महाभारत सभा पर्व अध्याय 19 श्लोक 1-18
एकोनविंश (19) अध्याय: सभा पर्व (राजसूयारम्भ पर्व)
चण्डकौशिक मुनि के द्वारा जरासंध का भविष्य कथन तथा पिता के द्वारा उसका राज्याभिषेक करके वन में जाना
श्रीकृष्ण कहते हैं- राजन् ! कुछ काल के पश्चात् महातपस्वी भगवान् चण्डकौशिक मुनि पुनः मगधदेश में घूमते हुए आये। उनके आगमन से राजा बृहद्रथ को बड़ी प्रसन्नता हुई । वे मन्त्री, अग्रगामी सेवक, रानी तथा पुत्र के साथ मुनि के पास गये। भारत ! पाद्य, अर्ध्य और आचमनीय आदि के द्वारा राजा ने महर्षि का पूजन किया और अपने सारे राज्य के सहित पुत्र को उन्हें सौंप दिया। महाराज ! राजा की ओर से प्राप्त हुई उस पूजा को स्वीकार करके ऐश्वर्यशाली महर्षि ने मगध नरेश को सम्बोधित करके प्रसन्नचित्त से कहा- ‘राजन् ! जरासंध के जन्म से लेकर अब तक की सारी बातें मुझे दिव्य दृष्टि से ज्ञात हो चुकी हैं । राजेन्द्र ! अब यह सुनो कि तुम्हारा पुत्र भविष्य में कैसा होगा ? ‘इस में रूप, सत्त्व, बल और ओज का विशेष आविर्भाव होगा । इस में संदेह नहीं कि तुम्हारा यह पुत्र साम्राज्य लक्ष्मी से सम्पन्न होगा। ‘यह पराक्रमयुक्त होकर सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को प्राप्त कर लेगा । जैसे उड़ते हुए गरूड के वेग को दूसरे पक्षी नहीं पा सकते, उसी प्रकार इस बलवान् राजकुमार के शौर्य का अनुसरण दूसरे राजा नहीं कर सकेंगे । जो लोग इस से शत्रुता करेंगे, वे नष्ट हो जायँगे। ‘‘महीपते ! जैसे नदी का वेग किसी पर्वत को पीड़ा नहीं पहुँचा सकता, उसी प्रकार देवताओं के छोड़े हुए अस्त्र-शस्त्र भी इसे चोट नही पहुँचा सकेंगे। ‘जिन के मस्तक पर राज्याभिषेक हुआ है, उन सभी राजाओें के ऊपर रहकर यह अपने तेज से प्रकाशित होता रहेगा । जैसे सूर्य समस्त ग्रह-नक्षत्रों की कान्ति हर लेते हैं, उसी प्रकार यह राजकुमार समस्त राजाओं के तेज को तिरस्कृत कर देगा। ‘जैसे फतिंगे आग में जलकर भस्म हो जाते हैं, उसी प्रकार सेना और सवारियों से भरे-पूरे समृद्धिशाली नरेश भी इससे टक्कर लेते ही नष्ट हो जायँगे ‘यह समस्त राजाओं की संगृहीत सम्पदाओं को उसी प्रकार अपने अधिकार में कर लेगा, जैसे नदों और नदियों का अधिपति समुद्र वर्षा-ऋतु में बढ़े हुए जलवाली नदियों को अपने में मिला लेता है। ‘यह महाबली राजकुमार चारों वर्णों को भली-भाँति धारण करेगा (उन्हें आश्रय देगा;) ठीक वैसे ही, जैसे सभी प्रकार के धान्यों को धारण करने वाली समृद्धिशालिनी पृथ्वी शुभ और अशुभ सब को आश्रय देती है। ‘जैसे सब देहधारी समस्त प्राणियों के आत्मारूप वायुदेव के अधीन होते हैं, उसी प्रकार सभी नरेश इस की आज्ञा के अधीन होंगे। ‘यह भगधराज सम्पूर्ण लोकों में अत्यन्त बलवान् होगा और त्रिपुरासुर का नाश करने वाले सर्वदुःखहारी महादेव रूद्र की आराधना करके उनका प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त करेगा’। शत्रुसूदन नरेश ! ऐसा कहकर अपने कार्य के चिन्तन में लगे हुए मुनि ने राजा बृहद्रथ को विदा कर दिया। राजधानी में प्रवेश करके अपने जाति-भाइयों और सगे-सम्बन्धियों से घिरे हुए मगध नरेश बृहद्रथ ने उसी समय जरासंध का राज्याभिषेक कर दिया । ऐसा करके उन्हें बड़ा संतोष हुआ । जरासंध अभिषेक हो जाने पर महाराज बृहद्रथ अपनी दोनों पत्नियों के साथ तपोवन में चले गये।
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