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(डा. श्रीप्रसाद जी की मनमोहक बाल कविता। आप भी गुनगुनाएँ।)
(** द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की यह बाल कविता आप भी बुदबुदाइए !!!)
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** द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की यह बाल कविता आप भी बुदबुदाइए !!!
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***डा. श्रीप्रसाद जी की मनमोहक बाल कविता।
कौन सिखाता है चिड़ियों को चीं-चीं, चीं-चीं करना?
आप भी गुनगुनाएँ।
कौन सिखाता फुदक-फुदक कर उनको चलना फिरना?
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'बाबूलाल बागड़ी'


बाबूलाल बागड़ी,
कौन सिखाता फुर से उड़ना दाने चुग-चुग खाना?
बाँधे लाल पागड़ी,
कौन सिखाता तिनके ला-ला कर घोंसले बनाना?
खाएँ भात साल भर,
दाल पिएँ थाल भर,


दूध पिएँ, पिएँ चाय,
कौन सिखाता है बच्चों का लालन-पालन उनको?
इसीलिए लाए गाय,
माँ का प्यार, दुलार, चौकसी कौन सिखाता उनको?
आज गए काँगड़ी,
 
बाबूलाल बागड़ी।
कुदरत का यह खेल, वही हम सबको, सब कुछ देती।
किन्तु नहीं बदले में हमसे वह कुछ भी है लेती।
 
हम सब उसके अंश कि जैसे तरू-पशु–पक्षी सारे।
हम सब उसके वंशज जैसे सूरज-चांद-सितारे।

१२:३३, ६ अगस्त २०१३ का अवतरण

    • द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की यह बाल कविता आप भी बुदबुदाइए !!!

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कौन सिखाता है चिड़ियों को चीं-चीं, चीं-चीं करना? कौन सिखाता फुदक-फुदक कर उनको चलना फिरना?

कौन सिखाता फुर से उड़ना दाने चुग-चुग खाना? कौन सिखाता तिनके ला-ला कर घोंसले बनाना?

कौन सिखाता है बच्चों का लालन-पालन उनको? माँ का प्यार, दुलार, चौकसी कौन सिखाता उनको?

कुदरत का यह खेल, वही हम सबको, सब कुछ देती। किन्तु नहीं बदले में हमसे वह कुछ भी है लेती।

हम सब उसके अंश कि जैसे तरू-पशु–पक्षी सारे। हम सब उसके वंशज जैसे सूरज-चांद-सितारे।

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