महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 149 श्लोक 69-74

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एकोनपन्चाशदधिकशततम (149) अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर: एकोनपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 69-74 का हिन्दी अनुवाद


521 अजः- अकार भगवान् विष्णु का वाचक है, उससे उत्पन्न होने वाले ब्रह्मास्वरूप, 522 महार्हः- पूजनीय, 523 स्वाभाव्यः- नित्य सिद्ध होने के कारण स्वभाव से ही उत्पन्न न होने वाले, 524 जितामित्रः- रावण-शिशुपालादि शत्रुओं को जीतने वाले, 525 प्रमोदनः- स्मरणमात्र से नित्य प्रमुदित करने वाले, 526 आनन्दः- आनन्दस्वरूप, 527 नन्दनः- सबको प्रसन्न करने वाले, 528 नन्दः- सम्पूर्ण ऐश्वर्यों से सम्पन्न, 529 सत्यधर्मा- धर्मज्ञानादि सब गुणों से युक्त, 530 त्रिविक्रमः- तीन डग में तीनों लोकों को नापने वाले। 531 महर्षिः कपिलाचार्यः- सांख्यशास्त्र के प्रणेता भगवान् कपिलाचार्य, 532 कृतज्ञः- अपने भक्तों की सेवा को बहुत मानकर अपने को उनका ऋणी समझने वाले, 533 मेदिनीपतिः- पृथ्वी के स्वामी, 534 त्रिपदः- त्रिलोकीरूप तीन पैरों वाले विश्वरूप, 535 त्रिदशाध्यक्षः- देवताओं के स्वामी, 536 महाश्रृंगः- मत्स्यावतार में महान् सींग धारण करने वाले, 537 कृतान्तकृत्-स्मरण करने वालों के समस्त कर्मों का अन्त करने वाले। 538 महावराहः- हिरण्याक्ष का वध करने के लिये महावराहरूप धारण करने वाले, 539 गोविन्दः- नष्ट हुई पृथ्वी को पुनः प्राप्त कर लेने वाले, 540 सुषेणः- पार्षदों के समुदायरूप सुन्दर सेना से सुसज्जित, 541 कनकागंदी-सुवर्ण का बाजूबंद धारण करने वाले, 542 गुह्यः- हृदयाकाश में छिपे रहने वाले, 543 गभीरः- अतिशय गम्भीर स्वभाववाले, 544 गहनः- जिनके स्वरूप में प्रविष्ट होना अत्यन्त कठिन हो-ऐसे, 545 गुप्तः- वाणी और मन से जानने में न आने वाले, 546 चक्रगदाधरः- भक्तों की रक्षा करने के लिये चक्र और गदा आदि दिव्य आयुधों को धारण करने वाले। 547 वेधाः- सब कुछ विधान करने वाले, 548 स्वांगः- कार्य करने में स्वयं ही सहकारी, 549 अजितः- किसी के द्वारा न जीते जाने वाले, 550 कृष्णः- श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण, 551 दृढः- अपने स्वरूप और सामथ्र्य से कभी भी च्युत न होने वाले, 552 संकर्षणोऽच्युतः- प्रलयकाल में एक साथ सबका संहार करने वाले और जिनका कभी किसी भी कारण से पतन न हो सके- ऐसे अविनाशी, 553 वरूणः- जल के स्वामी वरूणदेवता, 554 वारूणः- वरूण के पुत्र वशिष्ठस्वरूप, 555 वृक्षः- अश्वत्थवृक्षरूप, 556 पुष्कराक्षः- कमल के समान नेत्रवाले, 557 महामनाः- संकल्पमात्र से उत्पत्ति, पालन और संहार आदि समस्त लीला करने की शक्तिवाले। 558 भगवान्- उत्पत्ति और प्रलय, आना और जाना तथा विद्या और अविद्या को जानने वाले एवं सर्वैश्वर्यादि छहों भगों से युक्त, 559 भगहा- अपने भक्तों का पे्रम बढ़ाने के लिये उनके ऐश्वर्य का हरण करने वाले, 560 आनन्दी-परम सुखस्वरूप, 561 वनमाली-वैजयन्ती वनमाला धारण करने वाले, 562 हलायुधः- हलरूप शस्त्र को धारण करने वाले बलभद्रस्वरूप, 563 आदित्यः- अदितिपुत्र वामन भगवान्, 564 ज्योतिरादित्यः- सूर्यमण्डल में विराजमान ज्योतिःस्वरूप, 565 सहिष्णुः- समस्त द्वन्द्वों को सहन करने में समर्थ, 566 गतिसत्तमः- सर्वश्रेष्ठ गतिस्वरूप। 567 सुधन्वा- अतिशय सुन्दर शार्गंधनुष धारण करने वाले, 568 खण्डपरशुः- शत्रुओं का खण्डन करने वाले फरसे को धारण करने वाले परशुरामस्वरूप, 569 दारूणः- सन्मार्गविरोधियों के लिये महान् भयंकर, 570 द्रविणप्रदः- अर्थार्थी भक्तों को धन-सम्पत्ति प्रदान करने वाले, 571 दिविस्पृक्- स्वर्गलोक तक व्याप्त, 572 सर्वदृग् व्यासः- सबके द्रष्टा एवं वेद का विभाग करने वाले श्रीकृष्णद्वैपायन व्यासस्वरूप, 573 वाचस्पतिरयोनिजः- विद्या के स्वामी तथा बिना योनि के स्वयं ही प्रकट होने वाले।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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