महाभारत शल्य पर्व अध्याय 23 श्लोक 69-91
त्रयोविंश (23) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
प्रजानाथ ! छिन्न-भिन्न होकर धरती पर गिरने वाले कवचशून्य शरीरों, आयुधों सहित भुजाओं और जाँघों का अत्यन्त भयंकर एवं रोमांचकारी कट-कट शब्द सुनायी पड़ता था। जैसे पक्षी मांस के लिये एक-दूसरे पर झपटते हैं, उसी प्रकार वहाँ योद्धा अपने तीखे शस्त्रों द्वारा भाईयों, मित्रों और पुत्रों का भी संहार करते हुए एक-दूसरे पर टूट पड़ते थे ।। दोनों पक्षों के योद्धा एक दूसरे से भिड़कर परस्पर अत्यन्त कुपित हो पहले में, पहले में ऐसा कहते हुए सहस्त्रों सैनिकों का वध करने लगे । शत्रुओं के आघात से प्राणशून्य होकर आसन से भ्रष्ट हुए अश्वारोहियों के साथ सैकड़ों और हजारों घोड़े धराशायी होने लगे । प्रजापालक नरेश ! आपकी खोटी सलाह के अनुसार बहुत-से शीघ्रगामी अश्व गिरकर छटपटा रहे थे। कितने ही पिस गये थे और बहुत से कवचधारी मनुष्य गर्जना करते हुए शत्रुओं के मर्म विदीर्ण कर रहे थे। उन सबके शक्ति, ऋष्टि और प्रासों का भयंकर शब्द वहाँ गूजँने लगा था।। आपके सैनिक परिश्रम से थक गये थे, क्रोध में भरे हुए थे, उनके वाहन भी थकावट से चूर-चूर हो रहे थे और वे सब-के-सब प्यास से पीड़ित थे। उनके सारे अंग तीक्ष्ण शस्त्रों से क्षत-विक्षत हो गये थे । वहाँ बहते हुए रक्त की गन्ध से मतवाले हो बहुत-से सैनिक विवेक-शक्ति खो बैठे थे और बारी-बारी अपने पास आये हुए शत्रुपक्ष के तथा अपने पक्ष के सैनिकों का भी वध कर डालते थे । राजन् ! बहुत से विजयभिलाषी क्षत्रिय बाणों की वर्षा से आच्छादित हो प्राणों का परित्याग करके पृथ्वीपर पडे़ ।। भेडि़यो, गींघों और सियारों का आनंद बढ़ाने वाले उस भयंकर दिन में आपके पुत्र की आँखों के सामने कौरव सेना का घोर संहार हुआ । प्रजानाथ ! वह रणभूमि मनुष्यों और घोड़ों की लाशों से पट गयी थी तथा पानी की तरह बहाये जाते हुए रक्त विचित्र शोभा धारण करके कायरों का भय बढ़ा रही थी।। भारत ! खंगों पदिृशों और शूलों से एक दूसरे को बारंबार घायल करते हुए आपके और पाण्डवों के योद्धा युद्ध से पीछे नहीं हटते थे । जब तक प्राण रहते, तबतक यथाशक्ति प्रहार करते हुए योद्धा अन्ततोगत्वा अपने घावों से रक्त बहाते हुए धराशायी हो जाते थे । वहाँ कोई-कोई कबन्ध (धड़) ऐसा दिखायी दिया, जो एक हाथ में शत्रु के कटे हुए मस्तक को केशसहित पकडे़ हुए और दूसरे हाथ में खून से रँगी हुई तीखी तलवार उठाये खड़ा था।। नरेश्वर ! फिर उस तरह के बहुत-से स्कन्ध उठे दिखायी देने लगे तथा रूधिर की गन्ध से प्रायः सभी योद्धाओं पर मोह छा गया था । तत्पश्चात् जब उस युद्ध का कोलाहल कुछ कम हुआ, तब सुबलपुत्र शकुनि थोडे़-से बचे हुए घुड़सवारों के साथ पुनः पाण्डवों की विशाल सेना पर टूट पड़ा । तब विजयाभिलाषी पाण्डवों ने भी तुरन्त उसपर धावा कर दिया। पाण्डव युद्ध से पार होना चाहते थे; अतः उनके पैदल, हाथीसवार और घुड़सवार सभी हथियार उठाये आगे बढे़ तथा शकुनि को सब ओर से घेरकर उसे कोष्ठबद्ध करके नाना प्रकार के शस्त्रोंद्वारा घायल करने लगे पाण्डवसैनिकों को सब ओर से आक्रमण करते देख आपके रथी, घुड़सवार, पैदल और हाथीसवार भी पाण्डवों पर टुट पडे़।। कुछ शूरवीर पैदल योद्धा समरांगण में पैदलों के साथ भिड़ गये और अस्त्र-शस्त्रों के क्षीण हो जाने पर एक दूसरे को मुक्कों से मारने लगे। इस प्रकार लड़ते-लड़ते वे पृथ्वी पर गिर पडे़। जैसे सिद्ध पुरूष पुण्यक्षय होने पर स्वर्गलोक के विमानों से नीचे गिर जाते हैं, उसी प्रकार वहाँ रथी रथों से और हाथी सवार हाथियों से पृथ्वीपर गिर पडे़ । इस प्रकार उस महायुद्ध में दूसरे-दूसरे योद्धा परस्पर विजय के लिये प्रयत्नशील हो पिता, भाई, मित्र और पुत्रों का भी वध करने लगे । भरतश्रेष्ठ ! प्रास, खंग और बाणों से व्याप्त हुए उस अत्यन्त भयंकर रणक्षेत्र में इस प्रकार मर्यादाशून्य युद्ध हो रहा था ।
« पीछे | आगे » |