श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 8 श्लोक 14-24
दशम स्कन्ध: अष्टम अध्याय (पूर्वार्ध)
नंदजी! यह तुम्हारा पुत्र पहले कभी वसुदेवजी के घर भी पैदा हुआ था, इसलिये इस रहस्य को जानने वाले लोग इसे ‘श्रीमान् वासुदेव’ भी कहते हैं । तुम्हारे पुत्र के और भी बहुत-से नाम हैं तथा रूप भी अनेक हैं। इसके जितने गुण हैं और जितने कर्म, उन सबके अनुसार अलग-अलग नाम पड़ जाते हैं। मैं तो उन नामों को जानता हूँ, परन्तु संसार के साधारण लोग नहीं जानते । यह तुम लोगों का परम कल्याण करेगा। समस्त गोप और गौओं को यह बहुत ही आनन्दित करेगा। इसकी सहायता से तुम लोग बड़ी-बड़ी विपत्तियों को बड़ी सुगमता से पार कर लोगे । व्रजराज! पहले युग की बात है। एक बार पृथ्वी में कोई राजा नहीं रह गया था। डाकुओं ने चारों ओर लूट-खसोट मचा रखी थी। तब तुम्हारे इसी पुत्र ने सज्जन पुरुषों की रक्षा की और इससे बल पाकर उन लोगों ने लुटेरों पर विजय प्राप्त की । जो मनुष्य तुम्हारे इस साँवले-सलोने शिशु से प्रेम करते हैं। वे बड़े भाग्यवान् हैं। जैसे विष्णुभगवान के करकमलों की छत्रछाया में रहने वाले देवताओं असुर नहीं जीत सकते, वैसे ही इससे प्रेम करने वालों को भीतर या बाहर किसी भी प्रकार के शत्रु नहीं जीत सकते । नंदजी! चाहे जिस दृष्टि से देखेँ—गुण में , संपत्ति और सौन्दर्य में, कीर्ति और प्रभाव में तुम्हारा यह बालक साक्षात् भगवान नारायण के समान है। तुम बड़ी सावधानी और तत्परता से इसकी रक्षा करो’। इस प्रकार नन्दबाबा को भलीभांति समझाकर, आदेश देकर गर्गाचार्यजी अपने आश्रम को लौट गये। उनकी बात सुनकर नन्दबाबा को बड़ा ही आनन्द हुआ। उन्होंने ऐसा समझा कि मेरी सब आशा-लालसाएँ पूरी हो गयीं, मैं अब कृतकृत्य हूँ । परीक्षित्! कुछ ही दिनों में राम और श्याम घुटनों और हाथों के बल बकैयाँ चल-चलकर गोकुल में खेलने लगे । दोनों भाई अपने नन्हें-नन्हें पाँवों को गोकुल की कीचड़ में घसीटते हुए चलते। उस समय उनके पाँव और कमर के घुंघरू रुनझुन बजने लगते। वह शब्द बड़ा भला मालूम पड़ता। वे दोनों स्वयं वह ध्वनि सुनकर खिल उठते। कभी-कभी वे रास्ते चलते किसी अज्ञात व्यक्ति के पीछे हो लेते। फिर जब देखते कि यह तो कोई दूसरा है, तब झक-से रह जाते और डरकर अपनी माताओं—रोहिणीजी और यशोदाजी के पास लौट आते । माताएँ यह सब देख-देखकर स्नेह से भर जातीं। उनके स्तनों से दूध की धारा बहने लगती थी। जब उसके दोनों नन्हें-नन्हें-से शिशु अपने शरीर में कीचड़ का अंगराग लगाकर लौटते, तब उनकी सुन्दरता और भी बढ़ जाती थी। माताएँ उन्हें आते ही दोनों हाथों से गोद से लेकर ह्रदय से लगा लेतीं और स्तनपान कराने लगतीं, जब वे दूध पीने लगते और बीच-बीच में मुसकरा-मुसकराकर अपनी माताओं की ओर देखने लगते, तब वे उनकी मन्द-मन्द मुसकान, छोटी-छोटी दंतुलियाँ और भोला-भाला मुँह देखकर आनन्द के समुद्र में डूबने-उतराने लगतीं । जब राम और श्याम दोनों कुछ और बड़े हुए, तब व्रज में घर के बाहर ऐसी-ऐसी बाललीलाएँ करने लगे, जिन्हें गोपियाँ देखती ही रह जातीं। जब वे किसी बैठे हुए बछड़े की पूँछ पकड़ लेते और बछड़े डरकर इधर-उधर भागते, तब वे दोनों और भी जोर से पूँछ पकड़ लेते और बछड़े उन्हें घसीटते हुए दौड़ने लगते। गोपियाँ अपने घर का काम-धंधा छोड़कर यही सब देखतीं रहतीं और हँसते-हँसते लोट-पोट होकर परम आनन्द में मग्न हो जातीं ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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