महाभारत वन पर्व अध्याय 313 श्लोक 35-51

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त्रयोदशाधिकत्रिशततम (313) अध्याय: वन पर्व (आरणेयपर्व)

महाभारत: वन पर्व: त्रयोदशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः श्लोक 35-51 का हिन्दी अनुवाद



तुम्हारे विषय में मुझे महान् कौतूहल हो गया है। तुमसे मुझे कुछ भय भी लगने लगा है, जिससे मेरा हृदय उद्विग्न हो उठा है और सिर में संताप होने लगा है। अतः भगवन् ! मै विनयपूर्वक पूछता हूँ, तुम यहाँ कौन विराज रहे हो ? यक्ष ने कहा- तुम्हारा कल्याण हो। मैं जलचर पक्षी नहीं हूँ, यक्ष हूँ। तुम्हारे ये सभी महान् तेजस्वी भाई मेरे द्वारा मारे गये हैं। वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन् ! तत्पश्चात् उस समय इस प्रकार बोलने वाले उस यक्ष की वह अमंगलमयी और कठोर वाणी सुनकर भरतश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर उसके पास जाकर खडत्रे हो गये। उन्होंने देखा, एक विकट नेत्रों वाला विशालकाय यक्ष वृक्ष के ऊपर बैठा है। वह बड़ा ही दुर्धर्ष, ताड़ के समान लंबा, अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी तथा पर्वत के समान ऊँचा है। वही अपनी मेघ के समान गम्भीर नादयुक्त वाणी से उन्हें फटकार रहा है। उसकी आवाज बहुत ऊँची है। यक्ष ने कहा- राजन् ! तुम्हारे इन भाइयों को मैंने बार-बार रोका था; फिर भी ये बलपूर्वक जल ले जाना चाहते थे; इसी से मैंने इन्हें मार डाला। महाराज युधिष्ठिर ! यदि तुम्हें अपने प्राण बचाने की इच्छा हो, तो वहाँ जल नहीं पीना चाहिये। पार्थ ! तुम पानी पीने का साहस न करना, यह पहले से ही मेरे अधिकार की वस्तु है। कुन्तीनन्दन ! पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, उसके बाद जल पीओ और ले भी जाओ। युधिष्ठिर ने कहा- यक्ष ! में तुम्हारे अधिकार की वस्तु को नहीं ले जाना चाहता। मैंस्वयं ही अपनी बड़ाई 1828 करूँ; इस बात की सत्पुरुष कभी प्रशंसा नहीं करते। मैं अपनी बुद्धि के अनुसार तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर दूँगा, तुम मुझसे प्रश्न करो। यक्ष ने पूछा- सूर्य को कौन ऊपर उठाता (उदित) करता है , उसके चारों ओर कौन चलते हैं , उसे असत कौन करता है , और वह किसमें प्रतिष्ठित है ? युधिष्ठिर बोले- ब्रह्म सूर्य को ऊपर उठाता (उदित करता) है, दूवता उसके चारों ओर चलते हैं, धर्म उसे असत करता है और वह सत्य में प्रतिष्ठित है। यक्ष ने पूछा - राजन् ! मनुष्य श्रोत्रिय किससे होता है , महत्पद किसके द्वारा प्राप्त करता है ? वह किसके द्वारा द्वितीयवान् होता है ? ओर किससे बुद्धिमसन होता है ? युधिष्ठिर बोले- वेदाध्ययन के द्वारा मनुष्य श्रोत्रिय होता है, तप से महत्पद प्राप्त करता है, धैर्य से द्वितीवान् (दूसरे साथी से युक्त) होता है और वृद्ध पुरुषों की सेवा में बुद्धिमान् होता है। यक्ष ने पूछा- ब्राह्मणों में देवत्व क्या है , उनमें सत्पुरुषों सा धर्म क्या है ? उनका मनुष्य-भाव क्या है , और उनमें असत्पुरुषों का सा आचरण क्या है ? युधिष्ठिर बोले- वेदों का स्वाध्याय ही ब्राह्मणों में देवत्व है, तप सत्पुरुषों का सा धर्म है, मरना मनुष्य भाव है और निन्दा करना असत्पुरुषों का सा आचरण है। यक्ष ने पूछा- क्षत्रियों में देवत्व क्या है, उनमें सत्पुरुषों सा धर्म क्या है ? उनका मनुष्य-भाव क्या है , और उनमें असत्पुरुषों का सा आचरण क्या है ?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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