महाभारत आदि पर्व अध्याय 196 श्लोक 25-36

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०९:३५, १७ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==षण्‍णवत्‍यधिकशततम (196) अध्‍याय: आदि पर्व (वैवाहिक पर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

षण्‍णवत्‍यधिकशततम (196) अध्‍याय: आदि पर्व (वैवाहिक पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: षण्‍णवत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 25-36 का हिन्दी अनुवाद

वहां भविष्‍य में निश्‍चय ही तुम लोग ऐसे ही होने वाले हो- तुम सबको मनुष्‍य योनि में प्रवेश करना पड़ेगा। उस जन्‍म में तुम अनेक दु:सह कर्म करके बहुतों को मौत के घाट उतारकर पुन: अपने शुभ कर्मो द्वारा पहले से ही उपार्जित पुण्‍यात्‍माओं के निवास योग्‍य इन्‍द्र लोक में आ जाओगे। मैंने जो कुछ कहा है, वह सब कुछ तुम्‍हें करना होगा। इसके सिवा और भी नाना प्रकार के प्रयोजनों से युक्‍त कार्य तुम्‍हारे द्वारा सम्‍पन्‍न होंगे’ । पहले के चारों इन्‍द्र बोले- भगवन् ! हम आपकी आज्ञा के अनुसार देव लोक से मनुष्‍य लोक में जायंगे, जहां दुर्लभ मोक्ष का साधन भी सुलभ होता है। परंतु वहां हमें धर्म, वायु, इन्‍द्र और दोनों अश्विनीकुमार –ये ही देवता माता के गर्भ में स्‍थापित करें। तदनन्‍तर हम दिव्‍यास्‍त्रों द्वारा मानव-वीरों से युद्ध करके पुन: इन्‍द्रलोक में चले आयेंगे । व्‍यासजी कहते हैं- राजन् ! पूर्ववर्ती इन्‍द्रो का यह वचन सुनकर वज्रधारी इन्‍द्र ने पुन: देवश्रेष्‍ठ महादेवजी से इस प्रकार कहा- ‘भगवन् ! मैं अपने वीर्य से अपने ही अंशभूत पुरुष को देवताओं के कार्य के लिये समर्पित करुंगा, जो इन चारों के साथ पांचवां होगा। उसे मैं स्‍वयं ही उत्‍पन्‍न करुंगा। विश्‍वभुक, भूतधामा, प्रतापी इन्‍द्र शिवि, चौथे शान्ति और पांचवें तेजस्‍वी- ये ही उन पांचों के नाम हैं। उग्र धनुष धारण करनेवाले भगवान् रुद्र ने उन सबको उनकी अभीष्‍ट कामना पूर्ण होने का वरदान दिया, जिसे वे अपने साधु स्‍वभाव के कारण भगवान् के सामने प्रकट कर चुके थे। साथ ही उस लोककमनीया युवती स्‍त्री को, जो स्‍वर्ग लोक की लक्ष्‍मी थी, मनुष्‍य लोक में उनकी पत्‍नी निश्चित की। तदनन्‍तर उन्‍हीं के साथ महादेवजी अनन्‍त, अप्रमेय, अव्‍यक्‍त, अजन्‍मा, पुराणपुरुष, सनातन, विश्‍वरुप एवं अनन्‍त मूर्ति भगवान् नारायण के पास गये। उन्‍होंने भी उन्‍हों सब बातों के लिये आज्ञा दी। तत्‍पश्‍चात् वे सब लोग पृथ्‍वी पर प्रकट हुए। उस समय भगवान् नारायण ने अपने मस्‍तक से दो केश निकाले, जिनमें एक श्‍वेत था और दूसरा श्‍याम । वे दोनों केश यदुवंश की दो स्त्रियों देवकी तथा रो‍हिणी के भीतर प्रविष्‍ट हुए। उनमें से रोहिणी के बलदेव प्रकट हुए, जो भगवान् नारायण का श्‍वेत केश थे; दूसरा केश, जिसे श्‍याम वर्ण का बताया गया है, वही देवकी के गर्भ से भगवान् श्रीकृष्‍ण के रुप में प्रकट हुआ उत्‍तरवर्ती हिमालय की कन्‍दरा में पहले जो इन्‍द्र स्‍वरुप पुरुष बंदी बनाकर रक्‍खे गये थे, वे ही ये चारों पराक्रमी पाण्‍डव यहां विद्यमान हैं और साक्षात् इन्‍द्र का अंशभूत जो पांचवां पुरुष प्रकट होनेवाला था, वही पाण्‍डुकुमार सव्‍यसाची अर्जुन है। राजन् ! इस प्रकार ये पाण्‍डव प्रकट हुए हैं, जो पहले इन्‍द्र रह चुके हैं। यह दिव्‍यरुपा द्रौपदी वही स्‍वर्गलोक की लक्ष्‍मी है, जो पहले से ही इनकी पत्‍नी नियत हो चुकी है। महाराज ! यदि इस कार्य में देवताओं का सहयोग न होता तो तुम्‍हारे इस यज्ञ कर्म द्वारा यज्ञवेदी की भूमि से ऐसी दिव्‍य नारी कैसे प्रकट हो सकती थी, जिसका रुप सूर्य और चन्‍द्रमा के समान प्रकाश बिखेर रहा है और जिसकी सुगन्‍ध एक कोस तक फैलती रहती है ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।