महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 322 श्लोक 15-20
द्वाविंशत्यधिकत्रिशततम (322) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
कोई बालक हो, तरूण हो या बूढ़ा हो, वह जो भी शुभाशुभ कर्म करता है, जन्म-जन्मान्तर में उसी अवस्था में उस-उस कर्म का फल भोगता है। जैसे बछड़ा हजारों गौओं में से अपनी माँ को पहचानकर उसे पा लेता है, वैसे ही पहले का किया हुआ कर्म भी अपने कर्मा के पास पहुँच जाता है। जैसे मलिन हुआ शस्त्र वस्त्र पीछे जल से धोने पर शुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार जो उपवासपूर्वक तपस्या करते हैं, (उनका अन्त:करण शुद्ध होकर) उन्हें कभी समाप्त न होने वाला महान् सुख मिलता है। महामते ! दीर्घकाल तक की हुई तपस्या से तथा धर्माचरण द्वारा जिनके सारे पाप धुल गये हैं, उनके सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। जैसे आकाश में पक्षियों के और जल में मछलियों के चरण-चिह्न दिखायी नहीं देते, उसी प्रकार पुण्यात्मा ज्ञानियों की भी गति का पता नहीं चलता। दूसरों को उलाहना देने तथा लोगों के अन्यान्य अपराधों की चर्चा करने से कोई प्रयोजन नहीं है । जो सुन्दर, अनुकूल और अपने लिये हितकर जान पडे़ वही कर्म करना चाहिये।
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