महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 39 श्लोक 16-34
एकोनचत्वारिंश (39) अधयाय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)
वैसे नीच, क्रुर तथा जितेन्द्रिय पुरूषों से हानेवाले सङ्गपर अपनी बुद्धि से पूर्ण विचार करके विद्वान् पुरूष उसे दूर से ही त्याग दे। जो अपने कुटुम्बी, दरिद्र, दीन तथा रोगीपर अनुग्रह करता है, वह पुत्र और पशुओं से वृद्धि को प्राप्त होता और अनंत कल्याण का अनुभव करता है। राजेन्द्र! जो लोग अपने भले की इच्छा भले की इच्छा करते हैं, उन्हें अपने जातिभाइयों को उन्नतिशील बनाना चाहिये; इसलिये आप भलीभांति अपने कुल की वृद्धि करें। राजन्! जो अपने कुटम्बीजनों का सत्कार करता है, वह कल्याण का भागी होता है। भरतश्रेष्ठ! अपने कुटम्ब के लोग गुणहीन हों, तो भी उनकी रक्षा करनी चाहिये। फिर जो आपके कृपाभिलाषी एवं गुणवान् हैं, उनकी तो बात ही क्या है। राजन्! आप समर्थ हैं, वीर पाण्डवों पर कृपा कीजिये और उनकी जीविकाके लिेये कुछ गांव दे दीजिये। नरेश्र्वर! ऐसा करने से आपको इस संसार में यश प्राप्त होगा। तात! आप वृद्ध हैं, इसलिये आपको अपने पुत्रोंपर शासन करना चाहिये। भरतश्रेष्ठ! मुझे भी आपकी हित की बात कहनी चाहिये। आप मुझे अपना हितैषी समझें। तात! शुभ चाहने वाले को अपने जातिभाइयों के साथ झगड़ा नहीं करना चाहिये; बल्कि उनके साथ मिलकर सुख का उपभोग करना चाहिये। जाति-भाइयों के साथ परस्पर भोजन, बातचीत एवं प्रेम करना ही कर्तव्य है; उनके साथ कभी विरोध नहीं करना चाहिये।
इस जगत् में जाति-भाई ही तारते और जाति-भाई ही डुबाते भी हैं। उनमें जो सदाचारी हैं, वे तो मारते हैं और दुराचारी डुबा देते हैं। राजेन्द्र! आप पाण्डवों के प्रति सद्व्यवहार करें। मानद! उनसे सुरक्षित होकर आप शत्रुओं के लिये दुर्घर्ष हो जायं। विषैले बाण हाथ में लिये हुए व्याघ के पास पहुंचकर जैसे मृगको कष्ट भोगना पड़ता है, उसी प्रकार जो जातीय बंधु अपने धनी बंधु के पास पहुंचकर दु:ख पाता है, उसके पापका भागी वह धनी होता है। नरश्रेष्ठ! आप पण्डवों को अथवा अपने पुत्रों को मारे गये सुनकर पीछे संताप करेंगे; अत: इस बात का पहले ही विचार कर लीजिये। इस जीवन का कोई ठिकाना नहीं है अतएव जिस कर्म के करने से (अन्त में) खटिया पर बैठकर पछताना पडे़, उसको पहले से ही नहीं करना चाहिये। शुक्राचार्य के सिवा दूसरा कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है, जो नीति का उल्लघंन नहीं करता;अत: जो बीत गया, सो बीत गया, शेष कर्तव्य का विचार (आप-जैसे) बुद्धिमान् पुरूषों पर ही निर्भर है। नरेश्र्वर! दुर्योंधन ने पहले यदि पाण्डवों के प्रति यह अपराध किया है तो आप इस कुल में बडे़-बूढे़ हैं; आपके द्वारा उसका मार्जन हो जाना चाहिये। नरश्रेष्ठ! यदि आप उनको राजपद पर स्थापित कर देंगे तो संसार में आपका कलङ्क धुल जायगा और आप बुद्धिमान् पुरूषों के माननीय हो जायंगे। जो धीर पुरूषों के वचनों के परिणाम पर विचार करके उन्हें कार्यरूप में परिणत करता हैं, वह चिरकाल तक यश का भागी बना रहता है। अत्यन्त कुशल विद्वानों के द्वारा भी उपेदश किया हुआ ज्ञान व्यर्थ ही है, यदि उससे कर्तव्य ज्ञान न हुआ अथवा ज्ञान होने पर भी उसका अनुष्ठान न हुआ।
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