महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 35 श्लोक 18-33

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पञ्चत्रिंश(35) अधयाय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: पञ्चत्रिंश अधयाय: श्लोक 18-33 का हिन्दी अनुवाद

विरोचन बोला- सुधन्वन्! हम असुरों के पास जो कुछ भी सोना,गौ, घोड़ा आदि धन है, उसकी मैं बाजी लगाता हूं; हम-तुम दोनों चलकर जो इस विषय के जानकार हों, उनसे पूछें कि हम दोनों में कौन श्रेष्‍ठ है?

सुधन्वा बोला- विरोचन! सुवर्ण, गाय और घोड़ा तुम्हारे ही पास रहें। हम दोनों प्राणों की बाजी लगाकर जो जानकार हों, उनसे पूछें। विरोचन ने कहा- अच्छा, प्राणों की बाजी लगाने के पश्‍चात् हम दोनों कहां चलेंगे? मैं तो न देवताओं के पास जा सकता हूं और न कभी मनुष्‍यों से ही निर्णय करा सकता हूं।

सुधन्वा बोला- प्राणों की बाजी लग जाने पर हम दोनों तुम्हारें पिता के पास चलेंगे। (मुझे विश्‍वास है कि) प्रह्लाद अपने बेटे के (जीवन के) लिये भी झूठ नहीं बोल सकते हैं।

विदुरजी ने बोला- राजन्! इस तरह बाजी लगाकर परस्पर क्रुद्ध हो और विरोचन और सुधन्वा दोनों उस समय वहां गये, जहां प्रह्लाद थे। प्रह्लाद ने (मन-ही-मन) कहा- जो कभी भी एक सा‍थ नहीं चले थे, वे ही दोनों ये सुधन्वा और विरोचन आज सांप की तरह क्रुद्ध होकर एक ही राह से आते दिखायी देते हैं। (फिर प्रकट रूप में विरोचन से कहा-) विरोचन! मैं तुमसे पूछता हूं, क्या सुधन्वा के साथ तुम्हारी मित्रता हो गयी है? फिर कैसे एक साथ आ रहे हो? पहले तो तुम दोनों कभी एक साथ नहीं चलते थे।

विरोचन बोला- पिताजी! सुधन्वा के साथ मेरी मित्रता नहीं हुई हैं। हम दोनों प्राणों की बाजी लगाये आ रहे हैं। मैं आपसे यथा‍र्थ बात पूछता हूं। मेरे प्रश्‍न का झूठा उत्तर न दीजियेगा।

प्रह्लाद ने कहा- सेवको! सुधन्वा के लिये जल और मधुपर्क भी लाओ। [फिर सुधन्वा से कहा-] ब्रह्मन्! तुम मेरे पूजनीय अतिथि हो, मैंने तुम्हें दान करने के लिये खूब मोटी-ताजी सफेद गौ रख रक्खी है।

सुधन्वा बोला- प्रह्लाद! जल और मधुपर्क तो मुझे मार्ग में ही मिल गया है। तुम तो जो मैं पूछ रहा हूं, उस प्रश्‍न का ठीक-ठीक उत्तर दो- ब्राह्मण श्रेष्‍ठ हैं अथवा विरोचन?

प्रह्लाद बोले- ब्रह्मन्! मेरे एक ही पुत्र है और इधर तुम स्वयं उपस्थित हो; भला, तुम दोनों के विवाद में मेरे-जैसा मनुष्‍य कैसे निर्णय दे सकता है?

सुधन्वा बोला- मतिमन्! तुम्हारे पास गौ तथा दूसरा जो कुछ भी प्रिय धन हो, वह सब अपने औरस पुत्र विरोचन को दे दो; परंतु हम दोनों के विवाद में तो तुम्हें ठीक-ठीक उत्तर देना ही चाहिये।

प्रह्लाद ने कहा- सुधन्वन्! अब मैं तुमसे यह बात पूछता हूं- जो सत्य न बोले अथवा असत्य निर्णय करे, ऐसे दुष्‍ट वक्ता की क्या स्थिति होती है?

सुधन्वा बोला- सौतवाली स्त्री, जूए में हारे हुए जुआरी और भार ढोने से व्यथित शरीर वाले मनुष्‍य की रात में जो स्थिति होती है, वही स्थिति उल्टा न्याय देने वाले वक्ता की भी होती है। जो झूठा निर्णय देता है, वह राजा नगर में कैद होकर बाहरी दरवाजेपर भूख का कष्‍ट उठाता हुआ बहुत-से शत्रुओं-को देखता है। (अपने स्वार्थ के वशीभूत हो) पशु के लिये झूठ बोलने-से पांच, गौ के लिये झूठ बोलने पर दस, घोडे़ के लिये असत्य-भाषण करने पर सौ पीढ़ियों को और मनुष्‍य के लिये झूठ बोलने पर एक हजार पीढ़ियों को मनुष्‍य नरक में गिराता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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