महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 284 श्लोक 134-149
चतुरशीत्यधिकद्विशततम (284) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
आप पवित्रों के भी पवित्र और मंगलों के भी मंगल हैं। आप ही गिरिक (अचेतन को भी चेतन करने वाले), हिंडुक (गमनागमन करने वाले ), संसार-वृक्ष, जीव शरीर, प्राण, सत्व, रज, तम, अप्रमद (स्त्रीरहित-ऊर्ध्वरेता), प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, उन्मेष, निमेष (आँखों का खोलना-मींचना), छींकना और जँभाई लेना आदि चैष्टाएँ भी आप ही हैं। आपकी अग्निमयी लाल रंग की दृष्टि भीतर छिपी हुई है। आपके मुख और उदर महान हैं । रोएँ सूई के समान हैं। दाढी-मूछ काली है। सिर के बाल ऊपर की ओर उठे हुए हैं। आप चराचर-स्वरूप हैं। गाने-बजाने के तत्व को जानने वाले हैं। गाना-बजाना आपको अधिक प्रिय है । आप मत्स्य, जलचर और जालधारी घड़ियाल हैं। फिर भी अकल (बन्धन से परे ) हैं। आप केलिकला से युक्त और कलहरूप हैं। आपही अकाल, अतिकाल, दुष्काल तथा काल हैं । मृत्यु, क्षुर (छेदन करने का शस्त्र), कृत्य (छेदन करने योग्य ), पक्ष (मित्र) तथा अपक्ष-क्षयंकर (शत्रुपक्ष का नाश करने वाले) भी आप ही हैं। आप मेघ के समान काले, बड़ी-बड़ी दाढों वाले और प्रलयकालीन मेघ हैं ? घण्ट (प्रकाशवान), अघण्ट (अव्यक्त प्रकाशवाले), घटी (कर्मफल से युक्त करनेवाले), घण्टी (घण्टा वाले), चरूचेली (जीवों के साथ क्रीड़ा करने वाले) तथा मिली-मिली (कारणरूप से सबमें व्याप्त) – ये सब आप ही हैं। आप ही ब्रह्म, अग्नियों के स्वरूप, दण्डी, मुण्ड तथा त्रिदण्डधारी हैं । चार युग और चार वेद आपके ही स्वरूप हैं तथा चार प्रकार के होतृ-कर्मों के प्रवर्तक आप ही हैं। आप चारों आश्रमों के नेता तथा चारों वर्णों की सृष्टि करने वाले हैं । आप ही अक्षयप्रिय, धूर्त, गणाध्यक्ष और गणाधिप आदि नामों से प्रसिद्ध हैं। आप रक्त वस्त्र तथा लाल फूलों की माला पहनते हैं, पर्वत पर शयन करते और गेरूए वस्त्रसे प्रेम रखते हैं । आप ही शिल्पियों में सर्वश्रेष्ठ शिल्पी (कारीगर) तथा सब प्रकार की शिल्प कला के प्रवर्तक हैं। आप भगदेवता की आँख फोड़ने के लिये अंकुश, चण्ड (अत्यन्त कोप करने वाले) और पूषा के दाँत नष्ट करने वाले हैं । स्वाहा, स्वधा, वषट्-नमस्कार और नमो नम: आदि पद आपके ही नाम हैं। आप गूढ व्रतधारी, गुप्त तपस्या करने वाले, तारकमन्त्र और ताराओं से भरे हुए आकाश हैं । धाता (धारण करने वाले), विधाता (सृष्टि करने वाले), संधाता (जोड़ने वाले), विधाता, धारण और अधर (आधाररहित) भी आपही के नाम हैं। आप ब्रह्मा, तप, सत्य, ब्रह्मचर्य आर्जव (सरलता), भूतात्मा (प्राणियों के आत्मा), भूतों की सृष्टि करने वाले, भूत (नित्यसिद्ध), भूत, भविष्य और वर्तमान की उत्पति के कारण, भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, ध्रुव (स्थिर), दान्त (दमनशील) और महेश्वर हैं । दीक्षित (यज्ञ की दीक्षा लेनेवाले), अदीक्षित, क्षमावान, दुर्दान्त, उद्दण्ड प्राणियों का नाश करने वाले, चन्द्रमा की आवृति करने वाले (मास), युगों की आवृति करने वाले (कल्प), संवर्त (प्रलय) तथा सम्प्रवर्तक (पुन: सृष्टि-संचालन करने वाले) भी आप ही हैं । आप ही काम, बिन्दु, अणु (सुक्ष्म) और स्थूलरूप हैं। आप कनेर के फूल की माला अधिक पसंद करते हैं। आप ही नन्दीमुख, भीममुख (भयंकर मुखवाले), सुमुख, दुर्मुख, अमुख (मुखरहित), चतुर्मुख, बहुमुख तथा युद्ध के समय शत्रु का संहार करने के कारण अग्निमुख (अग्नि के समान मुखवाले) हैं। हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शकुनि (पक्षी के समान असंग), महान सर्पों के स्वामी (शेषनाग) और विराट भी आप ही हैं ।
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