से अपना सम्बन्ध हटाकर प्रसन्नचित हो आत्मस्वरूप में स्थित हो जाता है और अनन्त आनन्द का अनुभव करने लगता है। समस्त शरीरों में मन के भीतर रहने वाला जो अग्नि के समान प्रकाशस्वरूप चैतन्य है, उसी को समष्टि जीवस्वरूप प्रजापति कहते हैं। उसी प्रजापति से यह सृष्टि उत्पन्न हुई है। यह बात अध्यात्मतत्त्व का निश्चय करके कही गयी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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