महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 300 श्लोक 17-33
त्रिशततम (300) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
शत्रुदमन ! जैसे निर्बल पक्षी सूक्ष्म जाल में फँसकर बन्धन को प्राप्त हो अपने प्राण खो देते हैं और बलवान पक्षी जाल तोड़कर उसके बन्धन से मुक्त हो जाते हैं, उसी प्रकार कर्मजनित बन्धनों से बँधे हुए निर्बल योगी सर्वथा नष्ट हो जाते हैं, किंतु परंतप ! योगबल से सम्पन्न योगी सब प्रकार के बन्धनों से छुटकारा पा जाते हैं । राजन ! जैसे अल्प होने के कारण दुर्बल अग्निपर बड़े-बड़े मोटे ईधन रख देने से वह जलने के बजाय बुझ जाती है, प्रभो ! उसी प्रकार निर्बल योगी महान योग के भार से दबकर नष्ट हो जाता है । राजन ! वही आग जब हवा का सहारा पाकर प्रबल हो जाती है, तब सम्पूर्ण पृथ्वी को भी तत्काल भस्म कर सकती है । इसी प्रकार योगी का भी योगबल बढ जाने से जब वह उद्दीप्त तेज से सम्पन्न और महान शक्तिशाली हो जाता है, तब वह जैसे प्रलयकालीन सूर्य समस्त जगत को सुखा डालता है, वैसे ही समस्त रागादि दोषों का नाश कर देता है । राजन ! जैसे दुर्बल मनुष्य पानी के वेग से बह जाता है, उसी तरह दुर्बल योगी विवश होकर विषयों की ओर खिंच जाता है । परंतु जल के उसी महान स्त्रोत को जैसे गजराज रोक देता है अर्थात उसमें नहीं बहता, उसी प्रकार योग का महान बल पाकर योगी भी उन सभी बहुसंख्यक विषयों को अवरूद्ध कर देता है अर्थात उनके प्रवाह में नहीं बहता । कुन्तीनन्दन ! योगशक्ति सम्पन्न पुरूष स्वतन्त्रता पूर्वक प्रजापति, ॠषि, देवता और पञ्चमहाभूतों में प्रवेश कर जाते हैं। उनमें ऐसा करने की सामर्थ्य आ जाती है । नरेश्वर ! अमित तेजस्वी योगी पर क्रोध में भरे हुए यमराज, अन्तक और भयंकर पराक्रम दिखाने वाली मृत्यु का भी शासन नहीं चलता है । भरत श्रेष्ठ ! योगी योगबल पाकर अपने हजारों रूप बना सकता है और उन सबके द्वारा इस पृथ्वी पर विचर सकता है । तात ! वह उन शरीरों द्वारा विषयों का सेवन और उग्र तपस्या भी करता है। तदनन्तर अपनी तेजोमयी किरणों को समेट लेने वाले सूर्य की भाँति सभी रूपों को अपने में लीन कर लेता है । पृथ्वीनाथ ! बलवान योगी बन्धनों को तोड़ने में समर्थ होता है, उसमें अपने को मुक्त करने की पूर्ण शक्ति आ जाती है, इसमें तनिक भी संशय नहीं है । प्रजापालक नरेश ! मैं दृष्टान्त के लिये योग से प्राप्त होने वाली कुछ सूक्ष्म शक्तियों का पुन: तुमसे वर्णन करूँगा । प्रभो ! भरत श्रेष्ठ ! आत्मसमाधि के लिये जो धारणा की जाती है, उसके विषय में भी कुछ सूक्ष्म दृष्टान्त बतलाता हूँ, सुनो । जैसे सदा सावधान रहने वाला धनुर्धर वीर चित् को एकाग्र करके बाण चलाने पर लक्ष्य को अवश्य बींध डालता है, उसी प्रकार जो योगी मन को परमात्मा के ध्यान में लगा देता है, वह निस्संदेह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । पृथ्वीनाथ ! जैसे सिरपर रखे हुए तेल से भरे पात्र की ओर मन को स्थिर भाव से लगाये रखने वाला पुरूष एकाग्रचित्त हो सीढियों पर चढ जाता है और जरा भी तेल नहीं छलकता, उसी तरह योगी भी योगयुक्त होकर जब आत्मा को परमात्मा में स्थिर करता है, उस समय उसका आत्मा अत्यन्त निर्मल तथा अचल सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है ।
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