महाभारत आदि पर्व अध्याय 122 श्लोक 25-43

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द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: द्वाविंशत्यलधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 25-43 का हिन्दी अनुवाद

ऐसा निश्चय करके कुरुनन्ददन महाराज पाण्डुप ने महर्षियों से सलाह लेकर कुन्तीे को शुभदायक सांवत्सरर व्रत का उपदेश दिया । और भारत ! वे महाबाहु धर्मात्माय पाण्डुक स्व यं देवताओं के ईश्वर इन्द्रीदेव की आराधना करने के लिये चित्तवृत्तियों को अत्यभन्त! एकाग्र करके एक पैर से खड़े हो सूर्य के साथ-साथ उग्र तप करने लगे अर्थात सूर्योदय होने के समय एक पैर से खड़े होते और सूर्यास्ता तक उसी रूप में खड़े रहते । इस तरह दीर्घकाल व्यरतीत हो जाने पर इन्द्र देव उन पर प्रसन्न हो उनके समीप आये और इस प्रकार बोले । इन्द्र् ने कहा- राजन् ! मैं तुम्हेंय ऐसा पुत्र दूंगा, जो तीनों लोगों में विख्या्त होगा । वह ब्राह्मणों, गौओं तथा सुहृदों के अभीष्ट मनोरथ की पूर्ति करने वाला, शत्रुओं को शोक देने वाला और समस्तर बन्धु -वान्वों् को आनन्दित करने वाला होगा, मैं तुम्हेंत सम्पूुर्ण शत्रुओं का विनाश करने वाला सर्वश्रेष्ठ पुत्र प्रदान करूंगा । महात्मा इन्द्रो के यों कहने पर धर्मात्मा कुरुनन्दून महाराज पाण्डुर बड़े प्रसन्न हुए और देवराज के वचनों का स्ममरण करते हुए कुन्तीद देवी से बोले- कल्यातणि ! तुम्हाशरे व्रत का भावी परिणाम मंगलमय है। देवताओं के स्वा मी इन्द्र् हम लोगों पर संतुष्ट हैं। यह अलौकिक कर्म करने वाला, यशस्वी , शत्रुदमन, नीतीज्ञ, महामना, सूर्य के समान तेजस्वीय, दुधर्ष, कर्मठ तथा देखने में अत्य न्तत अद्भुत होगा । सुश्रोणि ! अब ऐसे पुत्र को जन्मस दो, जो क्षत्रियोचित तेज का भंडार हो। पवित्र मुसकान वाली कुन्तीन ! मैंने देवेन्द्रर की कृपा प्राप्त कर ली है। अब तुम उन्हींर का आवाहन करो । वैशम्पामयनजी कहते हैं- महाराज पाण्डु के यों कहने पर यशस्विनी कुन्तीब ने इन्द्र का आवाहन किया। तदनन्तोर देवराज इन्द्रा आये और उन्हों ने अर्जुन को जन्मे दिया ।

वह फाल्गु्न मास में दिन के समय पूर्वाफल्गु नी और उत्तग-फल्गुपनी नक्षत्रों के संधिकाल में उत्परन्न हुआ। फाल्गु्न मास ओर फल्गु‍नी नक्षत्र में जन्मर लेने के कारण उस बालक का नाम फाल्गु‍न हुआ । कुमार अर्जुन के जन्म लेते ही अत्यओन्त‍ गम्भीरर नाद से समूचे आकाश को गुंजाती हुई आकाशवाणी ने पवित्र मुसकान वाली कुन्तीर को सम्बो धित करके समस्तग प्राणियों और आश्रमवासियों के सुनते हुए अत्यगन्त स्पपष्ट भाषा में इस प्रकार कहा- । कुन्ति भोजकुमारी ! यह बालक कार्तवीर्य अर्जुन के समान तेजस्वीा, भगवान् शिव के समान पराक्रमी और देवराज इन्द्र के समान अजेय होकर तुम्हायरे यश का विस्तातर करेगा। जैसे भगवान् विष्णु् ने वामन रूप में प्रकट होकर देव माता अदिति के हर्ष को बढ़ाया था, उसी प्रकार ये विष्णुत तुल्या अर्जुन तुम्हाशरी प्रसन्नता को बढ़ायेगा । तुम्हावरा यह वीर पुत्र मद्र, कुरु, सोमक, चेदि, काशि तथा करूप नामक देशों को वश में करके कुरुवंश की लक्ष्मीअ का पालन करेगा । वीर अर्जुन उत्तर दिशा में जाकर वहां के राजाओं को युद्ध में जीतकर असंख्य धन-रत्नों की राशि लें आयेगा। इसके बाहुबल से खाण्डअव वन में अग्निदेव समस्ते प्राणियों के मेद का आस्वाददन करके पूर्ण तृप्ति लाभ लेंगे । यह महाबली श्रेष्ठ वीर बालक समस्तद क्षत्रिय समूह का नायक होगा और युद्ध में भूमिपालों को जीतकर भाइयों के साथ तीन अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान करेगा । कुन्तीू ! यह परशुराम के समान वीर योद्धा, भगवान् विष्णु के समान पराक्रमी, बलवानों में श्रेष्ठ और महान् यशस्वीु होगा ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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