"महाभारत आदि पर्व अध्याय 67 श्लोक 69-92": अवतरणों में अंतर

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भारत ! महान् कीर्तिशाली देवर्षि बृहस्पति के अंश से अयोनिज भरद्वाज नन्दन द्रोण उत्पन्न हुए, यह जान लो। नृपश्रेष्ठ ! राजा जनमेजय ! आचार्य द्रोण समस्त धनुर्धर वीरों में उत्तम और सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञाता थे। उनकी कीर्ति बहुत दूर तक फैली हुई थी। वे महान् तेजस्वी थे। वेदवेत्ता विद्वान् द्रोण को धनुर्वेद और वेद दोनों में सर्वश्रेष्ठ मानते थे। ये विचित्र कर्म करने वाले तथा अपने कुल की मर्यादा को बढ़ाने वाले थे। भारत ! उनके यहां महादेव, यम, काम और क्रोध के सम्मिलित अंश से शत्रुसंतापी शूरवीर अश्‍वत्थामा का जन्म हुआ, जो इस पृथ्वी पर महापराक्रमी और शत्रुपक्ष का संहार करने वाला वीर था। राजन् ! उसके नेत्र कमलदल के समान विशाल थे। महर्षि वशिष्ठ के शाप और इन्द्र के आदेश से आठों वसु गंगाजी के गर्भ से राजा शान्तनु के पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। उनमें सबसे छोटे भीष्म थे, जिन्होंने कौरव वंश को निर्भय बना दिया था। वे परम बुद्विमान्, वेदवत्ता, वक्ता तथा शत्रुपक्ष का संहार करने बाले थे। सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों के विद्वानों में श्रेष्ठ महातेजस्वी भीष्म ने भृगुवंशी महात्मा जमदग्नि नन्दन परशुरामजी के साथ युद्व किया था। महाराज ! जो कृप नाम से प्रसिद्व ब्रह्मर्षि इस पृथ्वी पर प्रकट हुए थे, उनका पुरूषार्थ असीम था। उन्हें रूद्रगण के अंश से उत्पन्न हुआ समझो। राजन् ! जो इस जगत् में महारथी राजा शकुनि के नाम से विख्यात था, उसे तुम द्वापर के अंश से उत्पन्न हुआ मानो। वह शत्रुओं का मान-मर्दन करने वाला था । वृष्णि वंश का भार वहन करने वाले जो सत्यप्रतिज्ञ शत्रुमर्दन सात्यिक थे, वे मरूत देवताओं के अंश से उत्पन्न हुए थे। राजा जनमेजय ! सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ राजर्षि द्रुपद भी इस मनुष्य लोक में उस मरूद्गण से ही उत्पन्न हुए थे। महाराज ! अनुपम कर्म करने वाले, क्षत्रियों में श्रेष्ठ राजा कृतवर्मा को भी तुम मरूद्गणों से ही उत्पन्न मानो। शत्रुराष्ट्र को संताप देने वाले शत्रुमर्दन राजा विराट को भी मरूद्गणों से उत्पन्न समझो=। अरिष्टा का पुत्र जो हंस नाम से विख्यात गन्धर्व राज था, वही कुरूवंश की वृद्वि करने वाले व्यासनन्दन धृतराष्ट्र के नाम से प्रसिद्व हुआ। धृतराष्ट्र की वाहें बहुत बड़ी थीं। वे महातेजस्वी नरेश प्रज्ञाचक्षु (अंधे) थे, वे माता के दोष और महर्षि के क्रोध से अंधे ही उत्पन्न हुए। उन्हीं के छोटे भाई महान् शक्तिशाली महाबली पाण्डु के नाम से विख्यात हुए। वे सत्यधर्म में तत्पर और पवित्र थे। पुत्रवानों में श्रेष्ठ और बुद्विमानों में उत्तम परम सौभाग्यशाली विदुर को तुम इस लोक में सूर्य पुत्र धर्म के अंश से उत्पन्न हुआ समझो। खोटी बुद्वि और दूषित विचार वाले कुरूकुल कलंक राजा दुर्योधन के रूप में इस पृथ्वी पर कलिका अंश ही उत्पन्न हुआ था। राजन् ! वह कलिस्वरूप पुरूष सबका द्वेष पात्र था। उसने सारी पृथ्वी के वीरों को लड़ाकर मरवा दिया था। उसके द्वारा प्रज्वलित की हुई वैर की भारी आग असंख्य प्राणियों के विनाश का कारण बन गयी। पुलस्त्य कुल के राक्षस भी मनुष्यों में दुर्योधन के भाइयों के रूप में उत्पन्न हुए थे। उसके दुःशासन आदि सौ भाई थे। वे सभी क्रूरतापूर्ण कर्म किया करते थे। दुर्मुख, दुःसह तथा अन्य कौरव जिनका नाम यहां नहीं लिया गया है, दुर्योधन के सहायक थे। भरतश्रेष्ठ ! धृतराष्ट्र के सब पुत्र पूर्व जन्म के राक्षस थे। धृतराष्ट्र-पुत्र युयुत्सु वैश्‍य जातीय स्त्री से उत्पन्न हुआ था। वह दुर्योधन आदि सौ भाइयों के अतिरक्ति था। जनमेजय ने कहा- प्रभु ! धृतराष्ट्र के जो सौ पुत्र थे, उनके नाम मुझे बड-छोटे के क्रम से एक-एक करके बताइये।
भारत ! महान् कीर्तिशाली देवर्षि बृहस्पति के अंश से अयोनिज भरद्वाज नन्दन द्रोण उत्पन्न हुए, यह जान लो। नृपश्रेष्ठ ! राजा जनमेजय ! आचार्य द्रोण समस्त धनुर्धर वीरों में उत्तम और सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञाता थे। उनकी कीर्ति बहुत दूर तक फैली हुई थी। वे महान् तेजस्वी थे। वेदवेत्ता विद्वान् द्रोण को धनुर्वेद और वेद दोनों में सर्वश्रेष्ठ मानते थे। ये विचित्र कर्म करने वाले तथा अपने कुल की मर्यादा को बढ़ाने वाले थे। भारत ! उनके यहां महादेव, यम, काम और क्रोध के सम्मिलित अंश से शत्रुसंतापी शूरवीर अश्‍वत्थामा का जन्म हुआ, जो इस पृथ्वी पर महापराक्रमी और शत्रुपक्ष का संहार करने वाला वीर था। राजन् ! उसके नेत्र कमलदल के समान विशाल थे। महर्षि वशिष्ठ के शाप और इन्द्र के आदेश से आठों वसु गंगाजी के गर्भ से राजा शान्तनु के पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। उनमें सबसे छोटे भीष्म थे, जिन्होंने कौरव वंश को निर्भय बना दिया था। वे परम बुद्विमान्, वेदवत्ता, वक्ता तथा शत्रुपक्ष का संहार करने बाले थे। सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों के विद्वानों में श्रेष्ठ महातेजस्वी भीष्म ने भृगुवंशी महात्मा जमदग्नि नन्दन परशुरामजी के साथ युद्व किया था। महाराज ! जो कृप नाम से प्रसिद्व ब्रह्मर्षि इस पृथ्वी पर प्रकट हुए थे, उनका पुरूषार्थ असीम था। उन्हें रूद्रगण के अंश से उत्पन्न हुआ समझो। राजन् ! जो इस जगत् में महारथी राजा शकुनि के नाम से विख्यात था, उसे तुम द्वापर के अंश से उत्पन्न हुआ मानो। वह शत्रुओं का मान-मर्दन करने वाला था । वृष्णि वंश का भार वहन करने वाले जो सत्यप्रतिज्ञ शत्रुमर्दन सात्यिक थे, वे मरूत देवताओं के अंश से उत्पन्न हुए थे। राजा जनमेजय ! सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ राजर्षि द्रुपद भी इस मनुष्य लोक में उस मरूद्गण से ही उत्पन्न हुए थे। महाराज ! अनुपम कर्म करने वाले, क्षत्रियों में श्रेष्ठ राजा कृतवर्मा को भी तुम मरूद्गणों से ही उत्पन्न मानो। शत्रुराष्ट्र को संताप देने वाले शत्रुमर्दन राजा विराट को भी मरूद्गणों से उत्पन्न समझो=। अरिष्टा का पुत्र जो हंस नाम से विख्यात गन्धर्व राज था, वही कुरूवंश की वृद्वि करने वाले व्यासनन्दन धृतराष्ट्र के नाम से प्रसिद्व हुआ। धृतराष्ट्र की वाहें बहुत बड़ी थीं। वे महातेजस्वी नरेश प्रज्ञाचक्षु (अंधे) थे, वे माता के दोष और महर्षि के क्रोध से अंधे ही उत्पन्न हुए। उन्हीं के छोटे भाई महान् शक्तिशाली महाबली पाण्डु के नाम से विख्यात हुए। वे सत्यधर्म में तत्पर और पवित्र थे। पुत्रवानों में श्रेष्ठ और बुद्विमानों में उत्तम परम सौभाग्यशाली विदुर को तुम इस लोक में सूर्य पुत्र धर्म के अंश से उत्पन्न हुआ समझो। खोटी बुद्वि और दूषित विचार वाले कुरूकुल कलंक राजा दुर्योधन के रूप में इस पृथ्वी पर कलिका अंश ही उत्पन्न हुआ था। राजन् ! वह कलिस्वरूप पुरूष सबका द्वेष पात्र था। उसने सारी पृथ्वी के वीरों को लड़ाकर मरवा दिया था। उसके द्वारा प्रज्वलित की हुई वैर की भारी आग असंख्य प्राणियों के विनाश का कारण बन गयी। पुलस्त्य कुल के राक्षस भी मनुष्यों में दुर्योधन के भाइयों के रूप में उत्पन्न हुए थे। उसके दुःशासन आदि सौ भाई थे। वे सभी क्रूरतापूर्ण कर्म किया करते थे। दुर्मुख, दुःसह तथा अन्य कौरव जिनका नाम यहां नहीं लिया गया है, दुर्योधन के सहायक थे। भरतश्रेष्ठ ! धृतराष्ट्र के सब पुत्र पूर्व जन्म के राक्षस थे। धृतराष्ट्र-पुत्र युयुत्सु वैश्‍य जातीय स्त्री से उत्पन्न हुआ था। वह दुर्योधन आदि सौ भाइयों के अतिरक्ति था। जनमेजय ने कहा- प्रभु ! धृतराष्ट्र के जो सौ पुत्र थे, उनके नाम मुझे बड-छोटे के क्रम से एक-एक करके बताइये।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

११:५१, २८ जुलाई २०१५ का अवतरण

सप्तषष्टितम (67) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: सप्तषष्टितम अध्‍याय: श्लोक 69-92 का हिन्दी अनुवाद

भारत ! महान् कीर्तिशाली देवर्षि बृहस्पति के अंश से अयोनिज भरद्वाज नन्दन द्रोण उत्पन्न हुए, यह जान लो। नृपश्रेष्ठ ! राजा जनमेजय ! आचार्य द्रोण समस्त धनुर्धर वीरों में उत्तम और सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञाता थे। उनकी कीर्ति बहुत दूर तक फैली हुई थी। वे महान् तेजस्वी थे। वेदवेत्ता विद्वान् द्रोण को धनुर्वेद और वेद दोनों में सर्वश्रेष्ठ मानते थे। ये विचित्र कर्म करने वाले तथा अपने कुल की मर्यादा को बढ़ाने वाले थे। भारत ! उनके यहां महादेव, यम, काम और क्रोध के सम्मिलित अंश से शत्रुसंतापी शूरवीर अश्‍वत्थामा का जन्म हुआ, जो इस पृथ्वी पर महापराक्रमी और शत्रुपक्ष का संहार करने वाला वीर था। राजन् ! उसके नेत्र कमलदल के समान विशाल थे। महर्षि वशिष्ठ के शाप और इन्द्र के आदेश से आठों वसु गंगाजी के गर्भ से राजा शान्तनु के पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। उनमें सबसे छोटे भीष्म थे, जिन्होंने कौरव वंश को निर्भय बना दिया था। वे परम बुद्विमान्, वेदवत्ता, वक्ता तथा शत्रुपक्ष का संहार करने बाले थे। सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों के विद्वानों में श्रेष्ठ महातेजस्वी भीष्म ने भृगुवंशी महात्मा जमदग्नि नन्दन परशुरामजी के साथ युद्व किया था। महाराज ! जो कृप नाम से प्रसिद्व ब्रह्मर्षि इस पृथ्वी पर प्रकट हुए थे, उनका पुरूषार्थ असीम था। उन्हें रूद्रगण के अंश से उत्पन्न हुआ समझो। राजन् ! जो इस जगत् में महारथी राजा शकुनि के नाम से विख्यात था, उसे तुम द्वापर के अंश से उत्पन्न हुआ मानो। वह शत्रुओं का मान-मर्दन करने वाला था । वृष्णि वंश का भार वहन करने वाले जो सत्यप्रतिज्ञ शत्रुमर्दन सात्यिक थे, वे मरूत देवताओं के अंश से उत्पन्न हुए थे। राजा जनमेजय ! सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ राजर्षि द्रुपद भी इस मनुष्य लोक में उस मरूद्गण से ही उत्पन्न हुए थे। महाराज ! अनुपम कर्म करने वाले, क्षत्रियों में श्रेष्ठ राजा कृतवर्मा को भी तुम मरूद्गणों से ही उत्पन्न मानो। शत्रुराष्ट्र को संताप देने वाले शत्रुमर्दन राजा विराट को भी मरूद्गणों से उत्पन्न समझो=। अरिष्टा का पुत्र जो हंस नाम से विख्यात गन्धर्व राज था, वही कुरूवंश की वृद्वि करने वाले व्यासनन्दन धृतराष्ट्र के नाम से प्रसिद्व हुआ। धृतराष्ट्र की वाहें बहुत बड़ी थीं। वे महातेजस्वी नरेश प्रज्ञाचक्षु (अंधे) थे, वे माता के दोष और महर्षि के क्रोध से अंधे ही उत्पन्न हुए। उन्हीं के छोटे भाई महान् शक्तिशाली महाबली पाण्डु के नाम से विख्यात हुए। वे सत्यधर्म में तत्पर और पवित्र थे। पुत्रवानों में श्रेष्ठ और बुद्विमानों में उत्तम परम सौभाग्यशाली विदुर को तुम इस लोक में सूर्य पुत्र धर्म के अंश से उत्पन्न हुआ समझो। खोटी बुद्वि और दूषित विचार वाले कुरूकुल कलंक राजा दुर्योधन के रूप में इस पृथ्वी पर कलिका अंश ही उत्पन्न हुआ था। राजन् ! वह कलिस्वरूप पुरूष सबका द्वेष पात्र था। उसने सारी पृथ्वी के वीरों को लड़ाकर मरवा दिया था। उसके द्वारा प्रज्वलित की हुई वैर की भारी आग असंख्य प्राणियों के विनाश का कारण बन गयी। पुलस्त्य कुल के राक्षस भी मनुष्यों में दुर्योधन के भाइयों के रूप में उत्पन्न हुए थे। उसके दुःशासन आदि सौ भाई थे। वे सभी क्रूरतापूर्ण कर्म किया करते थे। दुर्मुख, दुःसह तथा अन्य कौरव जिनका नाम यहां नहीं लिया गया है, दुर्योधन के सहायक थे। भरतश्रेष्ठ ! धृतराष्ट्र के सब पुत्र पूर्व जन्म के राक्षस थे। धृतराष्ट्र-पुत्र युयुत्सु वैश्‍य जातीय स्त्री से उत्पन्न हुआ था। वह दुर्योधन आदि सौ भाइयों के अतिरक्ति था। जनमेजय ने कहा- प्रभु ! धृतराष्ट्र के जो सौ पुत्र थे, उनके नाम मुझे बड-छोटे के क्रम से एक-एक करके बताइये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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