श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 2 श्लोक 25-39
द्वादश स्कन्ध: द्वितीयोऽध्यायः (2)
परीक्षित्! चन्द्रवंश और सूर्यवंश में जितने राजा हो गये हैं या होंगे, उन सबका मैंने संक्षेप से वर्णन कर दिया । तूम्हारे जन्म से लेकर राजा नन्द के अभिषेक तक एक हजार एक सौ पन्द्रह वर्ष का समय लगेगा । जिस समय आकाश में सप्तर्षियों का उदय होता है, उस समय पहले उनमें से दो ही दिखायी पड़ते हैं। उनके बीच में दक्षिणोत्तर रेखा पर समभाग में अश्विनी आदि नक्षत्रों में से एक नक्षत्र दिखायी पड़ता है । उस नक्षत्र के साथ सप्तर्षिगण मनुष्यों की गणना से सौ वर्ष तक रहते हैं। वे तुम्हारे जन्म के समय और इस समय भी मघा नक्षत्र पर स्थित हैं । स्वयं सर्वव्यापक सर्वशक्तिमान् भगवान ही शुद्ध सत्वमय विग्रह के साथ श्रीकृष्ण के रूप में प्रकट हुए थे। वे जिस समय अपनी लीला संवरण करके परमधाम को पधार गये, उसी समय कलियुग ने संसार में प्रवेश किया। उसी के कारण मनुष्यों की मति-गति पाप की ओर ढुलक गयी । जब तक लक्ष्मीपती भगवान श्रीकृष्ण अपने चरणकमलों से पृथ्वी का स्पर्श करते रहे, तब तक कलियुग पृथ्वी पर अपना पैर न जमा सका । परीक्षित्! जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र परर विचरण करते रहते हैं, उसी समय कलियुग का प्रारम्भ होता है। कलियुग की आयु देवताओं की वर्ष गणना से बारह सौ वर्षों की अर्थात् मनुष्यों की गणना के अनुसार चार लाख बत्तीस हजार वर्ष की है । जिस समय सप्तर्षि मघा से चलकर पूर्वाशाढ़ा नक्षत्र में जा चुके होंगे, उस समय राजा नन्द का राज्य रहेगा। तभी से कलियुग की वृद्धि शुरू होगी । पुरातत्ववेत्ता ऐतिहासिक विद्वानों का कहना है कि जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम-धाम को प्रयाण किया, उसी दिन, उसी समय कलियुग का प्रारम्भ हो गया । परीक्षित्! जब देवताओं की वर्ष गणना के अनुसार एक हजार वर्ष बीत चुकेंगे, तब कलियुग के अन्तिम दिनों में फिर से कल्कि भगवान की कृपा से मनुष्यों में मन में सात्विकता का संचार होगा, लोग अपने वास्तविक स्वरुप को जान सकेंगे और तभी से सत्ययुग का प्रारम्भ भी होगा । परीक्षित्! मैंने तो तुमसे केवल मनुवश का, सो भी संक्षेप से वर्णन किया है। जैसे मनुवंश की गणना होती है, वैसे ही प्रत्येक युग में ब्राम्हण, वैश्य और शूद्रों को भी वंशपरम्परा समझनी चाहिये । राजन्! जिन पुरुषों और महात्माओं का वर्णन मैंने तुमसे किया है, अब केवल नाम से ही उनकी पहचान होती है। अब वे नहीं हैं, केवल उनकी यह कथा रह गयी है। अब उनकी कीर्ति ही पृथ्वी पर जहाँ-तहाँ सुनने को मिलती है । भीष्मपितामह के पिता राजा शन्तनु के भाई देवापि और इक्ष्वाकुवंशी मरू इस समय कलाप-ग्राम में स्थित हैं। वे बहुत बड़े योग बल से युक्त हैं । कलियुग के अन्त में कल्कि भगवान की आज्ञा से वे फिर यहाँ आयेंगे और पहले की भाँति ही वर्णाश्रमधर्म का विस्तार करेंगे । सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग—ये ही चार युग हैं; ये पूर्वोक्त क्रम के अनुसार अपने-अपने समय में पृथ्वी के प्राणियों पर अपना प्रभाव दिखाते रहते हैं ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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