महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 64 श्लोक 17-27

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चतु:षष्टितम (64) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: चतु:षष्टितम अध्याय: श्लोक 17-27 का हिन्दी अनुवाद

समस्‍त गन्‍धमादन पर्वत सब ओर से कुञ्च-सा जान पड़ता था। वहां दिव्‍य ओषाधयां प्रकाशित हो रही थी। सिद्ध और गन्‍धर्व उस पर्वत पर निवास करते थे। वहां हम सब लोगों ने देखा, पर्वत की एक दुर्गम गुफा में जहां से कोई कूल-किनारा न होने के कारण गिरने की ही अधि‍क सम्‍भावना रहती है, एक मधुकोष है। वह मक्खियों का तैयार किया हुआ नहीं था। उसका रंग सुवर्ण के समान पीला था ओर वह देखने में घड़े के समान जान पड़ता था। भयंकर विषधर सर्प उस मधु की रक्षा करते थे। कुबेर को वह मधु अत्‍यंत प्रिय था। हमारे साथी औषध-साधक ब्राह्मण-लोग यह बता रहे थे कि इस मधु को पाकर मरणधर्मा मनुष्‍य भी अमरत्‍व प्राप्‍त कर लेता है। इसको पीने से अंधे को दृष्टि मिल जाती है और बूढ़ा भी जवान हो जाता है। महाराज! उस समय उस मधु का अद्भुत गुण सुनकर और उसे प्रत्‍यक्ष देखकर भीलों ने उसे पाने की चेष्‍टा की; परंतु सर्पों से भरी हुई उस दुर्गम पर्वतगुहा में जाकर वे सब-के सब नष्‍ट हो गये। इसी प्रकार आपका यह दुर्योधन अकेला ही सारी पृथ्‍वी का राज्‍य भोगना चाहता है। यह मोहवश केवल मधु को ही देखता है, भावी पतन या विनाश की ओर इसकी दृष्टि नहीं जाती है। दुर्योधन समरभूमि में सव्‍यसाची अर्जुन के साथ युद्ध करने-की बात सोचता है, परंतु मैं इसके भीतर अर्जुन के समान तेज या परा‍क्रम नहीं देखता। जिस वीर ने अकेले ही रथपर बैठकर सारी पृथ्‍वी पर विजय पायी है, विराटनगर पर चढ़ाई करने गये हुए भीष्‍म और द्रोण जैसे महान् योद्धाओं को भी जिसने भयभीत करके भगा दिया है, उसके सामने आपका पुत्र क्‍या पराक्रम कर सकता है? यह आप ही देखिये। आज भी वह वीर आपकी मेत्रीपुर्ण दृष्टिकी प्रतीक्षा कर रहा है और आपकी आज्ञा से वह कौरवों को सारा अपराध क्षमा कर सकता है। राजा द्रुपद, सत्‍स्‍यनरेश विराट और क्रोध में भरा हुआ अर्जुन-ये तीनों वायु का सहारा पाकर प्रज्‍वलित हुई त्रिविध अग्नियों के समान जब युद्ध भूमि में आक्रमणकरेंगे, तब‍ किसी को जीता नहीं छोड़ेंगे। महाराज धृतराष्‍ट्र! आप राजा युधिष्ठिर को अपनी गोद में बैठा लीजिये; क्‍योंकि जब दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ जायगा, तब विजय किसकी होगी, यह निश्र्चितरूप से नहीं कहा जा सकता।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत यानसंधिपर्व में विदुरवाक्‍यविषयक चौसठवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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