महाभारत सभा पर्व अध्याय 38 भाग 18
अष्टात्रिंश (38) अध्याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)
इन्द्र ने कहा- देव! आप सम्पूर्ण जगत के स्त्रष्टा हैं। देवताओं के जो कर्तव्य कार्य हैं, उन सबको सम्पूर्ण जगत के हित के लिये सिद्ध करके आप अपने तेज सहित पुन: परमधामा को पधारिये। भीष्मजी कहते हैं- ऐसा कहकर स्वर्गलोक के स्वामी इन्द्र देवर्षियों के साथ अपने लोक को चले गये। राजन्! तदनन्तर वसुदेवजी ने कंस के भय से सूर्य के समान तेजस्वी अपने नवजात बालक श्रीहरि को नन्दगोप के घर में छिपा दिया। श्रीकृष्ण बहुत वर्षों तक नन्दगोप के ही घर में रहे। एक दिन वहाँ शिशु श्रीकृष्ण एक छकड़े के नीये सोये थे। माता यशोदा उन्हें वहीं छोड़कर यमुना के तट पर चली गयीं। उस समय श्रीकृष्ण शिशुलीला का प्रदर्शन कतरे हुए अपनी हाथ पैर फें फेंकर मधुर स्वर में रोले लगे। पैरों को ऊपर फेंकते समय भगवान केशव ने पैर के अँगूठे से छकड़े को धक्का दे दिया और इस प्रकार एक ही पाँव से छकड़े को उलटकर गिरा दिया। उसके बाद वे स्वयं औंधे मुँह हो गय और माता का स्तन पीने की इच्छा से जोर-जोर से रोने लगे। शिशु के ही पदाघात से छकड़ा उलटकर गिर गया तथा उस पर रखे हुए सभी मटके और घड़े आदि बर्तन चकनाचूर हो गये। यह देखकर सब लोगों बड़ा आश्चर्य हुआ। भरतनन्दन! शूर से नदेश (मथुरामण्डल) के निवासियों को यह अत्यन्त अद्भुत घटना प्रत्यक्ष दिखायी दी तथा वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण ने (आकाश में स्थित) सब देवताओं के देखते-देखते महान् काय एवं विशाल स्तनों वाली पूतना को भी पहले मार डाला था। महाराज! तदनन्तर संकर्षण और विष्णु के स्वरूप बलराम और श्रीकृष्ण दोनों भाई कुछ काल के अनन्तर एक साथ ही घुटनों के बल रेंगने लगे। जैसे चन्द्रमा और सूर्य एक दूसरे की किरणों से बँधकर आकाश में एक साथ विचरते हों, उसी प्रकार बलराम और श्रीकृष्ण सर्वत्र एक साथ चलते फिरते थे। उनकी भुजाएँ सर्प के शरीर की भांँति सुशोभित होती थीं। नरेश्वर! बलराम और श्रीकृष्ण दोनों के अंग धूलि धूसरित होकर बड़ी शोभा पाते। भारत! कभी वे दोनों भाई घुटनों के बल चलते थे, जिससे उनमें घट्टे पड़ गये थे। कभी वे वन में खेला करते और कभी मथते समय दही की घोर लेकर पीया करते थे। एक दिन बालक श्रीकृष्ण एकान्त गृह में छिपकर माखन खा रहे थे। उस समय वहाँ उन्हें कुछ गोपियों ने देख लिया। तब उन यशोदा आदि गोपांगनाओं ने एक रस्सी से श्रीकृष्ण को ऊखल में बाँध दिया। राजन्! उस समय उन्होंने उस ऊखल को यमलार्जुन वृक्षों के बीच में अड़ाकर उन्हें जड़ और शाखाओं सहित तोड़ डाला। वह एक अद्भुत सी घटना घटित हुई। उन वृक्षों पर दो विशालकाय असुर रहा करते थे। वे भी वृक्षों के टूटने के साथ ही अपने प्राणों से हाथ धो बैठे। तदनन्तर वे दोनों भाई श्रीकृष्ण और बलराम बाल्यावस्था की सीमा को पार करके उस ब्रजमण्डल में ही सात वर्ष की अवस्था वाले हो गये। बलराम नीले रंग के और श्रीकृष्ण पीले रंग के वस्त्र धारण करत थे। एक के श्रीअंगों पर पीले रंग का अंगराग लगता था और दूसरे के श्वेत रंग का। दोनों भाई काकपक्ष (सिर के पिछले भाग में बड़े-बड़े केश) धारण किये बछड़े चराने लगे।
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