"महाभारत वन पर्व अध्याय 207 श्लोक 96-99" के अवतरणों में अंतर

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==सप्‍ताधिकद्विशततम (207) अध्‍याय: वन पर्व (समस्या पर्व )==
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==सप्‍ताधिकद्विशततम (207) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व )==
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्‍ताधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 96-99 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्‍ताधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 96-99 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<center>कौशिक का धर्मव्‍याध के पास जाना, धर्मव्‍याध के द्वारा पतिव्रता से प्रेषित जान लेने पर कौशिक को आश्रचर्य होना, धर्मव्‍याध के द्वारा वर्ण धर्म का वर्णन, जनकराज्‍य की प्रशंसा और शिष्‍टाचार का वर्णन</center>
 
<center>कौशिक का धर्मव्‍याध के पास जाना, धर्मव्‍याध के द्वारा पतिव्रता से प्रेषित जान लेने पर कौशिक को आश्रचर्य होना, धर्मव्‍याध के द्वारा वर्ण धर्म का वर्णन, जनकराज्‍य की प्रशंसा और शिष्‍टाचार का वर्णन</center>
  
 
दोषदृष्टि का अरभाव, क्षमा, शान्ति, संतोष, प्रिय भाषण और काम क्रोध का त्‍याग, शिष्‍टाचार का सेवन और शास्‍त्र के अनुकूल कर्म करना-यह  श्रेष्‍ठ पुरुषों का अति उत्तम मार्ग है । द्विज श्रेष्‍ठ । जो धर्मात्‍मा पुरुष सदा शिष्‍टाचार का सेवन करते हैं और प्रज्ञारुपी प्रासाद पर आरुढ़ हो भांति-भांति के लोक चरित्रों का निरीक्षण तथा अत्‍यन्‍त पुण्‍य एवं पापकर्मों की समीक्षा करते हैं, वे महान् भय से मुक्‍त हो जाते हैं । ब्रह्मन । विप्रवर । इस प्रकार शिष्‍टाचार के गुणों के सम्‍बन्‍ध में मैंने जैसा जाना और सुना है, वह सब आप से कह सुनाया है ।
 
दोषदृष्टि का अरभाव, क्षमा, शान्ति, संतोष, प्रिय भाषण और काम क्रोध का त्‍याग, शिष्‍टाचार का सेवन और शास्‍त्र के अनुकूल कर्म करना-यह  श्रेष्‍ठ पुरुषों का अति उत्तम मार्ग है । द्विज श्रेष्‍ठ । जो धर्मात्‍मा पुरुष सदा शिष्‍टाचार का सेवन करते हैं और प्रज्ञारुपी प्रासाद पर आरुढ़ हो भांति-भांति के लोक चरित्रों का निरीक्षण तथा अत्‍यन्‍त पुण्‍य एवं पापकर्मों की समीक्षा करते हैं, वे महान् भय से मुक्‍त हो जाते हैं । ब्रह्मन । विप्रवर । इस प्रकार शिष्‍टाचार के गुणों के सम्‍बन्‍ध में मैंने जैसा जाना और सुना है, वह सब आप से कह सुनाया है ।
इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समास्‍या पर्व में ब्राह्मणव्‍या संवाद विषयक दौ सौ सातवां अध्‍याय पूरा हुआ ।
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इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समस्‍या पर्व में ब्राह्मणव्‍या संवाद विषयक दौ सौ सातवां अध्‍याय पूरा हुआ ।
  
  

१०:२६, ३० जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

सप्‍ताधिकद्विशततम (207) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व )

महाभारत: वन पर्व: सप्‍ताधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 96-99 का हिन्दी अनुवाद
कौशिक का धर्मव्‍याध के पास जाना, धर्मव्‍याध के द्वारा पतिव्रता से प्रेषित जान लेने पर कौशिक को आश्रचर्य होना, धर्मव्‍याध के द्वारा वर्ण धर्म का वर्णन, जनकराज्‍य की प्रशंसा और शिष्‍टाचार का वर्णन

दोषदृष्टि का अरभाव, क्षमा, शान्ति, संतोष, प्रिय भाषण और काम क्रोध का त्‍याग, शिष्‍टाचार का सेवन और शास्‍त्र के अनुकूल कर्म करना-यह श्रेष्‍ठ पुरुषों का अति उत्तम मार्ग है । द्विज श्रेष्‍ठ । जो धर्मात्‍मा पुरुष सदा शिष्‍टाचार का सेवन करते हैं और प्रज्ञारुपी प्रासाद पर आरुढ़ हो भांति-भांति के लोक चरित्रों का निरीक्षण तथा अत्‍यन्‍त पुण्‍य एवं पापकर्मों की समीक्षा करते हैं, वे महान् भय से मुक्‍त हो जाते हैं । ब्रह्मन । विप्रवर । इस प्रकार शिष्‍टाचार के गुणों के सम्‍बन्‍ध में मैंने जैसा जाना और सुना है, वह सब आप से कह सुनाया है । इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समस्‍या पर्व में ब्राह्मणव्‍या संवाद विषयक दौ सौ सातवां अध्‍याय पूरा हुआ ।



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