महाभारत आदि पर्व अध्याय 210 श्लोक 24-32

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दशाधिकद्विशततम (210) अध्‍याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्‍यलम्‍भ पर्व )

महाभारत: आदि पर्व: दशाधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 24-32 का हिन्दी अनुवाद

वहां तिलोत्‍तमा ने जब देवमण्‍डली की प्रदक्षिणा आरम्‍भ की, तब इन्‍द्र और भगवान् शंकर दोनों धैर्यपूर्वक अपने स्‍थान पर ही बैठे रहे। जब वह दक्षिण पार्श्‍व की ओर गयी, तब उसे देखने की इच्‍छा से भगवान् शंकर के दक्षिण भाग में एक और मुख प्रकट हो गया, जो कमल सद्दश नेत्रों से सुशोभित था। जब वह पीछे की ओर गयी, तब उनका पश्चिम मुख प्रकट हुआ और उत्‍तर पार्श्‍व की ओर उसके जाने पर भगवान् शिव के उत्‍तरवर्ती मुख का प्राकटय हुआ। इसी प्रकार इन्‍द्र के भी आगे,पीछे और पार्श्‍वभाग में सब ओर लाल कोनेवाले सहस्‍त्रों विशाल नेत्र प्रकट हो गये। इस प्रकार पूर्वकाल में अविनाशी भगवान् महादेवजी के चार मुख प्रकट हुए और बलहन्‍ता इन्‍द्र के हजार नेत्र हुए।। दूसरे-दूसरे देवताओं और महर्षियों के मुख भी जिस ओर तिलोत्‍तमा जाती थीं, उसी ओर घूम जाते थे। उस समय देवाधिदेव ब्रह्माजी को छोड़कर शेष सभी महानुभावों की दृष्टि तिलोत्‍तमा के शरीर पर बार-बार पड़ने लगी।। जब वह जाने लगी, तब सभी देवताओं और महर्षियों को उसकी रुप सम्‍पत्ति देखकर वह विश्‍वास हो गया कि अब वह सारा कार्य सिद्ध ही है। तिलोत्‍तमा के चले जाने पर लोकस्‍त्रष्‍टा ब्रह्माजी ने उन सम्‍पूर्ण देवताओं और महषिर्यो को विदा किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत विदुरागमन राज्‍यलम्‍भ पर्व में सुन्‍दोपसुन्‍दोपाख्‍यान के प्रसंग में तिलोत्‍तमा प्रस्‍थान विषयक दो सौ दसवां अध्‍याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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