महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 23 श्लोक 1-15

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:४९, ५ अगस्त २०१५ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

त्रयोविंश (23) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

देवता और पितरों के कार्य में निमंत्रण देने योग्य पात्रों तथा नरकगामी और स्वर्गगामी मनुष्यों के लक्षणोंका वर्णन

युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! देवता और ऋषियों ने श्राद्ध के समय देव कार्य तथा पितृ कार्य में जिस-जिस कर्म का विधान किया है, उसका वर्णन मैं आपके मुख से सुनना चाहता हूं। भीष्म जी ने कहा- राजन! मनुष्य को चाहिये कि वह स्नान आदि से शुद्ध हो, मांगलिक कृत्य सम्पन्न करके प्रयत्नशील हो पूर्वाहन में देव-सम्बन्धी दान, अपराहण में पैतृक दान और मध्याहनकाल में मनुष्य सम्बन्धी दान आदरपूर्वक करें। असमय में किया हुआ दान राक्षसों का भाग माना गया है। जिस भोज्य पदार्थ को किसी ने लांघ दिया हो, चाट लिया हो, जो लड़ाई-झगड़ा करके तैयार किया गया हो तथा जिस पर रजस्वला स्त्री की दृष्टि पड़ी हो, उसे भी राक्षसों का ही भाग माना गया है। भरतनन्दन! जिसके लिये लोगों में घोषणा की गयी हो, जिसे व्रतहीन मनुष्य ने भोजन किया हो अथवा जो कुत्ते से छू गया हो, वह अन्न भी राक्षसों का ही भाग समझा गया है। जिसमें केश या कीड़े पड़ गये हों, जो छींक से दूषित हो गया हो, जिस पर कुत्तों की दृष्टि पड़ गयी हो तथा जो रोकर और तिरस्कारपूर्वक दिया गया हो, वह अन्न भी राक्षसों का ही भाग माना गया है। भरतनन्दन! जिस अन्न को पहले ऐसे व्यक्ति ने खा लिया हो, जिसे खाने की अनुमति नहीं दी गयी है अथवा जिसमें से पहले प्रणव आदि वेद मंत्रों के अनधिकारी शूद्र आदि ने भोजन कर लिया हो अथवा किसी शस्त्रधारी या दुराचारी पुरुष ने जिसका उपयोग कर लिया हो, उस अन्न को भी राक्षसों का ही भाग बताया गया है। जिसे दूसरों ने उच्छिष्ट कर दिया हो, जिसमें से किसी ने भोजन कर लिया हो तथा जो देवता, पितर, अतिथि एवं बालक आदि को दिये बिना ही अपने उपभोगमें लाया गया हो, वह अन्न देवकर्म तथा पितृकर्म में सदा राक्षसों का ही भाग माना गया है। नरश्रेष्ठ! तीनों वर्णों के लोग वैदिक मंत्र एवं उसके विधि-विधान से रहित जो श्राद्ध का अन्न परोसते हैं, उसे राक्षसों का ही भाग माना गया है। घी की आहुति दिये बिना ही जो कुछ परोसा जाता है तथा जिसमें से पहले कुछ दुराचारी मनुष्यों को भोजन करा दिया गया हो, वह राक्षसों का भाग माना गया है। भरतश्रेष्ठ! अन्न के जो भाग राक्षसों को प्राप्त होते है, उनका वर्णन यहां किया गया। अब दान और भोजन के लिये ब्राहामण की परीक्षा करने के विषय में जो बात बतायी जाती है, उसे सुनो। राजन! जो ब्राहामण पतित, जड़ या उन्मत हो गये हों वे देव कार्य या पितृ कार्य में निमंत्रण पान के योग्य नही हैं। राजन! जिसके शरीर में सफेद दाग हो, जो कोढ़ी, नपुंसक, राजयक्ष्मा से पीड़ित, मृगी का रोगी और अन्धा हो, ऐसे लोग श्राद्ध में निमंत्रण पानेके अधिकारी नहीं हैं। नरेश्वर! चिकित्सक या वैद्य, देवालय के पुजारी, पाखण्डी और सोमरस बेचने वाले ब्राहामण निमंत्रण देने योग्य नहीं हैं। राजन! जो गाते-बजाते, नाचते,खेल-कूदकर तमाशा दिखाते, व्यर्थ की बातें बनाते और पहलवानी करते हैं, वे भी निमंत्रण पाने के अधिकारी नहीं हैं।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।