महाभारत आदि पर्व अध्याय 185 श्लोक 1-24

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पञ्चाशीत्‍यधिकशततम (185) अध्‍याय: आदि पर्व (स्‍वयंवर पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: पञ्चाशीत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद

धृष्‍टधुम्न द्रौपदी को स्‍वयंवर में आये हुए राजाओं का परिचय देना

धृष्‍टधुम्न ने कहा- बहिन ! यह देखो- दुर्योधन, दुर्विषह, दुर्मुख, दुष्‍प्रधर्षण, विविंशति, विकर्ण, सह, दु:शासन, युयुत्‍मु, वायुवेग, भीमवेगरव, उग्रायुध, बलाकी, करकायु, विरोचन, कुण्‍डक, चित्रसेन, सुवर्चा, कनकध्‍वज, नन्‍दक, बाहुशाली, तुहुण्‍ड तथा विकट-ये और दुसरे भी बहुत-से महाबली धृतराष्‍ट्र जो सब-के-सब वीर हैं, तुम्‍हें प्राप्‍त करने के लिये कर्ण के साथ यहां पधारे हैं। इनके सिवा और भी असंख्‍य महामना क्षत्रियशिरोमणी भूमिपाल यहां आये हैं। उधर देखो, गान्‍धारराज सुबल के पुत्र शकुनि, वृषक और बृहद्वल बैठे हैं। गान्‍धारराज के ये सभी पुत्र यहां पधारे हैं। अश्‍वत्‍थामा और भोज- ये दोनों महान् तेजस्‍वी और सम्‍पूर्ण शस्‍त्रधारियों में श्रेष्‍ठ हैं।राजा बृहन्‍त, मणिमान्, दण्‍डधार, सहदेव, जयत्‍सेन, राजा मेघसंधि, अपने दोनों पुत्रों शक्‍ख, और उत्‍तर के साथ राजा विराट, वृद्धक्षेम के पुत्र सुशर्मा, राजा सेनाबिन्‍दु, सुकेतु और उनके पुत्र सुवर्चा, सुचित्र,सुकुमार, वृक, सत्‍यधृति, सूर्यध्‍वज, रोचमान, नील, चित्रायुध, अंशुमान्, चेकितान, महाबली श्रेणिमान्, समुद्रसेन के प्रतापी पुत्र चन्‍द्रसेन, जलसंघ, विदण्‍ड और उनके पुत्र दण्‍ड, पौण्‍ड्रक वासुदेव, पराक्रमी भगदत्‍त, कलिगनरेश, ताम्रलिप्‍त नरेश, पाटन के राजा, अपने दो पुत्रों वीर रुक्‍मागद तथा रुक्‍मरथ के साथ महारथी भद्रराज शल्‍य, कुरुवंशी सोमदत्‍त तथा उनके तीन महारथी शूरवीर पुत्र भूरि, भूरिश्रवा और शल, काम्‍बोजदेशीय सुदक्षिण, पूरुवंशी दृढ़धन्‍वा। महाबली सुषेण, उशीनरदेशीय शिबि तथा चोर-डाकुओं को मार डालने वाले कारुषाधिपति भी यहां आये हैं। इधर संकर्षण, वासुदेव, (भगवान् श्रीकृष्‍ण) रुक्मिणीनन्‍दन पराक्रमी प्रद्युम्‍न, साम्‍ब, चारुदेष्‍ण, प्रद्युम्‍नकुमार अनिरुद्ध, श्रीकृष्‍ण के बड़े भाई गद, अक्रूर, सात्‍यकि, परम बुद्धिमान् उद्धव, ह्रदिकपुत्र कृतवर्मा, पृथू, विपृथु, विदूरथ, कड्क, शड्क, गवेषण, आशावह, अनिरुद्ध, शमीक, सारिमेजय, वीर, वातपति, झिल्लीपिण्‍डारक तथा पराक्रमी उशीनर- ये सब वृष्णिवंशी कहे गये हैं। भगीरथवंशी बृहत्‍क्षत्र, सिन्‍धुगज जयद्रथ, बृहद्रथ, वाह्रीक, महारथी श्रृतायु, उलूक, राजा कैतव, चित्रागद, शुमागद, बुद्धिमान् वत्‍सराज, कोसलनरेश, पराक्रमी शिशुपाल तथा जरासंध-ये तथा और भी अनेक जनपदों के शासक भूमण्‍डल में विख्‍यात बहुत-से क्षत्रिय वीर तुम्‍हारे लिये यहां पधारे हैं। भद्रे  ! ये पराक्रमी नरेश तुम्‍हें पाने के उद्देश्‍य से इस उत्‍तम लक्ष्‍य का भेदन करेंगे। शुभे ! जो इस निशाने को वेध डाले, उसी का आज तुम वरण करना।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत स्‍वयंवरपर्व में राजाओं के नाम का परिचय विषयक एक सौ पचासीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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