"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 182 श्लोक 34-38": अवतरणों में अंतर
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१४:२३, १९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
द्वयशीत्यधिकशततम (182) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
जब उन परमात्मा का वह दिव्यरूप उनकी माया से कभी बहुत छोटा हो जाता है और कभी बहुत बढ़ जाता है, तब कोई उनसे भिन्न दूसरा उन्हीं के समान प्रतिभाशाली कौन है, जो कि उस स्वरूप का यथार्थ परिमाण जान सके अर्थात् ऐसा कोई नहीं है। तरनंतर पूर्वोक्त कमल से सर्वज्ञ, मूर्तिमान्, प्रभावशाली, परम उत्तम तथा प्रथम प्रजापति धर्ममय ब्रह्मा का प्रादुर्भाव हुआ। भरद्वाज ने पूछा- प्रभों! यदि ब्रह्माजी कमल से प्रकट हुए तब तो कमल ही ज्येष्ठ प्रतीत होता है; परंतु आपने ब्रह्माजी को पूर्वज बताया है; अत: यह संदेह मेरे मन में बना ही रह गया। भृगुने कहा- मुने! मानसदेव का जो स्वरूप बताया गया है, वही ब्रह्मरूप में प्रकट है। उन्हीं ब्रह्माजी के आसन के लिये इस पृथ्वी को ही पद्म (कमल) कहते हैं। इस कमल की कर्णिका मेरूपर्वत है, जो आकाश में बहुत ऊंचे तक गया है। उसी पर्वत के मध्यभाग में स्थित होकर जगदीश्वर ब्रह्मा सम्पूर्ण लोकों की सृष्टि करते हैं।
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