महाभारत आदि पर्व अध्याय 207 श्लोक 1-9

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सप्‍ताधिकद्विशततम (207) अध्‍याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्‍यलम्‍भ पर्व )

महाभारत: आदि पर्व: सप्‍ताधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-9 का हिन्दी अनुवाद


पाण्‍डवों के यहां नारदजी का आगमन और उनमें फूट न हो, इसके लिये कुछ नियम बनाने के लिये प्रेरणा करके सुन्‍द और उपसुन्‍द की कथा को प्रस्‍तावित करना। जनमेजय ने पूछा- तपोधन ! इस प्रकार इन्‍द्रप्रस्‍थ का राज्‍य प्राप्‍त कर लेने के पश्‍चात् महात्‍मा पाण्‍डवों ने कौन-सा कार्य किया ? मेरे पूर्व पितामह सभी पाण्‍डव महान् सत्‍व (मनोबल) से सम्‍पन्‍न थे। उनकी धर्म पत्‍नी द्रौपदी ने किस प्रकार उन सबका अनुसरण किया ? वे महान् सौभाग्‍यशाली नरेश जब एक ही कृष्‍णा के प्रति अनुरक्‍त थे, तब उनमें आपस में फूट कैसे नहीं हुई ? तपोधन ! द्रौपदी से सम्‍बन्‍ध रखनेवाले उन-पाण्‍डवों का आपस में कैसा बर्ताव था, यह सब मैं विस्‍तार के साथ सुनना चाहता हूं। वैशम्‍पायनजी ने कहा- राजन् ! धृतराष्‍ट्र की आज्ञा से राज्‍य पाकर परंतप पाण्‍डव द्रौपदी के साथ खाण्‍डवप्रस्‍थ में विहार करने लगे।सत्‍यप्रतिज्ञ महातेजस्‍वी राजा युधिष्ठिर उस राज्‍य को पाकर अपने भाइयों के साथ धर्मपूर्वक पृथ्‍वी का पालन करने लगे। वे सभी शत्रुओं पर विजय पा चुके थे, सभी महाबुद्धिमान् थे। सबने सत्‍य धर्म का आश्रय ले रखा था। इस प्रकार वे पाण्‍डव वहां बड़े आनन्‍द के साथ रहते थे । नरश्रेष्‍ठ पाण्‍डव नगरवासियों के सम्‍पूर्ण कार्य करते हुए बहुमूल्‍य तथा राजोचित सिंहासनों पर बैठा करते थे। एक दिन जब वे सभी पाण्‍डव अपने सिंहासनों पर विराजमान थे, उसी समय देवर्षि नारद अकस्‍मात् वहां आ पहुंचे ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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