महाभारत सभा पर्व अध्याय 19 श्लोक 19-28
एकोनविंश (19) अध्याय: सभा पर्व (राजसूयारम्भ पर्व)
महाराज ! दोनों माताओं और पिता के वनवासी हो जाने पर जरासंध अपने पराक्रम से समस्त राजाओे को वश में कर लिया।
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय ! तदनन्तर दीर्घकाल तक तपोवन में रहकर तपस्या करते हुए महाराज बृहद्रथ अपनी पत्नियों के साथ स्वर्गवासी हो गये। इधर जरासंध भी चण्डकौशिक मुनि के कथनानुसार भगवान् शंकर से सारा वरदान पाकर राज्य की रक्षा करने लगा। वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण के द्वारा अपने जामाता राजा कंस के मारे जाने पर श्रीकृष्ण के साथ उसका वैर बहुत बढ़ गया। भारत ! उसी वैर के कारण बलवान् मगधराज ने अपनी गदा निन्यानबे बार घुमाकर गिरिव्रज से मथुरा की ओर फेंकी । उन दिनों अद्भुत कर्म करने वाले श्रीकृष्ण मथुरा में ही रहते थे । वह उत्तम गदा निन्यानबे योजन दूर मथुरा में जाकर गिरी। पुरवासियों ने उसे देखकर उसकी सूचना भगवान् श्रीकृष्ण को दी । मथुरा के समीप का वह स्थान, जहाँ गदा गिरि थी, गदावसान के नाम से विख्यात हुआ। जरासंध को सलाह देने के लिये बुद्धिमानों में श्रेष्ठ तथा नीतिशास्त्र में निपुण दो मन्त्री थे, जो हंस और डिम्भक के नाम से विख्यात थे । वे दोनों किसी भी शस्त्र से मरने वाले नहीं थे। जनमेजय ! उन दोनों महाबली वीरों का परिचय मैंने तुम्हें पहले ही दे दिया है । मेरा ऐसा विश्वास है, जरासंध और वे तीनों मिलकर तीनों लोकों का सामना करने के लिये पर्याप्त थे। वीरवर महाराज ! इस प्रकार नीति का पालन करने के लिये ही उस समय बलवान् कुकुर, अन्धक और वृष्णि वंश के योद्धाओं ने जरासंध की उपेक्षा कर दी।
« पीछे | आगे » |